Sunday, December 25, 2022

From chemical farming to Natural farming

A journey from Chemical Farming to Integrated Pest Management (IPM)Farming to Organic Farming to Natural Farming .

Friday, December 16, 2022

Few new experiences about I P M and Natural Farming,.

प्रकृति में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु एक स्वयं संचालित, स्वयं विकास  ,स्वयं पोशी ,सहजीवी, सुनियोजित एवं स्वयं नियंत्रित व्यवस्था है जिसका अध्ययन करके और सुविधा प्रदान करके प्राकृतिक खेती एवं आई पीएम का क्रियान्वयन बड़ी सुगमता से किया जा सकता है l
      जमीन में सूक्ष्म जीवाणु, सूक्ष्म तत्व, Humus, जैविक कार्बन, एवं जैव विविधता की बढ़ोतरी से फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा सुगमता से की जा सकती है l
       प्राकृतिक खेती की विचारधारा देसी गाय, देसी बीज, देसी kenchua, desi paddhtiyan देसी उपाय आदि पर आधारित है l प्राकृतिक खेती जीवामृत ,घन जीवामृत,  वीजा अमृत ,वापस आ, आच्छादन, जैव विविधता, आदि पर आधारित है l इसके साथ साथ यह खेती  मिश्रित खेती, बॉर्डर फसलों, एवं खेतों के चारों तरफ फलदार वृक्षों की खेती को सह खेती के रूप में बढ़ावा देकर की जाती है l किसी भी खेती में पौधों के बीच में प्रतिस्पर्धा नहीं होती है बल्कि सहजीवन होता है l प्रतिस्पर्धा सिर्फ नमी एवं सूरज की रोशनी के लिए होती है जिसे आच्छादन द्वारा दूर किया जा सकता है l जंगलों में बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे छोटे-छोटे पेड़ उनके नीचे झाड़ी तथा उनके नीचे बेल और घास आदि प्रकार के पौधे पाए जाते हैं ईद के ऊपर सूरज की रोशनी बड़ी आसानी से पहुंच सकती है और वह सभी प्रकार के पौधे अपना भोजन आसानी से बना सकते हैं l प्राकृतिक खेती  इसी सिद्धांत के आधार पर की जाति की जाती है l इन प्रकार से पौधों के उदाहरण निम्न वत है:_
*बड़े वृक्ष___आम, इमली, कटहल ,नीम ,का जू ,जामुन, महुआ सागौन, बरगद, नारियल आदि
*बड़ी फसलें_____गन्ना का धान गेहूं आदि
*पेड़____आमला , अमरूद , किन्नू,माल्टा, अंजीर देसी केला सुपारी, संतरा 
    दलहन, तिलहन सब्जियां सब्जियां
*झाड़ी नुमा_____शरीफा अनार, कड़ी पत्ता, केरा ,इलायची, बेल,
 झावेरी, अरंडी
*मिर्ची अरबी आलू शकरकंद हल्दी
*क्रीपर____पुदीना पुदीना
गोबर की खाद तथा यूरिया ke prayog को अगर हम खेती में बंद कर दें तो खरपतवार ओं की समस्या खत्म हो जाएगी l अगर सूरज की रोशनी को खरपतवार ओं तक न पहुंचने दिया जाए तो खरपतवार ओं की समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी यह काम अच्छा धन के द्वारा किया जा सकता है l दो डाली  वाले खरपतवार नाइट्रोजन को फिक्स करने में सहायता देते हैं l मौसमी फसलों पर  खरपतवार का प्रबंधन आवश्यक होता है l खरपतवार ओं को उखाड़ कर खेतों में ही रख देने से आच्छादन द्वारा विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं l खरपतवार ओं के विघटन  सेHumus निर्मिति होती है l आच्छादन में फसलों के अवशेष, सब्जी मंडी से निकले हुए सब्जियों के अवशेष, केले के फसलों के अवशेष, मंदिरों के फूल तथा नारियल बाजारों के फटे पुराने बोरे तथा कॉटन के कपड़े आदि भी प्रयोग किए जा सकते हैं l

Monday, December 5, 2022

प्राकृतिक खेती में हानिकारक जीवो का नियंत्रण हेतु जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं

1. नीमस्त्र(नीमस्त्र):____
     पानी।  200lit
     गोमूत्र 10 lit
   देसी गाय का गोबर। 2kg
    नीम की मुलायम  टहनियां। 10kg 
   डंडे से गोलू और बोरी से ढक कर 48 घंटे तक  रखें ठंड में 4 दिनों तक रखें इसके बाद इसका भंडारण करें और प्रयोग करें l इसमें पानी नहीं मिलाना है l इसका प्रयोग sucking pests  के ऊपर करें l
2. ब्रह्मास्त्र:___For lepifppteran पेस्ट्स
     गोमूत्र 20lit
     नीम की पत्ती समेत टहनियों की चटनी  2kg
    करंज के पत्तों की चटनी।   2kg
     शरीफा के पत्तों की चटनी।  2के
    अरंडी के पत्तों की चटनी।    2kg
   धतूरे के पत्तों की चटनी।        2kg
   आम के पत्तों की चटनी।        2kg
   लटाना के पत्तों की चटनी।      2kg
   उपरोक्त वनस्पतियों में से कोई भी पांच वनस्पतियों की चटनी प्रयोग की जा सकते हैं l उपरोक्त सामग्री को 20 लीटर गोमूत्र मैं धीमी धीमी आंच पर उबालें एक वाली आने के बाद 48 घंटे rakhen दिन में दो बार खिलाए।  l इसके बाद कपड़े से छान से और 200 लीटर पानी 6 लीटर ब्रह्मास्त्र के हिसाब से मिलाकर 1 एकड़ के लिएspray करें करें l
3. अग्नि अस्त्र चने की सुंडी के लिए
     गोमूत्र। 20lit
      नीम की पत्ती समेत पहेलियां। 2kg
      तंबाकू 500gm
      हरी मिर्च की चटनी 500gm
      देसी लहसुन की चटनी 250
      सब को मिलाकर बोलिए तथा ढक्कन से ढककर एक वाली आने तक गर्म करें l 48 घंटे तक रखें l दिन में एक बार डंडे से हिलाए तथा प्रयोग कर रहे हैं अथवा भंडारण करें l
4. दशपर्णी अर्क:___For all types of pests.
    पानी 200 लीटर 
  गोमूत्र 2lit
  देसी गाय का गोबर 2kg
करंज के पत्ते2kg
अरंड के पत्ते 2kg
शरीफा के पत्ते 2kg
बेल के पत्ते 2kg
Genda panchang 2kg
तुलसी की टहनियां। 2केजी
धतूरा के पत्ते।   2केg
आम के पत्ते 2के
आक के पत्ते 2kg
अमरूद के पत्ते 2kg
अनार के पत्ते 2kg
कड़वा करेला 2kg 
गुड़हल के पत्ते 2kg
कनेर के पत्ते 2के यू
अर्जुन की पत्तियां 2kg
हल्दी के पत्ते 2kg
अदरक के पत्ते 2kg
Papaya leaves
Inmein se koi 10 patte
Haldi powder 500g
अदरक की चटनी 500g
Hing पाउडर।   10g
Tobaco powder 1kg
Green chilli। 1kg
Garlic। Paste500gm
सबको बोल दे बोरी से ढके छाया में30_४० दिनों तक रखें l कपड़े से छान लें, पोटली बनाकर ने ने चोर ले निचोड़ लें l  इसको को 6 महीने तक भंडारण कर सकते हैं l


















आई पी एम, जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती भावी पीढ़ियों को हम क्या प्रदान करना चाहते हैं

1, खेतों की उपजाऊ मिट्टी
2, प्रदूषण रहित पर्यावरण
3, सक्रिय पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता
4. शुद्ध हवा
5,. प्राकृतिक संतुलन
6,, आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण विकास
7.फूड सिक्योरिटी के साथ-साथ पर्यावरण सिक्योरिटी
8.फूड सिक्योरिटी अलांग विद फूड सेफ्टी
9.



प्राकृतिक खेती और जैविक खेती में हानिकारक कीटों का नियंत्रण कैसे करें

1. आईपीएम पद्धति मैं अपनाए जाने वाले रसायनों को छोड़कर सभी रसायन मुक्त विधियों को बढ़ावा देकर हानिकारक कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है l
2. फसलों में हानिकारक कीट निगरानी एवं उनकी संख्या का आकलन का कार्यक्रम सघनता से चलाकर एक निश्चित समय अंतर पर फसल पारिस्थितिक तंत्र विश्लेषण तथा पेस्ट रिस्क एनालिसिस के द्वारा  फसल में अपनाई जाने वाली गतिविधियों के बारे में निर्णय लेकर विभिन्न विभिन्न  गतिविधियों को क्रियान्वित करें l हानिकारक कीटों के संख्या की तथा उनकी उपस्थिति की जानकारी हेतु विभिन्न प्रकार के ट्रैप्स का इस्तेमाल करें l
3. प्राकृतिक खेती हेतु देसी बीज का चयन करें l
4.  फसल बोने से पहले बीजों का वीजा मृत सेउपचार करेंl
5. खेत की मिट्टी को जीवामृत एवं घन जीवामृत से उपचारित करें l बोने के बाद फसलों में जीवामृत का निश्चित अंतराल से प्रयोग करते रहे l जिससे फसल में जमीन के ऊपर तथा जमीन के नीचे के फसल पारिस्थितिक तंत्र मेंजैव विविधता की बढ़ोतरी होती रहेगी जिससे फसलों की जड़ों को Humus , तथा जैविक कार्बन की निर्मिती में सहयोग करने वाले सूक्ष्म जीवाणु तथा केंचुआ आदि लाभदायक जीवो  की मिट्टी में वृद्धि होती रहेगी l
6. फसल चक्र को बदलते हुए तथा एक फसली फसल चक्र की जगह बहु फसली खेती को बढ़ावा देते हुए खेती करनी चाहिए l
7. बीज उपचार हेतु Trichodermma,Pseudomonas,Beauveri bassiana, Metarhyzium,नीम oil, आदि के प्रयोग को बढ़ावा दें l
8. गहरी जुताई से दूर रहें तथा फसलों में विभिन्न प्रकार के आच्छादन करें l आच्छादन से लगभग 90% पानी की बचत की जा सकती है l
9. फसलों की चारों तरफ मैडों के किनारे विभिन्न प्रकार के वृक्ष लगाएं l
10. खरपतवार ओं को मुख्य फसलों से ऊपर ना बढ़ने दिया जाए तथा उनको फसलों के अंदर ही मिट्टी से दबा दिया जाए l
11. Chusak kiton or sucking insects ke  लिए नीमस्त्र,  lepidopterans के लिए, ब्रह्मास्त्र, चने की सुंडी के लिए अग्नि अस्त्र तथा सभी प्रकार के हानिकारक कीटों के लिए दशपर्णी अर्क जो डॉक्टर सुभाष पालेकर के द्वारा बताए गए हैं के प्रयोगों को बढ़ावा दें l


6.

Sunday, December 4, 2022

प्राकृतिक खेती से लाभ

1.No cost on inputs from market.
   बाजार से इनपुट ना खरीदे जाने की वजह से इस खेती में कोई इनपुट कॉस्ट नहीं होती है सिर्फ सिर्फ 30 एकड़ की खेती के लिए एक देसी गाय  पालने के ऊपर होने वाले खर्च के अलावा  l
2. मिट्टी की उर्वरा शक्ति तथा उसमें सूक्ष्म जीवाणु,सूक्ष्म तत्व तथा ऑर्गेनिक कार्बन  एवं जैव विविधता की वृद्धि होती है l
3. सरकार के द्वारा कृषि उत्पादों के भावों को कम ज्यादा करने पर भी किसान अपने कृषि उत्पादों को सब्जियों को छोड़कर बेचने के समय तक तथा इच्छा अनुसार अपने घरों पर जब तक चाहे तब तक रख सकते हैं और बाद में सही भाव मिलने पर बेच सकते हैं  
4. बैंकों के कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ती जिससे कृष को मैं आत्महत्याओं की संभावनाएं कम हो जाती हैं l
5. सिर्फ 10% पानी की खपत में उसने पैदा की जा सकती हैं और 90% पानी की बचत होती है l
6. बिजली के खर्चे तथा बिल में 90 प्रतिशत बचत होती है l
7. क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र ओं का पुनर स्थापन होता है और जैव विविधता का संरक्षण होता है l
8. किसी भी रसायन का इस्तेमाल ना होने की वजह से रसायनों पर होने  वाला खर्चा बच जाता है l
9. प्राकृतिक संतुलन कायम रहता है l
10. पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता l
11. खाने के लिए सुरक्षित कृषि उत्पादों एवं बाजार के लिए गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन होता है l
12. लागत मूल्य जीरो अथवा न्यूनतम होने की वजह से नो प्रॉफिट नो लॉस पर भी कृषि उत्पादों की बिक्री की जा सकती है जिससे समाज के सभी वर्गों के लोग आसानी से यह कृषि उत्पाद खरीद सकते हैं l
13.No health hazards for community health. सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा नहीं होता l
14. पोषण युक्त खाद्य सुरक्षा
15. सुरक्षित भोजन तथा खाद्य सुरक्षा साथ साथ l
16. जैव विविधता का संरक्षण एवं बढ़ोतरी l
17. आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण विकास भी l
18. समृद्ध साली किसान एवं समृद्धि साली समाज l
19. सामुदायिक स्वास्थ्य की रक्षा l
20. मिट्टी की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी
21. मिट्टी में Humus की निर्मिती l
22. पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता l
23. फसल की उत्पादकता में वृद्धि l
24,. कृषकों की आय में वृद्धि l

Friday, December 2, 2022

आईपीएम, जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती में अंतर

आईपीएम, जैविक खेती और प्राकृतिक खेती यह तीनों प्रकार की खेती पद्धतियां मूल रूप से चली आ रही रसयनिक खेती को क्रमबद्ध तरीके से रसायन मुक्त खेती में परिवर्तित करने की पद्धतियां है l इन तीनों प्रकार की पद्धतियों में रसायन रहित विधियों को बढ़ावा दिया जाता है l इन तीनों प्रकार की खेती की पद्धतियों की अपनी-अपनी लिमिटेशंस अथवा सीमाएं हैं l
     आई पी एम मैं रसायनों का उपयोग सिर्फ आपातकाल परिस्थिति से निपटान हेतु सिर्फ अंतिम विकल्प के रूप मे  सिफारिश की जाती है l जबकि ऑर्गेनिक अथवा जैविक खेती तथा जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं रसायनों का बिल्कुल ही प्रयोग नहीं किया जाता है l आई पी एम खेती में रसायनों के उपयोग को इमरजेंसी टूल के रूप में संस्तुति की गई  सिफारिश का किसान भाई दुरुपयोग करते हैं और रसायनों के उपयोग को कम करने की बजाए बढ़ावा देते हैं तथा इनके उपयोग को अंधाधुंध तरीके से करते हैं जोकि आईपीएम के सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत है l
     जैविक खेती  अथवा Organic farming मैं केंचुआ खाद वर्मी कंपोस्ट, गोबर की खाद और जानवरों के अवशेष जैसे हड्डियों के खाद आदि को बढ़ावा दिया जाता है जोकि आर्थिक दृष्टिकोण से महंगा  , असंभव तथा पर्यावरण दृष्टिकोण से नुकसानदायक होता है क्योंकि केंचुए की खाद मैं बहुत सारे हानिकारक तत्व जैसेआर्सेनिक,कैडमियम आदि होते हैं जो सामुदायिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं l कंपोस्ट खाद से मिला हुआ कार्बन वायुमंडल की ऑक्सीजन से रिएक्शन करके वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ाता है l
      जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती देसी गाय, देसी  बीज, देसी केचुआ, देसी पद्धतियों अथवा देसी मेथड्स, जमीन में मिट्टी में सूक्ष्म जीवों तथा सूक्ष्म तत्व, फसलों में फसलों के अवशेषों के द्वारा आच्छादन, जैव विविधता,  जमीन की उर्वराशक्ति को बढ़ावा देने हेतुHumus की वृद्धि तथा  एक फसली खेती की जगह बहु  फसली खेती को बढ़ावा देने के सिद्धांत पर आधारित है l इस में प्रयोग किए जाने वाले इनपुट्स किसानों के द्वारा अपने घरों पर ही बनाए जा सकते हैं तथा आसानी से प्रयोग किए जा सकते हैं जिनके लिए बाजार पर आश्रित नहीं होना पड़ता l यद्यपि गाय के ऊपर होने वाला खर्च अवश्य होता है जिसको इग्नोर कर दिया जाता है l
        जैविक खेती अथवा ऑर्गेनिक फार्मिंग तथा जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मूल रूप से आईपीएम पर  आधारित खेती करने के सुधरे हुए रूप अथवा तरीके हैं जिनमें रसायन रहित विधियों को बढ़ावा दिया जाता है l
       दोस्तों खेती की IPM पद्धति में से अगर  रसायनों के इस्तेमाल को बिल्कुल ही बंद कर दिया जाए और जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती पद्धति मैं प्रयोग किए जाने वाली सभी विधियां एवं इनपुट को आईपीएम खेती में सम्मिलित करके और उनका बढ़ावा देकर के खेती की जाए तो इस प्रकार से परिवर्तित आईपीएम पद्धति को भी प्राकृतिक खेती का पर्याय बना सकते हैं l प्राकृतिक खेती में किसी प्रकार के रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है और बिना बजट के अथवा न्यूनतम बजट से खेती की जाती है l इस प्रकार से अगर आईपी एम खेती मैं प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले सभी प्रकार के इनपुट तथा विधियों को बढ़ावा देकर खेती की जाए तथा तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं जैव विविधता को बढ़ाया जाए तो आई पीएम को प्राकृतिक खेती में परिवर्तित किया जा सकता है इस प्रकार से किसान भाई प्राकृतिक खेती इनपुट को बढ़ावा देख कर के मिट्टी की गुणवत्ता एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता को बरकरार अथवा बढ़ाकर खेती कर सकते हैंl आई आईपीएम खेती से शुरुआत करके किसान भाई प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ा सकते हैं और जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर सकते हैं अथवा अपना सकते हैं l इस प्रकार से  IPM खेतीपद्धति से रसायनों को  को दूर करते हुए तथा प्राकृतिक खेती में अपनाए जाने वाले सभी विधियों तथा इनपुट का बढ़ावा देते हुए आईपीएम पद्धति से की  जाने वाली खेती को प्राकृतिक खेती में परिवर्तित किया जा सकता है l

Wednesday, November 23, 2022

प्राकृतिक खेती एवं आईपीएमकुंडलियां

खेती ऐसी चाहिए कोई न भूखा सोय
सब जीवो को खाना मिले और पोषण सबका  होए
पोषण सबका होय सुनिश्चित हो खाद्य सुरक्षा
पारिस्थितिक तंत्र सक्रिय रहे बढ़ती रहे जैव विविधता
खेती ऐसी चाहिए जिसमें खर्चा कम होय
सब जीवो को भोजन मिले कोई भूखा ना सोए
जहरीली खेती ना कीजिए जब तक घट में जान
बैंकों का कर्जा बड़े और अंत निकाले प्राण
खेती ऐसी चाहिए जिसमें पर्यावरण सुरक्षा हो य
आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण विकास भी हो य 
पर्यावरण विकास भी हो य कृषक बने समृद्धि शली
स्वस्थ रहे समाज खिले जीवन की क्यारी l 
खेती ऐसी चाहिए जिससे भूमि बने बलवान
भूमि बने बलवान औरHumus से बड़े भूमि की उर्वरा शक्ति 
सूक्ष्म जीवों एवं सूक्ष्म तत्व की बढ़ोतरी से हो  उत्पादन वृद्धि
हो उत्पादन वृद्धि और हो फसल सुरक्षा
सब जीवो को भोजन मिले औरसुनिश्चित हो खाद्य सुरक्षा
                                                      राम आसरे
                            अपर  वनस्पति संरक्षण  सलाहकार                                  (आई पी एम ) सेवानिवृत्त

Thursday, November 10, 2022

आई पी एम चिंतन

खेती करने की एवं आईपीएम की विचारधारा में क्या क्या परिवर्तन किए जाए जिससे खेती करने की प्रक्रिया लाभदायक ,सुरक्षित, प्रकृति व समाज हितेषी बन सके एवं खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके यह एक चिंतन का विषय है l(1) क्योंकि रासायनिक खेती अथवा जहरीली खेती अब ना तो लाभदायक ना ही सुरक्षित और ना ही प्रकृति व समाज हितेषी रह गई है l जिससे खाद्य सुरक्षा एवं सुरक्षित भोजन हेतु अनिश्चितता बनी हुई है इस अनिश्चितता की स्थिति को सुनिश्चित ता की स्थिति में कैसे बदलें यह भी एक चिंतन का विषय है l(2)
2. रसायन खेती से अनाज की उपज या तो स्थिर हो गई है या घटने लगी है परंतु जनसंख्या की वृद्धि दर को देखते हुए सन 2050 तक हमें अभी की स्थिति से दुगना और 50 करोड़ मेट्रिक टन अनाज पैदा करना पड़ेगा l खेती करने लायक जमीन का क्षेत्रफल अब 35 करोड़ एकड़ ही है जिससे 50 करोड़ मेट्रिक टन खाद्यान्न का उत्पादन सन 2050 तक करना पड़ेगा  lयह भी एक चिंतन का विषय है (3) तभी हम बढ़ती हुई आबादी को खाना प्रदान कर सकते हैं रसयनिक खेती से अब यह संभव नहीं दिखाई दे रहा है l क्योंकि रसायनिक खेती से अनाज की उपज घट रही है अतः हमें अब रसायनिक खेती का विकल्प जल्दी से जल्दी तलाशना होगा जो कि एक चिंतन का विषय है(4)l बढ़ते हुए शहरीकरण से खेती करने लायक जमीन का रकबा कम होता चला जा रहा है जिसकी वजह से रसयनिक खेती से दुगना अनाज का उत्पादन असंभव सा प्रतीत हो रहा है जो कि एक चिंतन का विषय हैl(5)
3. रसायनिक खेती से प्रकृति का विध्वंस होता है l हमें जरूरत के हिसाब से प्रकृति के संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए l मनुष्य के अलावा कोई भी दूसरा जीव अपनी आवश्यकता से अधिक प्रकृति के संसाधनों का उपयोग नहीं करता है अतः हमें अपने लिए तथा खेती की गतिविधियों के लिए जरूरत के हिसाब से प्रकृति के सीमित संसाधनों का सीमित ही इस्तेमाल करना चाहिए l
4. खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए लाभदायक ,सुरक्षित तथा प्रकृति व समाज हितेषी खेती कैसे की जाए यह भी एक चिंतन का विषय है l(6)
5. प्रकृति के संसाधनों , 
खाद्यान्न और पानी को बर्बाद ना करें जिससे भविष्य में रोटी और पानी के लिए लड़ाई ना हो l
6. रसायनिक खेती का विकल्प ढूंढना आज की प्रथम प्राथमिकता है l यह भी एक चिंतन का विषय हैl(7)
7. आईपीएम मैं प्राकृतिक खेती की विधियों को तथा इनपुट को शामिल करते हुए खेती करना रासायनिक खेती का एक विकल्प हो सकता है l
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     आई पी एम एवं प्राकृतिक खेती के            क्रियान्वयन सूत्र:-
---------------------------------------------------------- * मिट्टी को बलवान बनाएं, खाद्यान्न की उपज       बढ़ाएं l
* गाय का गोबर गाय का मूत्र
प्राकृतिक खेती का पहला सूत्र
*Feed the soil , not to the plant is the first principle of Natural farming.
* जहर मुक्त खेती एवं रोग मुक्त समाज
   यही है आई पी एम एवं प्राकृतिक खेती का   , ,  प्रयास l
*जब होगा जहर मुक्त अनाज हमारा
  तब होगा स्वस्थ समाज हमारा
* बदलता फसल चक्र और मिश्रित खेती
   इस विधि से करो प्राकृतिक खेती
* देसी बीज और देसी गाय
  देसी केचुआ और देसी उपाय
*Go away  from chemicals 
And come closer to nature.
* जीवामृत और घन जीवामृत
  प्राकृतिक खेती के धन जीवामृत
* जैव विविधता का करो संरक्षण
   प्राकृतिक खेती का यही है प्रशिक्षण
* पूर्वज किसानों के ज्ञान का संज्ञान लेते हुए खेती करने से प्राकृतिक खेती की विधि का क्रियान्वयन सही तरीके से कर सकते हैं l
* मिट्टी को बलवान बनाए
  फसलों की उपज बढ़ाएं
* जीवामृत से सूक्ष्म जीवों की करो बढ़ोतरी
   फसल उपज में करो तरक्की
* खेतों की मेड़ों पर पेड़ लगाएं
,  फसलों में जैव विविधता बढ़ाएं
* खरपतवार ओं को ना जाने दुश्मन
   यह करते हैं मिट्टी और पानी का संरक्षण
*Humus और ऑर्गेनिक कार्बन
फसलों की उपज बढ़ाने के दो ही साधन
* सूक्ष्मजीव और सूक्ष्म तत्व
   प्राकृतिक खेती में रखते महत्व
* प्रकृति में प्रतिस्पर्धा नहीं सहजीवन है
  इसी से तो दुनिया में जीवन हैl( सहजीवन से जीवन)
* प्राकृतिक खेती में खेतों की गहरी जुताई केंचुए एवं पौधों की जड़ों करती है l
*. जब बगैर दवाई के कोरोना ठीक किया जा सकता है तो बगैर कीटनाशकों के खेती भी की जा सकती है l
*. देसी बीज एवं देसी गाय की नस्ल बचाना, खेती से रसायनों को दूर करना तथा पूर्वज किसानों के कृषि ज्ञान को भावी पीढ़ी तक ले जाना यह चार टैगलाइन है आधुनिक एवं प्राकृतिक खेती की l
* रासायनिक खेती से क्षतिग्रस्त हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र पुनर स्थापन करते हुए उसे फिर से सक्रिय बनाना और जैव विविधता का संरक्षण करना आज की प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम की प्रथम प्राथमिकता है l
-------------'‐‐---------------------------------------
9. खरपतवार एक प्राकृतिक घटना है जो सदियों से होती आई है और भविष्य में होती रहेगी l बस हमें यह सोचना है कि क्या खरपतवार चिंता का विषय है l प्रकृति कभी जमीन खाली नहीं छोड़ती जहां कुछ नहीं बोया जाता वहां खरपतवार उगा देती है l खरपतवार कभी हानिकारक नहीं होते l और कुछ खरपतवार नाइट्रोजन फिक्सिंग का कार्य करते हैं l खरपतवार खेत में 1 इंडिकेटर का काम करते हैं और बताते हैं कि आपकी जमीन में क्या कमी है l खरपतवार भूमि में नमी को भी संरक्षित करते है l... खरपतवार ओं को फसल से ऊपर ना बढ़ने दें और उसे खेत की मिट्टी में ही दबा दें l खरपतवार को पसंद से बाहर ना भेजें बल्कि उसे मिट्टी में ही दबा दें l
10 . प्रकृति में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु एक सुनियोजित, स्वयं नियंत्रित, स्वयं संचालित, स्वयं विकास , स्वयं पोशी  , सहजीवी, व्यवस्था है जिसको सुविधा प्रदान करने से प्राकृतिक खेती का क्रियान्वयन सुगमता से होता है l
11. प्राकृतिक खेती में शोषण नहीं बल्कि पोषण है l
12.


Saturday, October 29, 2022

History of organized pest Surveillance and monitoring programme in India

In late 1960s high yielding varieties of Rice Taichung -1(TN-1),and IR8 were introduced to maximise crop production..Lateron these varieties were found widely attacked by Green leaf hoppers,(Nephotetix  sp )RTV and BLB during 1969 kharief season in UP,Bihar,WB,Orissa and MP.
Certral Govt of India along with Ford foundation in collaboration with state Govts had started adhoc  Rice surveys,with periodicity of 10 days during kharief 1970 onwards .This was the real beginning of organised crop pest Surveillance programme in India.
 During 4th five year plan12 Central Surveillance stations were established were increased to 19 lateron .

Bio-control Scheme of Dte. of Plant Protection,Quarantine and Storage .

Directorate of plant Protction ,Quarantine and Storage (Dte
of PPQ&S)had implemented a pilot project for the establishment of parasites and predators for biocontrol of insect pests and weeds during fourth five year plan  which lateron converted as a scheme entitled as "Control of crop pests and weeds by biological means"which continued up to 7th five year  plan.Initially only five Central Biological Control Stations(CBCS) were set up at Bangalore(Karnataka state,Faridabad,(Haryana),Gorakh pur (UP ),Hyderabad (A P )and Srinagar of J& k state up to end of 5th five year plan.The project was further continued during 6th plan.During 6th five year plan CBCS Solan (HP),Sriganganagar,(Raj)Burdwan(WB) and Surat(Guj),Raipur(MP now in Chhattishgarh),were also set up.
  The year wise opening of CBCS,s is given below:-
1.Hyderabad      1971
2.Faridabad      1972  
3.Gorakhpur      1974
4.Bangaloe        1976
5.Srinagar           1976
6.Solan                1980-81
7.Surat                  1981
8.Burdwan            1980-81
9.Raipur                 1983
10.Bhuveneshwar1983
11.Parasite Multiplication unit  Bangalore              1982-83.
 In January 1972  ICAR  has also launched an All India Coordinated Resarch project on Biological Control
of crop pests though 12 Co operative centresof National Centre for biocontrol at Indian Institure of Horticultural research Bangalore in Jan.1977.
State govt of kerala,TN,Karnataka,Orissa and AP have also implemented biocontrol programme of Coconut blackhead Catterpillar,Sugarcane borers, Scale insect of Sugarcane ,Castor Semilooper,and Spodoptera litura.
Some firms have also started Commercial insectaries .
    Commonwealth Institute of Biological control  Bangalore was established in 1957.



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Monday, October 17, 2022

आईपीएम- संक्षिप्त विकास ,परिभाषा एवं विचारधारा संबंधी अनुभव और विचार


आईपीएम का संक्षिप्त विकास
सन 1943 हुए Bengal Famine के बारे में विस्तृत रूप से छानबीन करने के लिए तब की ब्रिटिश इंडिया सरकार ने सन 1944 में एक वुडहेड कमीशन नियुक्त किया था जिसकी संस्तुति आधार पर तब कि ब्रिटिश इंडिया सरकार ने सन 1946 में एक सेंट्रल प्लांट प्रोटक्शन ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना आसफ अली रोड न्यू दिल्ली मैं की थी जो बाद में सन 1969 में फरीदाबाद में आ गया  l इसी सेंट्रल प्लांट प्रोटक्शन ऑर्गेनाइजेशन का नाम बाद में बदल कर Directorate of Plant protection,Quarantine and Storage( वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय) हो गया  l इस निदेशालय का मुख्य उद्देश्य भारत की विभिन्न राज्य एवं केंद्र सरकार को वनस्पति संरक्षण से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सलाह देना है इस निदेशालय ने भारत के विभिन्न राज्यों में 13 केंद्रीय वनस्पति संरक्षण केंद्रों की स्थापना की जो राज्य में वनस्पति संरक्षण के संबंधित तकनीकों का क्रियान्वयन एवं विकास करते थे l          चौथी पंचवर्षीय योजना मै भारत सरकार के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के द्वारा एक पायलट प्रोजेक्ट या प्रायोगिक परियोजना जिसका नाम"Establishment of Parsites and predators for BioControl of crop pests and weeds " था प्रारंभ किया गया जो बाद में"Bio-Control  of crop pests and Weeds " नाम की स्कीम के रूप में परिवर्तित हो गया l इस योजना के अंतर्गत शुरू में 5 केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों की स्थापना फरीदाबाद ,गोरखपुर ,बेंगलुरु, श्रीनगर एवं हैदराबाद मै की गई जिनकी संख्या बाद में 11 हो गई थी l  जिनका मुख्य कार्य फसलों के हानिकारक जीवो के प्राकृतिक शत्रुओं का प्रयोगशाला में उत्पादन करके उनकी निर मुक्ति विभिन्न एवं विशेष प्रकार के फसलों के हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु खेतों में करके खेत फसल पर्यावरण में उनका स्थापन करना तथा विशेष हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु उनकी प्रभावशीलता का अध्ययन करना था l इसके साथ साथ यह केंद्र विभिन्न प्रकार के फसलों के नासी जीवो एवं उनके प्राकृतिक शत्रुओं का सर्वेक्षण करते थे तथा फसलों के विभिन्न हlनी कारक जीवो के indigenous प्राकृतिक शत्रुओं का विभिन्न फसल वातावरण में बढ़ोतरी एवं संरक्षण भी करते थे l
    वर्ष 1969 के खरीफ सीजन में धान की फसल में उत्तर प्रदेश, बिहार, वेस्ट बंगाल ,उड़ीसा और मध्यप्रदेश के राज्यों में Green leaf hopper,Rice Tungru Virus, और Bacterial leaf blight का भयंकर प्रकोप हुआ जिनकी निगरानी एवं सर्वेक्षण हेतु Ford Foundation, राज्य सरकारों तथा भारत सरकार के वनस्पति संरक्षण ,संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के आपसी सहयोग से धान की फसल में 10 दिनों के अंतराल पर वर्ष 1970 से Adhoc Rice Surveys प्रारंभ किए गए जो फसलों के हानिकारक जीवो के लिए नासि जीव निगरानी एवं आकलन कार्यक्रम की संगठित शुरुआत थी जिसके अंतर्गत चौथी पंचवर्षीय योजना मैं भारत के विभिन्न राज्यों में 12 केंद्रीय निगरानी केंद्रों की स्थापना की गई जिनकी संख्या बाद में 19 हो गई थी l
      वर्ष 1981 से 40 हेक्टर धान की फसल मैं तथा 10 हेक्टर कपास की फसल में आई पी एम प्रशिक्षण  एवं प्रदर्शन कार्यक्रम वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के विभिन्न केंद्रीय वनस्पति रक्षा केंद्रों ,केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों तथा केंद्रीय निगरानी केंद्रों  द्वारा आपसी सहयोग से देश के विभिन्न राज्यों में शुरू किए गए  l इसी वर्ष यानी 1981 से ही राज्य सरकारों के आग्रह पर विभिन्न राज्यों में दो दिवसीय आईपीएम प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करना प्रारंभ किए किया गया l वर्ष 1984 से संपूर्ण फसल अवधि के दौरान के सीजन लॉन्ग ट्रेनिंग प्रोग्राम, 1992-93 से आईपीएम क्लस्टर डेमोंसट्रेशन कम कृषक खेत पाठशाला कार्यक्रम प्रारंभ किए गए जो बाद में आईपीएम कृषक खेत पाठशाला कार्यक्रम में परिवर्तित हो गए l
    इन आई पी एम प्रदर्शनों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों की उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार के उपरोक्त निदेशालय ने वर्ष1991-92 मैं देश के वनस्पति संरक्षण कार्यक्रम का पुनर्गठन किया गया जिसमें 13 केंद्रीय वनस्पति संरक्षण केंद्रों ,19 केंद्रीय निगरानी केंद्रों तथा 11 केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों को एक साथ मिलाकर देश में" भारत में Nashijeev प्रबंधन दृष्टिकोण का सुदृढ़ीकरण तथा आधुनिकीकरण " नाम की परियोजना के अंतर्गत एक राष्ट्रीय एकीकृत ना सी जीओ प्रबंधन कार्यक्रम(National Integrated Pest Management Programme I.e.National IPM Programme  ) का गठन किया जिसके अंतर्गत देश के 22 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 26 केंद्रीय एकीकृत Nashijeev प्रबंधन केंद्र (Central Integrated Pest Management Centeres I.e.CIPMCs 
स्थापित किए गए जिनकी संख्या बाद में 36 हो गई l जिनका मुख्य कार्यक्षेत्र आईपीएम की गतिविधियों को देश के विभिन्न राज्य एव केंद्र शासित प्रदेशों मैं लोकप्रिय बनाना तथा क्रियान्वयन कराना है  l 
    वर्ष 1988 मै ICAR  ने National Centre For   Integrated Pest Management ,Faridabad मैं स्थापित किया जो बाद में IARI
Campus Pusa  New Delhi मैं शिफ्ट हो गया l 
आईपीएम की विचारधारा
, , IPM is "To get rid of from pest problems with minimum expenditure,with or without use of chemicals in farming and with least disturbance to Environment, nature and society".
खेती करने में कम से कम खर्चे में, रसायनों का कम से कम अथवा ना प्रयोग करते हुए और पर्यावरण ,प्रकृति और समाज को कम से कम बाधित करते हुए खेतों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो की समस्याओं से छुटकारा प्राप्त करना आईपीएम की विचारधारा है l
     आईपीएम की परिभाषा 
         आईपीएम खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की एक विचारधारा है जिसमें खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की सभी विधियों को समेकित रूप से इस प्रकार से रूपांतरित करके और प्रयोग करके जिससे सामाजिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, प्रकृति ,समाज, जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र, को महफूज रखते हुए कम से कम खर्चे में तथा कम से कम मात्रा में सिर्फ आपातकालीन परिस्थिति के निपटान हेतु अंतिम विकल्प के रूप में रसायनों का उपयोग करते हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए खाने योग्य सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है  साथ ही साथ भूमि की उर्वरा शक्ति की बढ़ोतरी,  फसल परिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता का संरक्षण एवं रसायनों के दुरुपयोग से क्षतिग्रस्त हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन भी किया जाता है l
         किसी भी विचारधारा को स्वयं के रोजगारी, वैज्ञानिक , राजनीतिक ,सामाजिक, आर्थिक ,पर्यावरण, प्रशासनिक आदि अनुभव के आधार पर स्वयं परिभाषित करना चाहिए l इसका अर्थ है नहीं है की पूर्व वैज्ञानिकों, कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ताओं अथवा संस्थानों के द्वारा लिखी गई किसी भी विचारधारा की परिभाषाएं गलत है l समय परिवर्तनशील है समय के परिवर्तन के साथ-सथ     परिस्थितियां एवं आवश्यकताएं बदलते रहते हैं उसी प्रकार से किसी भी विचारधारा की परिभाषा में परिवर्तन होना भी जरूरी होता है क्योंकि विचारधारा भी आवश्यकताओं के आधार पर समय-समय पर बदलती रहती है l



           आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु उपरोक्त विचारधारा एवं परिभाषा में खेती करने अथवा वनस्पति संरक्षण  अथवा फसलों के  हानिकारक जीवो के प्रबंधन हेतु रसायनों अथवा रसायनिक कीटनाशकों  के प्रयोग की संस्तुति सिर्फ अंतिम विकल्प के रूप में हानिकारक जीवो की आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु दी गई है l हमारे कृषक भाई तथा आईपीएम के अन्य भागीदार आईपीएम की उपरोक्त परिभाषा एवं विचारधारा की इसी संस्तुति का दुरुपयोग करके वनस्पति संरक्षण हेतु तथा फसल उत्पादन हेतु रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग अभी तक करते चले आ रहे हैं जबकि उपरोक्त परिभाषा विचारधारा के अनुसार फसल उत्पादन और फसल रक्षा हेतु  रसायनों का उपयोग कम से कम सिर्फ आपातकालीन परिस्थिति मैं ही करना चाहिए l  खेती में रसायनों का उपयोग कम करना आई पी एम का प्रथम उद्देश्य है l
2. आईपी एम का क्रियान्वयन रॉकेट साइंस की तरह किया गया जिसमें आईपीएम इनपुट के उत्पादन  हेतु प्रयोगशालाओं का होना आवश्यक था  l  इसके साथ साथ आईपीएम इनपुट के व्यापारिक उत्पादन हेतु कोई भी उत्पादक एजेंसी आगे नहीं आई क्योंकि आईपीएम इनपुट जैसे जैव नियंत्रण कार को की सेल्फ लाइफ बहुत कम है अतः वांछित मात्रा में ज्यादातर आईपीएम इनपुट की उपलब्धता संभव नहीं हो सकी  l यद्यपि आई पी एम डेमोंसट्रेशन हेतु विभिन्न प्रकार की एजेंसियों के द्वारा आई पी एम इनपुट की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकी l परंतु रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों की तरह आईपी एम इनपुट की प्रोडक्शन अथवा उत्पादन एवं उपलब्धता किसानों के द्वार पर सुनिश्चित नहीं की जा सकी l अतः आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक आईपीएम इनपुट की उपलब्धता कृषकों के द्वार पर ना होना आईपीएम के क्रियान्वयन में बहुत बड़ी बाधा है l
     हमारे व्यक्तिगत विचार से आई पी एम मैं रसायनिक नियंत्रण विधियों अथवा रसायनों का इस्तेमाल सिर्फ pest इमरजेंसी के निपटान हेतु, देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु, तथा कृषकों, कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं मैं रसायन रहित विधियों के परिणामों के ऊपर आत्मविश्वास का ना होना तथा रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के उद्योगों के  मालिकों के interest की वजह ही होना चाहिए l    ,             आईपीएम डेमोंसट्रेशन मैं प्रयोग किए गए विभिन्न प्रकार के आईपीएम इनपुट जैसेBiocontrol agents ,biopesticides,,different types of traps , विभिन्न प्रकार के एवं विशेष हानिकारक जीवो के लिए लाभदायक सिद्ध हुए l
     अतः यह आवश्यक है की विभिन्न प्रकार के आई पीएम इनपुट  की उत्पादन विधियों का इस प्रकार से सरलीकरण किया जाए जिससे वह किसानों के द्वार पर उत्पादन किए जा सकें जैसे कि प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले इनपुट का उत्पादन किसानों के द्वार पर  आसानी से किया जा सकता है l
3. प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग किए जाने वाले इनपुट जैसे जीवामृत, घन जीवामृत बीजा मृत, विभिन्न प्रकार के पौधों के भागों के सत का उत्पादन कृष को के द्वारा उनके घरों   पर ही किया जा सकता है और उनका प्रयोग उनके खेतों में किया जा सकता है l
4. प्राकृतिक खेती में प्रयोग की जाने वाली सभी विधियां आईपी एम में प्रयोग की जा सकती है l
5. जैविक खेती में प्रयोग की जाने वाली कुछ inputs जैसे वर्मी कंपोस्ट बहुत ही महंगे होते हैं तथा उनसे पर्यावरण में वैश्विक ताप क्रम वृद्धि(Global Warming ) जैसी समस्याएं भी सामने आ जाती है l 
6. आईपी एम के क्रियान्वयन करते समय सिर्फ हानिकारक जीवो की संख्या प्रबंधन पर ध्यान दिया गया है परंतु जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए l यद्यपि फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवों के संरक्षण हेतु भिन्न प्रकार के उपाय जैसे इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग अर्थात मुख्य फसल के चारों तरफ एवं इंटरक्रॉपिंग के रूप में विभिन्न प्रकार के लाभदायक एवं हानिकारक कीटों को आकर्षित करने वाली फसलों को बोना, रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को ना करना, फसल के अवशेषों को ना जलाना तथा खेतों की मेड़ों पर रखना, बदल बदल कर उचित फसल चक्र अपनाना, फूल वाली फसलों को लगाना जैसे उपाय किए गए l परंतु फसल पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता की बढ़ोतरी एवं संरक्षण हेतु और भी अनेक प्रकार के और उपायों के आवश्यकता है जो प्राकृतिक खेती में बताए गए हैं इन उपायों को आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु आसानी से प्रयोग किया जा सकता है l
7 i.जहर मुक्त खेती एवं रोग मुक्त समाज
    यही है आई पीएम का प्रयास
 ii. आई पीएम फॉर बेटर एनवायरनमेंट
iii. जब होगा जहर मुक्त अनाज या भोजन हमारा
     तभी बनेगा स्वस्थ समाज हमारा
iv. जहर मुक्त खेती करने के लिए आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती अपनाएं l
V. जहां तक काम चलता हो गीजा से
     वहां तक बचना चाहिए दवा सेl
VI. No first use of chemicals in farming. खेती करने हेतु रसायनों का प्रथम उपयोग ना करें l
Vii. आई पी एम तथा प्राकृतिक खेती हेतु फसल निगरानी कार्यक्रम को सघनता पूर्वक लागू करते हुए जमीन के ऊपर एवं नीचे के फसल पारिस्थितिक तंत्र का एक निश्चित समय अवधि पर विश्लेषण करें तथा खेती में अपनाए जाने वाले अगले कदम अथवा गतिविधि के बारे में निर्णय लें l
Viii. प्राकृतिक खेती में अपनाई जाने वाली सभी गतिविधियों को आई पी एम कार्यक्रम में शामिल करें तथा फसल उत्पादन लागत को कम से कम करते हुए खेती से सुरक्षित भोजन के साथ साथ खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करें l यही आई पी एम का मुख्य उद्देश्य है l जमीन को बलवान बनाते हुए अर्थात जमीन की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखना अथवा बढ़ाना तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन करते हुए खेती करना भी प्राकृतिक खेती का मुख्य उद्देश्य है l
8. प्राकृतिक खेती जमीन को सेहतमंद बनाने के सिद्धांत पर आधारित है l
9.Go away from chemicals and come closer to the nature is the principle of IPM and Natural Farming.
रसायनों को दूर करते हुए तथा प्रकृति के निकट आते हुए खेती करना आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का प्रमुख सिद्धांत है l
10. प्राकृतिक खेती आई पी एम का ही एक सुधरा हुआ रूप है जिसमें रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति और जमीन के ऊपर सफर नीचे पाए जाने वाले पारिस्थितिक तंत्र मैं पाई जाने वाली जैव विविधता को बढ़ावा दिया जाता है l
11. सभी रासायनिक कीटनाशक हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण, फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता,nature, प्रकृति और उसके संसाधनों तथा समाज के लिए हानिकारक है l
12. रसायनिक कीटनाशक फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो से अधिक हानिकारक होते हैं l Chemical pesticides are more harmful than the pests.  
13 Agroecosystem Analysis and Pest Risk Analysis is needed at weekly basis to assess the need of the practices or activities to be applied in the crop field .
13.All organisms found in Agroecosystem are not pests .Majority of them are beneficial. फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी जीव हानिकारक नहीं होते हैं बल्कि उनमें से ज्यादातर लाभदायक होते हैं l
14. फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु कैलेंडर पर आधारित फसलों पर रसायनों का प्रयोग उचित नहीं है क्योंकि यह फसल उत्पादन वृद्धि के लिए लाभदाई नहीं है l
15. फसल उत्पादन से जुड़े हुए सभी कार को की सक्रियता रखने के लिए इनसे संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए l
16 . जब तक मानव जाति का वजूद दुनिया में है तब तक आई पी एम का Scope दायरा अथवा कार्य क्षेत्र बना रहेगा l आई पी एम में नवीन शोध एवं गतिविधियों को समावेश करने की जरूरत है l हो सकता है आवश्यकतानुसार आई पी एम का नाम, प्रारूप एवं क्रियान्वयन करने का तरीका समय अनुसार बदल जाए परंतु आई पीएम का मूल उद्देश्य ब्रह्मांड का कल्याण सुनिश्चित करते हुए खेती करना सदैव बना रहेगा l
17. "राष्ट्रीय आई पी एम कार्यक्रम" की स्थापना खेती में अंधाधुंध रूप से प्रयोग किए जाने वाले रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग को कम करने तथा उसकोzero  स्तर तक लाने के उद्देश्य से की गई थी l इस कार्य के लिए भारत सरकार के द्वारा आईपी एम भागीदारों तथा कृषकों के बीच प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण तथा जागरूकता कार्यक्रमों को लागू किया गया l अब मुझे इस बात की खुशी हो रही है की देश के विभिन्न भागों में खेती में रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए खेती से संबंधित विभिन्न प्रकार के बुद्धिजीवियों, जागरूक किसानों, वैज्ञानिकों , कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ताओं के बीच में रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरको के दुष्प्रभाव के बारे में स्वयं जागरूकता उत्पन्न हुई है और वह विभिन्न नामों से रसायन रहित खेती को अपना रहे हैं एवं प्रोत्साहित कर रहे हैं l साथ ही साथ श्री सुभाष पालेकर जैसे बुद्धिजीवी किसान अन्य किसानों के लिए प्रदर्शन एवं प्रचार एवं प्रसार कार्यक्रम को अपनी तरफ से चला रहे हैं और उनकी लोकप्रियता विभिन्न प्रकार की खेती जैसे प्राकृतिक खेती ,जैविक खेती आदि के रूप में सोशल मीडिया जैसे तरीकों से कर रहे हैं l श्री सुभाष पालेकर जी के द्वारा देश के विभिन्न भागों में किए गए प्राकृतिक खेती के एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों से यह सिद्ध हो चुका है कि बगैर रसायनों के भी खेती की जा सकती है तथा प्राकृतिक खेती आदि को रासायनिक खेती के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है l
18. आईपीएम मैं खेती करने हेतु शोध किए गए नवीनतम रसायन रहित विधियों एवं इनपुट्स तथा ज्ञान को समावेशित करने का स्कोप हमेशा रहता है और बना भी रहेगा l इसी से फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा अथवा खेती करने की विभिन्न विचारधाराओं का विकास होता है l
                                              राम आसरे
             अपर वनस्पति संरक्षण सलाहकार                     आईपीएम( सेवानिवृत्त)
 ,         ,    वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह                   निदेशालय  फरीदाबाद   





Wednesday, October 12, 2022

Pest problems appeared in past.

1.1990-2001  American bollworm in Cotton which calm down up to 2oo5.
2.2005-2007Mealy bug 
3.2007  White fly and Greenhopper in Cotton.
अनुभव- कीड़ों को जितना छेड़ो गे कीड़े उतना आप को आप को परेशान करेंगे l More pesticides more pest problem.
कीटनाशकों के बगैर कपास हो सकती है परंतु कीटों के बगैर कपास नहीं हो सकती l

How to make Soil Organic

Structure of Soil :-1.    O2(25%)+H2O(25%)+Minerals(40-45%)+Organic matter(5%)
2.Organic matters consist of Micro organisms and carbon.All living organisms found around Carbon which Lateron converts in Humus . We can enhance the carbon by using Vermicompost,Crop rotation,Cowdung manure,Mulching ,green manuring .
3.There is a parellar  world found under the soil in which microorganisms and micronutrents are found associated with soil Microorganisms help to make free thse minerals free and make available to the roots of the plants through exjuvae .
4.The main minerals are Carbon,Hydrogen,,Oxygen, 
NPK
Ca,Mg,Sulphur 
Boron,Zinc,,Fe,Mn 
Rhyzobium bacteria helps to fix Nitrogen from air in to the roots of the plants .
किसानों को प्रकृति की संरचना को अच्छा बनाने में कार्य करना चाहिए l
जैविक खेती को कांपलेक्स( जटिल) ना बनाएं उसे सरल रखें l.

Sunday, October 9, 2022

Different themes of IPM

1. IPM for better Environment .
2.To reduce the use of chemical pesticides in farming .
3.More  yield with minimum expenditure .
4 Grow safe food .
5.Food safety and food security must go simultaneously. 
6.IPM and Natural farming facilitate the process of crop production and protection system. 
7. जहां तक काम चलता हो गीजा से
   वहां तक बचना चाहिए दवा से
8. दवा उपाय नहीं है बल्कि प्रतिरक्षा शक्ति का निर्माण करना उपाय है l
9. हरित क्रांति में पर्यावरण का विनाश किया है
10.Natural Farming is exploit less farming . प्राकृतिक खेती शोषण रहित खेती है l
11. प्रकृति में रासायनिक खेती का अस्तित्व नहीं है l
12. रासायनिक खेती ईश्वर मान्य नहीं है l
13. रसायनों को खेती से बाहर निकालना ही आज की खेती का प्रमुख उद्देश्य है l
14. Nature has a self developing,self Nourished, Symbiotic  process of development .
15. जहर मुक्त खेती और रोग मुक्त समाज
       यही है आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का           प्रयास 
16. प्राकृतिक खेती देसी गाय, देसी बीज, देसी खाद, देसी पद्धति, देसी, Earthworm पर आधारित है l

Sunday, October 2, 2022

IPM Slogons

1. जहर मुक्त खेती एवं रोग मुक्त समाज
     यही है आई पी एम का प्रयास
2. जब होगा जहर मुक्त अनाज हमारा
    तब बनेगा स्वस्थ समाज हमारा
3. प्रकृति की ओर वापस चले यही है प्राकृतिक खेती का सिद्धांत. L
4.Adopt IPM for better Environment 
5. शौ के दीदार अगर है तो नजर पैदा कर
6. आज कल मे राशन की कतारों में खड़ा नजर आता हूं
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पाता हूं
7. जिसने अपने खेत जलाएं समझ लो उसने अपने भाग्य जलाए l
8. कृषि को दिनचर्या बनाएं व्यापार नहीं l
9.Feed to soil not to crop .




Thursday, September 29, 2022

Conservation of biodiversity in agroecosystem.

What is biodiversity?
फसल पारिस्थितिक तंत्र में जमीन के नीचे एवं जमीन के ऊपर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं तथा वनस्पतियों को सम्मिलित रूप से बायोडायवर्सिटीअथवा जैव विविधता कहते हैं l
* एक ऐसा जीवन जिसमें विविधता हो अर्थात विभिन्न प्रकार के जीव जंतु एवं पेड़ पौधे पाए जाते हैं बायोडायवर्सिटी कहलाता है  l
We must give equal opportunity for the survival of each and every organism found in a particular locality.
 conservation of biodiversity:-
1.Removal of those cultural practices from farming system which are harmful to the benefecial organisms found in agroecosystem and promotin of those cultural practices in the farming system which can promote the build of population of the beneficial organisms found in agroecosystem is called as conservation of biodiversity .
2.To make Environment and  habitate better suited for survival and buildup of the population of beneficial organisms found in agroecosystem is called as conservation of biodiversity. 
    Conservation of biodiversity is one of the major a activities of implementation of Natural farming as well as IPM .
The following a activities will help to conserve biodiversity in agroecosystem while doing farming. 
*Total  removal of  use of chemicals in the farming system.say no to chemicals .
*Avoiding monocropping and adopt multi cropping. 
*Adopting suitable crop rotation .
* Growing intercropping and border cropping .
* Avoid trash burning and promoting mulching of crop residues in the crop field.
* Using Cow dung and cow urine based natural farming inputs. 
*Planting trees around borders as border crops .
*Very less human intervention is needed for the survival of each an every organisms found in a particular area  or crop field .

*Lets plant different types of trees ,and plants in a field .We must plant fruit plants ,vegetable crops  ,pulses ,oilseed crops , flower plants etc in a same field to conserve biodiversity.
  **   Different types of biocontrol agents found in an agroecosystem:-
1.Spiders 
2.Insect predators 
3.Insect parasitiods 
4.Insect pathogens 
5.Antagonestic fungi
6.Insect nematodes  DD136 Nematode 
7.Insect viruses .
8.Insect pathogenic fungi  Beuveria bassiana,Metarhyzium anisoplae ,Fusarium etc .
**.Pollinators  such as bautteries etc.
** Earthworms and other soil dwelling organims .

Wednesday, September 28, 2022

प्राकृतिक खेती के सिद्धांत

1. जमीन की मिट्टी पौधों के उत्पादन हेतु आवश्यक तत्वों का महासागर है l
2. जमीन की मिट्टी जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले जमीन में पाए जाने वालेHumus नामक जैव पदार्थ का महासागर है l
3. Humus  का निर्माण अनंत करोड़ बैक्टीरिया के द्वारा पौधों के अवशेषों के विघटन से होता है l
4. हवा पानी एवं नाइट्रोजन का महासागर है l
5. कार्बन डाइऑक्साइड एवं पानी सहायता से पौधे क्लोरोफिल तथा सौर ऊर्जा से प्राप्त प्रकाश की सहायता से भोजन का निर्माण करते हैं यह भोजन कच्ची शर्कर के रूप में पौधों को प्रत्येक भाग मैं जाता है l
6. फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले जैव विविधता फसलों के लिए परागण क्रिया में मदद करते हैं तथा हानिकारक जीवो की संख्या को नियंत्रित करने में अथवा प्रबंधन करने में मदद करती है l
7. खरपतवार हमेशा हानिकारक नहीं होते कभी हुए लाभदायक भी होते हैं खरपतवार ओं को फसल पर्यावरण में आच्छादन करने से जमीन में नमी का संरक्षण रहता है तथा अनंत संख्या में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों के द्वारा ह्यूमस का निर्माण होता है जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में मदद करता हैl अतः खरपतवार ओं का नियंत्रण करते समय चीज को सुनिश्चित कर लेना चाहिए की खरपतवार ओं से कितनी हानि हो सकती है और क्या यह खरपतवार फसल पर्यावरण में पौधों के लिए भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा के रूप में तो व्यवहार तो नहीं करेंगे l
8.

Saturday, September 24, 2022

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023

भारत में आदिकाल से मोटे अनाज की खेती होती चली आ रही है और वह हमारे भोजन का अहम हिस्सा रहे हैं l भारत सरकार के द्वारा वर्ष 2018 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया था l अब भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने अगले वर्ष अर्थात 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया है जिसे 70 देशों ने समर्थन दिया l
   मोटे अनाज में मुख्य रूप से बाजरा, मक्का , ज्वार  रागी, सामा, कोदो, कंगनी ,कुटकी और जो शामिल है जो हर दृष्टि से सेहत के लिए लाभदायक है l पिछली सदी के सातवें दशक में हरित क्रांति के नाम पर गेहूं व धान को प्राथमिकता देने से मोटे अनाज उपेक्षित  हो गए इसके बावजूद पशुओं के चारे तथा औद्योगिक इस्तेमाल बढ़ने के कारण इनका महत्व बना रहा l करोना के बाद मोटे अनाज इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए जिन्हें सुपरफूड्स के नाम से जाना जाने लगा है l मोटे अनाज ग्लूटेन मुक्त होते हैं l
  न केवल सेहत बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी मोटे अनाज किसी वरदान से कम नहीं l इन की पैदावार के लिए पानी की जरूरत कम पड़ती है खाद्य और पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ यह पशु चारा भी मुहैया कराते हैं l इनकी खेती अधिकतम वर्षा भी इलाकों मै उर्वरक एवं कीटनाशक ओके होती है  l मोटे अनाजों की खेती से विविधता पूर्ण खेती को बढ़ावा मिलेगा जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी साथ ही साथ रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के इस्तेमाल में कमी आएगी l
      स्वस्थ एवं पर्यावरण के अनुकूल मोटे अनाज खेती की स्थिति और किसानों के दिन फेरने में  पूरी तरह सक्षम है l

Friday, September 23, 2022

Few questions related with IPM and ZBBNF.

1.Wheather farming can be done without use of chemical pesticides and fertilizers  ?
And :  Yes 
2.Wheather  Farming can be done with minimum expenditure or without expenditure ?
And : Yes.
3.Wheather the farmers can adopt IPM or Z B B N F  or will believe on these Systems of Farming ? 
And :Now the farmers are doing farming using above technologies.  .The answer is yes .
4.Wheather the farmers  know about beneficial organisms found in agroecosystem and wheather they can conserve these beneficial organisms in agroecosystem. 
And : yes. 
5.Wheather IPM system of farming and pest management are now   being adopted by the farmers  ?
Ans :yes.
6.Earlier the IPM inputs like biocontrol agents ,biopesticides ,etc could not be made available to the farmers at their doorsteps but now the inputs required for the implementation of Z B B N F  can be produced by the farmers at their door steps easily  which will facilitate the process of crop production  and protection already going on in the nature
.Wheather inputs required for the implementation of ZBBNF  can be produced by the farmers at the door steps    ?
And Yes .
7.Wheather  multicropping will facilitate the conservation of beneficial organisms found in agroecosystem?
And  :-- Yes .
8.Wheather multicropping will help to promote and  conserve biodiversity  ?
Ans :- Yes.
9.Wheather IPM and ZBBNF Both help in restoration of damaged agroecosystem. 
And Yes.
10 .wheather IPM and ZBBNF both are bioecological approaches for pest management and drop production  ?
Ans : Yes but ZBBNF system is more nearer to  the nature  and ecosystem.It is a way of farming through modification of Ecosystem.

Sunday, September 18, 2022

प्राकृतिक खेती by Dr Bharat Bhushan Tyagi

1. धरती, पेड़ पौधे और पशु पक्षियों के साथ पूरकता पूर्वक रहना या जीना अथवा खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है l
2. प्राकृतिक खेती प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित होती है l प्रकृति में अपने आप में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा तथा जैव विविधता एवं फसल फसल पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखने वाली व्यवस्था चल रही हैl ऐसी व्यवस्था का अध्ययन करना और उसको लागू करके खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है l
दोस्तों यह अनुभव किया गया की खेती करते समय हम फसल पारिस्थितिक तंत्र , प्रकृति उसके संसाधनों तथा जैव विविधता एवं समाज पर खेती करने के तरीके का पड़ने वाले प्रभाव का विशेष गहराई से अध्ययन नहीं किया गया या इनको उपेक्षित किया गया और रासायनिक खेती को वरीयता पूर्वक क्रियान्वयन किया गया जिससे समाज और प्रकृति उसके संसाधन, फसल पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता बुरी तरह से प्रभावित हुए तथा क्षतिग्रस्त हुए l जिनके पुनर स्थापन हेतु हमारे विभिन्न बुद्धिजीवियों द्वारा प्राकृतिक खेती विचारधारा लाई गई जो रसायन रहित, दुष्प्रभाव रहित तथा जैव विविधता को बढ़ावा देने  वाली तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखने के लिए अपना योगदान दे रही है l
3. मनुष्य अपने लाभ के लिए जब प्राकृतिक सिस्टम के समानांतर सिस्टम अपनाते हैं तब प्रकृति और उसकी पद्धति को नुकसान होता है या क्षतिग्रस्त होता है l क्योंकि मनुष्य कर्म स्वतंत्रता को मनमानी में परिवर्तित कर लेता है l
4. प्रकृति में अपनी व्यवस्था है और प्रकृति अपनी ही व्यवस्था को स्वीकार करती है l
5. मनुष्य हमेशा व्यापार लाभ हlनी पर तुलनात्मक तरीके से लाभ देख कर काम करता है l
5. जंगलों में पेड़ बगैर पानी के भरपूर फसल देते हैं परंतु खेतों में पानी लगाना पड़ता है इसका कारण है मनुष्य का प्रकृति की पद्धति मैं हस्तक्षेप l
6. पुराने जमाने में खेती परिवार के लिए की जाती थी एक ही खेत में कई प्रकार की फसलें जरूरत के हिसाब से लगाई जाती थी l बाद में लोगों ने मोनोक्रॉपिंग पर जोर दिया इसे अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई l
7. मनुष्य में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया इससे विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई l
8. खेती एक मैनेजमेंट प्लान है जिसमें कई प्रकार की चीजों का मैनेजमेंट किया जाता है जिनमें इकोलॉजी का मैनेजमेंट भी बहुत जरूरी है l
9. प्राकृतिक खेती जैव विविधता का खेल है l
10. हमने व्यवस्था को नहीं समझा और पैसों को व्यवस्था मान लिया l
11. प्रकृति की एक एक इकाई का आचरण एवं कर निश्चित है l
12. जंगल की व्यवस्था को क्योंकि आदमी नहीं देखता है इसलिए वह व्यवस्था व्यवस्थित रहती है परंतु खेतों की व्यवस्था को आदमी देखता है और उसमें लालच से भरा पड़ा हुआ इसी से व्यवस्था अव्यवस्थित होती है l
13. प्रकृति की व्यवस्था को व्यवस्थित रखना ही प्राकृतिक खेती है l इसी से प्रकृति में प्रकृति में संतुलन कायम रहता है l मनुष्य के हस्तक्षेप से हमने पानी को असंतुलित कर दिया जमीन को असंतुलित कर दिया किसी से सारी समस्याएं पैदा हुई l
14. मनुष्य ने अपने लालच में मोनोक्रॉपिंग की तरफ ध्यान दिया जिससे अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई अतः अब मोनोक्रॉपिंग से मल्टी क्रॉपिंग की ओर जाना पड़ेगा l
15. विभिन्न फसलों के साथ एक फसल हल्दी की भी लगाना चाहिए जिससे अनेक प्रकार के जानवरों की समस्या से छुटकारा मिल सकता है क्योंकि बहुत सारे जानवर हल्दी की गंध से दूर रहना चाहते हैं l इसी प्रकार से बहुत सारे पौधों विभिन्न प्रकार के कीड़ों को आकर्षित एवं दूर रखने में सक्षम होते हैंl मल्टी क्रॉपिंग जय व्यवस्था को प्रबल करती है l

Thursday, September 15, 2022

आई पी एम क्रियान्वयन से संबंधित कुछ अनुभव

राष्ट्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन कार्यक्रम की स्थापना वर्ष1991-92 मैं भारत सरकार के डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के अंतर्गत पहले से चल रही तीन अलग-अलग स्कीम्स के मर्जर करने के बाद हुआ यह तीनों स्कीम्स थी Biological control of crop pests and weeds ,Pest Surveillance, and plant protection. मर्जर के बाद नई स्कीम बनी जिसका नाम स्ट्रैंथनिंग एंड मॉर्डनाइजेशन आफ pest मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया रखा गया और उसके अंतर्गत नेशनल आईपीएम प्रोग्राम बनाया गया और और विभिन्न राज्यों में लगभग 35 केंद्रीय एकीकृत  ना सी  जीव प्रबंधन केंद्रों की स्थापना की गई l जिनके लिए जो common mandate बनाया गया उसमें इन्हीं तीनों schemes की गतिविधियों को सम्मिलित किया गया और आई पीएम का प्रचार एवं प्रसार आईपीएम प्रदर्शन, आईपीएम खेत पाठशाला का आयोजन तथा विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्रोग्राम का आयोजन के साथ-सथ फसलों में हानिकारक एवं लाभदायक जीवो की संख्या का निगरानी कार्यक्रम के द्वारा आकलन आदि प्रमुख कार्यक्रम शामिल किए गए तथा आई पीएम प्रदर्शन हेतु विभिन्न प्रकार के जैविक नियंत्रण कार को तथा बायोपेस्टिसाइड्स आदि का प्रयोगशाला में उत्पादन करना शामिल था l इसके अलावा फसलों में adopt की जाने वाली गतिविधियों के बारे में निर्णय लेने हेतु Agroecosystem Analysis (AESA ) को एक प्रमुख गतिविधि के रूप में आईपीएम प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन तथा आईपी एम खेत पाठशाला के आयोजन में शामिल किया गया l इसके अतिरिक्त खेतों में लाभदायक जीवो की संख्या का संरक्षण एवं बढ़ोतरी हेतु इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग जैसे डेमोंसट्रेशन प्रोग्राम भी रखे गए जिनमें मुख्य फसल के साथ-साथ फसल के चारों तरफ बॉर्डर crops  के रूप में तथा फसल के अंदर इंटर क्रॉप के रूप में विभिन्न प्रकार के कीटो को आकर्षित करने वाली फसलें लगाई जाती है l
   IPM  के अभी  तक प्राप्त अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है की आई पी एम के क्रियान्वयन हेतु जैव नियंत्रण विधि ,यांत्रिक विधियों तथा विभिन्न प्रकार की कल्चरल प्रैक्टिसेज को बढ़ावा दिया गया l इसके साथ साथ अंतिम विकल्प के रूप में किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का भी सहारा लिया गया l बस इसी की वजह से कीटनाशकों का उपयोग खेती में उतना कम नहीं हो सका जितना हमें अपेक्षित था l 
आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु प्रयोग किए गएinputs मैं जैव नियंत्रण कारक जैविक पेस्टिसाइड्स प्रयोगशाला में उत्पादित करके प्रदर्शन प्लॉटों के लिए तो पर्याप्त मात्रा में उक्त उपलब्ध कराया गया परंतु अन्य किसानों को इनपुट उपलब्ध नहीं हो सके क्योंकि इनके लिए कोई भी प्राइवेट entepreuners  बनाने के लिए सामने नहीं आएl इसी वजह से यह आईपीएम इनपुट किसानों को उनके द्वार पर उपलब्ध नहीं हो सके और किसानों ने रसायनिक पेस्टिसाइड का सहारा नहीं छोड़ा l
        इसके साथ-साथ आईपीएम के क्रियान्वयन करते समय जमीन की उर्वरता के ऊपर गहराई से अध्ययन नहीं किया गया और रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती चली गई और जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ा जिससे विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव फसल पर्यावरण से गायब होते चले गए l जरूरत है जमीन की उर्वरा शक्ति तथा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो को वापस लाने की l आईपीएम पद्धति में से रसायनों के उपयोग को ना करते हुए तथा प्राकृतिक खेती मैं बताए गई विधियों को अपनाते हुए जमीन की उर्वरा शक्ति को पुनः वापस लाया जा सकता है तथा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो अथवा जैव विविधता को फिर से बढ़ावा मिल सकता है और फसल पारिस्थितिक तंत्र में प्राकृतिक संतुलन अथवा नेचुरल बैलेंस स्थापित किया जा सकता है l
     जमीन की उर्वरा शक्ति तथा फसल पर्यावरण में जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए हमें खेती की ऐसी विधियों को बढ़ावा देना चाहिए जो फसलों मेंHumus  के निर्माण तथा फसल पर्यावरण में जैव विविधता के संरक्षण एवं बढ़ावा में सुविधा प्रदान कर सकें l जीवामृत एवं घन जीवामृत का उपयोग, फसलों में पौधों के अवशेषों का आच्छादन ,एक ही खेत में जंगल की पद्धति के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलों को लेना, खेत में नमी एवं पानी का संरक्षण करना, देसी गाय, देसी बीज, देसी खाद, देसी और वनस्पति आधारित कीटनाशक, देसी पद्धतियां आदि को बढ़ावा देने से फसल पर्यावरण में जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है साथ ही साथ जमीन में Humus की निर्मिती करते हुए जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है  l मोनोक्रॉपिंग सिस्टम को बदल कर हमेशा अलग-अलग फसलों को एक खेत में लेने से जैव विविधता का संरक्षण हो सकता है l अलग-अलग फसल चक्र बनाकर जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है l फसलों के अवशेषों के आच्छादन से जमीन के अंदर ऑर्गेनिक कार्बन की वृद्धि होती है l उपरोक्त सिद्धांत एवं इनपुट के प्रयोग हो आई पी   एम में शामिल करने से आप इनको प्राकृतिक खेती में परिवर्तित किया जा सकता है l पर्यावरण , पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता  की रक्षा हेतु आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती अपनाएं l एग्रोइकोसिस्टम का इस प्रकार से विश्लेषण करें की हमे पारिस्थितिक तंत्र मैं या प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन फसल रक्षl और फसल प्रबंधन की पद्धति का ज्ञान हो सके और उसके लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए निर्णय  ले सके l

Tuesday, September 13, 2022

किसानों की आत्महत्याओं के कारण

1. लगातार कर्जे में डूब ना
2. प्राकृतिक आपदा
3. बैंकों के खर्चे की रिकवरी से किसानों के सम्मान को ठेस
4. ग्लोबल वार्मिंग एवं क्लाइमेट चेंज के प्रभाव
     मानसून के टाइम टेबल में परिवर्तन
5. मार्केट नियंत्रण से संबंधी समस्याएं
      फसल की कटाई के समय फसलों के दाम कम किया जाना और बाद में बढ़ाया जाना एक बहुत बड़ी समस्या है l
6. सरकार की नीतियां
      फसल कटने पर आयात को बढ़ाते हैं और निर्यात को कम करते हैं l
7. युवाओं का गांव से पलायन

Monday, September 12, 2022

आई पी एम फिलासफी एवं प्राकृतिक खेती

दोस्तों, आई पी एम फिलोसोफी का विस्तृत वर्णन करते समय मैंने यह उल्लेख किया था की  आईपीएम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी हुई खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की एक विचारधारा है l आईपीएम सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधन तथा समाज और संस्कृति से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण या खेती करने की एक विचारधारा है जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति व उसके संसाधन ,जीवन की उत्पत्ति तथा उसके संचालन हेतु आवश्यक पंचतत्व पृथ्वी ,जल ,आकाश ,अग्नि और वायु का संरक्षण एवं सुरक्षाकरना है l प्राचीन कृषि व्यवस्था में अथवा खेती करने की व्यवस्था में प्रकृति हितैषी विधियों पर जोर दिया जाता था जो बाद में रसायनिक खेती के दौरान खत्म हो गया और खेती में विभिन्न प्रकार की प्रकृति विरोधी विधियों का समावेश हो गया जिससे समाज एवं प्रकृति से संबंधित विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम सामने आए.l
      हमारे पूर्वज किसान भाई प्रकृति हितेषी विधियों को अपनाकर खेती किया करते थे तथा उनके खेती करने की सोच एवं रहन सहन प्रकृति हितैषी था जो बाद में रसयनिक खेती के दौरान प्रकृति विरोधी हो गया l हमारे पूर्वज किसान भाई पौधों में परमात्मा देखते थे, कंकर में शंकर देखते थे, नदी में मां का रूप देखते थे, नर में नारायण का रूप देखते थे, पृथ्वी में मां का रूप देखते थे और खेती किया करते थे l प्रकृति परमात्मा का साकार रूप है l प्रकृति का संविधान ईश्वर चलाता हैl प्रकृति का कोई भी प्राणी मनुष्य के अलावा प्रकृति के संसाधनों का दुरुपयोग नहीं करता है l ईश्वर ने पहले प्रकृति को बनाया है बाद में मनुष्य को l प्रकृति की विरासत ओं का ध्यान रखते हुए खेती करना हमारा प्रथम कर्तव्य है और जैव विविधता तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए एवं पारिस्थितिक तंत्र ओं की सक्रियता को बरकरार रखते हुए खेती करना आज की प्राकृतिक खेती का मुख्य मांग एवं उद्देश्य है l अतः हमें हमारे पूर्वज किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों पर लौटना पड़ेगा तभी हम प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैंl
श्री सुभाष पालेकर द्वारा बताई गई एवं अपनाई गई प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग की जाने वाली सभी विधियां आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु अपनाई जा सकती है और कम से कम तथा शून्य बजट मैं और  समुदाय क स्वास्थ्य, पर्यावरण, जैव विविधता   पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति तथा उसके संसाधनों को बाधित ना करते हुए सुरक्षित एवं भरपूर तथा गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा सकता है l

आई पी एम फिलासफी एवं प्राकृतिक खेती

दोस्तों, आई पी एम फिलोसोफी का विस्तृत वर्णन करते समय मैंने यह उल्लेख किया था की  आईपीएम जीवन के क्षेत्र से जुड़ी हुई खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की एक विचारधारा है आईपीएम सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधन तथा समाज और संस्कृति से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण या खेती करने की एक विचारधारा है जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, जैव विविधता, प्रकृति व उसके संसाधन ,जीवन की उत्पत्ति तथा उसके सं0चालन

Tuesday, September 6, 2022

प्रकृति में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा व्यवस्था का संचालन

जंगलों में पाए जाने वाले प्रत्येक पौधा मानव के हस्तक्षेप के बगैर भरपूर फसल देता है और उसको फसल उत्पादन तथा फसल रक्षा के काम में आने वाले सभी तत्व भरपूर मात्रा में प्रकृति के माध्यम से प्राप्त होते हैं आता यह सिद्ध होता है कि प्रकृति में एक स्वयं संचालित, स्वयं पोशी फसल व्यवस्था चल रही है जो जंगल में पाए जाने वाले पौधों के उत्पादन में सहायक होती हैं l आता: जरूरी है कि जंगल में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा व्यवस्था किस प्रकार से चलती है इसकी जानकारी का अध्ययन कर लिया जाए l नीचे के विवरण में इसी प्रकार का अध्ययन किया जा रहा है l
1. प्रकृति की व्यवस्था स्वयं से संचालित स्वयं    विकास सी एवं स्वयं पोशी होती है  l
2. प्राकृतिक खेती  शोषण नहीं परंतु सहजीवन के सिद्धांत पर कार्य करती है l
3. मनुष्य की तरह पौधों में भी जीवन है और मनुष्य की तरह पौधों में भी आत्मा पाई जाती है जो बीज के रूप में होती है l बीज अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित होकर पौधे को जन्म देता है l आत: बीज आत्मा की तरह अजर और अमर होता है l
4. देसी बीज एवं देसी गाय की सुरक्षा करना या बचाना सिर्फ हमारा दायित्व नहीं है बल्कि सरकार का भी दायित्व है l
5. प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पौधे की हरि पत्तियां क्लोरोफिल ,कार्बन डाइऑक्साइड ,पानी तथा सौर ऊर्जा की सहायता से भोजन निर्माण करती है l यह भोजन शर्करा के रूप में बनता है जो पौधों के विकास एवं स्वसन के काम आता है lयही भोजन पौधों के जड़ों तक पहुंच जाता है जो जड़ों के विकास के काम में आता है l 
    प्रकृति में पानी मानसून के जरिए बरसात के रूप में पौधों को प्राप्त होता है l हवा से नाइट्रोजन प्राप्त होती है l विभिन्न पौधों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया पाए जाते हैं l नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया दो तरह के होते हैं l एक सहजीवी और दूसरे  आ सहजीवी l  Rhyzobium bacteria,Mycorhyza fungus, Blue green Algae जड़ों को नाइट्रोजन देते हैं जिसके बदले में जड़ जीवाणुओं को ऊर्जा हेतु शर्करा खिलाती है l इसी तरह कच्ची शर्करा से प्रोटीन बनती है l दाल वर्गीय फसलों अर्थात Leguminacyfamily  के पौधों की जड़ों पर इस प्रकार के बैक्टीरिया पाए जाते हैं l जो नाइट्रोजन फिक्सेशन के काम करते हैं l यह बैक्टीरिया अधिकांशत दो दली  पौधों की जड़ों में पाए जाते हैं l अतः एक दलीय पौधे जैसे राइस गेहूं आदि जिनमें इस प्रकार के बैक्टीरिया नहीं पाए जाते हैं इन फसलों को दलहनी फसलों के साथ लगाना चाहिए l सहजीवी बैक्टीरिया प्रयोगशाला में नहीं produce  किए जा सकते Humanbeing  is not a creator of of such symbiotic bacteria.Only the intestine of Deshi cow can produce such type of bacteria which can also be promoted in the fields by using Jeevamrit from the cow dung and urine of deshi cow. 
  सहजीवी सहजीवी बैक्टीरिया graminy family  के पौधों की जड़ों के पास पाए जाते हैं l धान, गेहूं, गन्ना ,बाजरा, ज्वार ,रागी ,कोदो, कुटकी आदि graminy family की फसलें है l
6. अन्य जीवो की तरह भी पौधों का शरीर भी पंचमहाभूता अर्थात मिट्टी अथवा पृथ्वी जल अग्नि अर्थात कार्बन ,आकाश अर्थात सौर ऊर्जा वायु अर्थात एयर तथा ब्रम्हांड ऊर्जा से मिलकर बना है जो बाद में विघटन के द्वारा नष्ट हो जाता है इस विघटन में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवों अपना योगदान देते हैं l परंतु पौधों मैं पाए जाने वाली आत्मा बीज के रूप में हमेशा जिंदा रहती हैं l जो एक नए पौधे को जन्म देती है l
7. पौधों में pests and diseases का प्रकोप पौधों में पाई जाने वाली प्रति रक्षात्मक Immunity power के ऊपर आधारित होती है l जिन पौधों में इम्यूनिटी पावर अर्थात प्रति रक्षात्मक शक्ति कम होती है उनमेंpests and Diseases जल्दी असर करती है तथा जब कोई भी बाहरी जीव या बीमारी उत्पन्न करने वाला अर्जेंट पौधे के अंदर प्रवेश करता है तो पौधे के अंदर पाई जाने वाली immunity power उसका विरोध करती है और आधार पौधे के अंदर प्रति रक्षात्मक पावर कम होती है तो वहpests and diseases पौधे कोinfect or infest करती है का प्रकोप  करने के बाद पौधों से एक प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता हैl
8. जब कोई अनवांटेड या चाहे जाने वाली मात्रा से अधिक पदार्थ पौधे के अंदर पहुंचता है तो पौधा एक प्रकार का द्रव्य बाहर निकालता है जो फसल में हानिकारक कीटों को फसल की तरफ आकर्षित करता है और फसल में हानिकार कीटों

8.Humus को हम जीवन द्रव भी कहते हैं यह एक जैव रासायनिक पदार्थ होता है जो फसलो की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है humus 24 घंटे कार्यरत रहता है  l  Humus की निर्मिती के समय एक साथ अनेक घटनाक्रम चलते रहते हैं l एक साथ कुछ पुराने घटक विघटित होते रहते हैं और नए घटकों की निर्मिती होती है l  Humus की निर्मिती के समय पेड़ पौधों के विकास के लिए आवश्यक सभी खाद्य तत्वों का उपलब्ध होना आवश्यक है l यह खाद्य तत्व चार प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है:-
*Carbon,Hydrogen and Oxygen
*Nitrozen,Phosphorous,Potashium (NPK)
*Calcium ,Magnishium Sulpher
*Micro nutrients.
Humus उपरोक्त खाद्य तत्वों को पौधों की जड़ों को जिस स्थिति में चाहिए उस स्थिति में उपलब्ध कराने में सहायक होता है l पेड़ पौधों की वृद्धि विकास के लिए आवश्यक जैविक अम्ल ह्यूमिक एसिड अन्य हार्मोन Humus  ही निर्माण होते हैं और जड़ों को उपलब्ध कराए जाते हैं l पेड़ पौधों की जड़ों के लिए आवश्यक सभी खाद्य पदार्थ Humus  से ही लेते हैं l Humus खाद्य पदार्थों का भंडार है Humus  स्पंज की तरह कार्य करता है जो पानी को सोख लेता है l एक किलोग्रामHumus एक रात में 6 लीटर पानी खींच लेता है और जड़ों को उपलब्ध कराता है lHumus  का निर्माण अनंत करोड़ अज्ञात सूक्ष्म जीवाणुओं के माध्यम से कास्ट पदार्थों के विघटन से होता है अर्थात Himus  की निर्मिती के लिए तीन बातों की जरूरत होती है l
* फसल अवशेषों का आच्छादन
* सूक्ष्मजीवाणुओं युक्त जीवामृत
*Carbon :Nitrogen ratio.
10:1
आच्छादन मैं  सिर्फ फसल अवशेषों का ही इस्तेमाल करना चाहिए ना कि की प्लास्टिक इत्यादि का l
9.4 steps of Carbon Cycle:-
   *Carbon enter in to Atmosphere as CO2
*.CO2 a absorbed by Autotrophs or plants 
* Animal consumers plants therefore incorporating carbon in   to their system.
* Animals and plants die,their body is decomposed and Carbon reabsorbed in to atmosphere.

Saturday, September 3, 2022

प्राकृतिक खेती की विचारधाराConcepts related with Natural Farming.

प्रकृति में चल रही वनस्पति उत्पादन एवं वनस्पति रक्षा की व्यवस्था के अनुरूप व्यवस्था अपनाकर खेती करना प्राकृतिक खेती कहलाता है  l
प्रकृति के साथ तालमेल बनाते हुए प्रकृति हितैषी विधियों का प्रयोग करते हुए खेती करना प्राकृतिक खेती कहलाता है  l
प्राकृतिक खेती की विचारधारा से संबंधित कुछ सिद्धांत इस प्रकार से है:-
1 . प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करना l
2. जैव विविधता, मिट्टी, जल ,ऑर्गेनिक कार्बन, सूक्ष्मजीव, सूक्ष्म तत्व, हवा,Humus, सौर एवं ब्रह्मांड ऊर्जा का संरक्षण करते हुए खेती करना l
3. देसी गाय, देसी बीज, देसी खाद एवं देसी पद्धतियों अथवा विधियों को अपनाकर खेती करना l
4. बहु फसली अथवा मिश्रित खेती ,जंगल की व्यवस्था के अनुसार विभिन्न फसलों को एक साथ करते हुए खेती करना l
5. स्थानीय संसाधनों एवं परिस्थितियों के हिसाब से खेती करना l
6. हरी खाद ,गोबर की खाद, फसलों एवं पशुओं के अवशेषों का खेत में ही आच्छादन एवं प्रयोग करके खेती करना l
7. रसायनों का प्रयोग हर हालत में वर्जित है l
8. खेत में पाए जाने वाला सभी लाभदायक जीवो जैसे मधुमक्खी, भोरे, ततैया, केचुआ, मकड़िया कीटपरभक्षी, कीट परजीवी, कीटों को संक्रमित करने वाले विभिन्न प्रकार की फफूंद दिया, बैक्टीरिया , निमेटोड आदि का फसल पर्यावरण में संरक्षण करते हुए खेती करना l
9. उचित फसल चक्र अपनाते हुए खेती करना l
10. फसल पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखते हुए खेती करना l
11. हमारे पूर्वज किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली पारंपरिक विधियों का पुनर्जागरण एवं पुनर अथवा फिर बढ़ावा देकर बैक टू बेसिक के सिद्धांत को अपनाते हुए खेती करना भी प्राकृतिक खेती का सिद्धांत एवं विचारधारा है l

Sunday, August 14, 2022

प्रकृति के प्रति सांस्कृतिक हमारी सोच

हम जीव में शिव देखते हैं
नर और नारी में  नारायण देखते हैं
नदी और धरती में मां देखते हैं
कंकर में शंकर देखते हैं
यंत्र पिंडे तत्र ब्रह्मांडे
जनकल्याण से जग कल्याण की ओर देखते हैं
अनेकता अथवा विविधता में एकता देखते हैं
स्वदेशी से स्वराज्य, स्वराज से सुराज्य
प्रकृति में परमात्मा देखते हैं
गाय में माता का रूप देखते हैं
जब हम धरती से जुड़ेंगे तभी तो ऊपर उड़ेंगे




प्राकृतिक खेती की विचारधारा

प्राकृतिक खेती आई पी एम  का एक सुधरा हुआ रूप है जिसमें खेती करने के लिए किसी भी रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता तथा भूमि की उर्वरा शक्ति , खेतों में जैव विविधता को बढ़ावा देकर खेती की जाती हैl यह खेती अथवा प्राकृतिक खेती देसी गाय ,देसी बीज ,देसी पद्धतियों ,देसी एवं स्थानीय इनपुट , तथा देसी परंपराओं पर आधारित रसायन रहित एवं सुरक्षित खेती करने का तरीका है जिसमें प्रकृति  में चल रही फसल उत्पादन, फसल रक्षा, एवं फसल प्रबंधन की व्यवस्था का अध्ययन करके उनके अनुरूप methods को प्रयोग करके, स्थानीय स्तर पर गाय पर आधारित फसल उत्पादन इनपुट का प्रयोग करके, जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हुए एवं कायम रखते हुए तथा खेतों में  जैव विविधता, ऑर्गेनिक कार्बन सूक्ष्म जीवों एवं सूक्ष्म तत्व तथा ह्यूमस को बढ़ावा देते हुए एवं उसका संरक्षण करते हुए बहु फसली उत्पादन पद्धति को अपनाते हुए खेतों के चारों तरफ वृक्षों आदि को लगाते हुए स्थानीय स्तर पर उपयुक्त एवं लाभकारी फसल चक्र अपनाते हुए, भूमि जल के स्तर को ऊपर लाने का प्रयास करते हुए, फसलों के देसी बीजों को बचाते हुए या संरक्षित करते हुए, नवीन विधियों के साथ-साथ परंपरागत विधियों को बढ़ावा देते हुए तथा परिवार जिसमें जानवर भी शामिल हैं की जरूरत के हिसाब से फसलों का नियोजन करते हुए, स्वस्थ समाज की कामना रखते हुए  कम से कम खर्चे में खेती की जाती है। इस प्रकार से की जाने वाली खेती को प्राकृतिक खेती कहते      हैl                                       ,                                                        राम आसरे
                                                 अपर वनसति संरक्षण                                      सलाहकार(आईपीएम) सेवानिवृत्त
Natural Farming is the improved version of IPM with no use of chemicals and with negligible or  no expenditure, to improve the fertility of soil,to enhance and conserve the biodiversity ,organic Carbon, microorganisms, micronutrients,Humus ,soil moisture,and also to restore the damaged Agroecosystem,through adoption of old tradditional practices of farming practices based on the nature's principles,and inputs based on deshi cow,using deshi seeds,enhancing the population of deshi earthworms in soil and also adopting suitable multi cropping crop rotation etc.
  ..                          ......                RAM ASRE
                                  Additional PPA IPM (Retd).

Wednesday, August 10, 2022

जैविक खेती

1.सोच बदलो तो सितारे बदल जायेंगे
नजर बदलो तो नजारे बदल जाएंगे
कश्तियां बदलने की जरूरत नहीं है
दिशा बदल लो तो किनारे बदल जायेंगे
2.If you are agree then do Agriculture. 
If you are hardly agree 
then do horticulture.
3. प्रकृति और पौधों से बात करते हुए उनकी आवश्यकता अनुसार खेती करें l
4. जमीन की भाषा समझाएं फिर उसके अनुसार खेती करें l
5. जमीन हमारी मां है जो जिंदा है क्योंकि वह हमें हमारे खाने के लिए अनाज, फल ,सब्जी आदि का उत्पादन करके देती है l उत्पादन वही कर सकती है जो जीवित हो l जो जमीन फसल उत्पादन नहीं कर सकती वह बंजर जमीन  कहलाती है l
6. पुराने जमाने में कोई भी किसान बाजार से साग ,सब्जी ,दाल आदि नहीं खरीदते थे l सभी अपने खेतों में से उत्पादन करते थे और विपरीत समय के लिए बड़ी और दाल आदि बना करके रख देते थे l
7. धरती धंधा नहीं धर्म है इसी प्रकार से खेती धंधा नहीं धर्म है l जो प्रकृति ने बनाया हैl
8. आरामदायक जीवन कभी अच्छा नहीं होता l
9. पहले के किसान खेती कीड़े, मकोड़े ,पशु, पक्षियों, पड़ोसियों, समाज के व्यक्तियों अंत में अपने मांग के आधार पर खेती किया करते थे l
10. खेती को धंधा बनाने पर ही जमीन की दुर्दशा हुई है l क्योंकि हमने उसमें आवश्यकता से अधिक रसायन डाले और जमीन की वास्तविक गुणवत्ता को नष्ट कर दिया l
11. जमीन जगत की पालनहार है l वह अन्नपूर्णा है l
12.Lets learn from the nature.
13.Observe more(to the nature),react less .
13 .Observe how nature is maintaining the natural balance.
Let's observe how the plants in forest are giving their optimum yield witouthuman assistance. 
14. रसायनों का इस्तेमाल कम करने के लिए हमने जमीनी स्तर से ना शुरुआत करते हुए एक रॉकेट साइंस से शुरुआत की और ऐसे विकल्प तलाश से  तथा प्रयोग किए जो साधारण तौर पर कृषकों को उनके द्वार पर उपलब्ध ना हो सके साथ ही साथ हमने रसायन रहित साधारण methods जो किसानों कौन के द्वार पर उपलब्ध आसानी से हो सकते थे को बढ़ावा नहीं दिया l प्राकृतिक खेती में या जैविक खेती में इसी इन्हीं प्रकार के रसायन रहित विकल्पों को जो किसानों के घरों में आसानी से बनाए जा सकते हैं बढ़ावा दिया जा रहा है उत्तम परिणाम लिए जा रहे हैं ऐसी विधियों को बढ़ावा देकर हम आईपी एम का क्रियान्वयन सुचारू रूप से कर सकते हैं l हमने पहले भी बताया हुआ है की आईपी एम जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती में छोटा-मोटा परिवर्तन करके एक दूसरे में परिवर्तित किया जा सकता है अथवा इनको पर्यायवाची बनाया जा सकता है तथा रसायन रहित तथा सुरक्षित खेती की जा सकती है l फसल उत्पादन, फसल रक्षा, तथा फसल प्रबंधन की विधि को सुरक्षात्मक बनाना ही आई पीएम का प्रमुख उद्देश्य है जिसको रसायनों के उपयोग को बंद करके किया जा सकता है l जिसके लिए आईपी एम के सभी भागीदारों अथवा स्टेकहोल्डर मैं मानसिकता परिवर्तन दिल से लाना पड़ेगा कि हमें खेती में रसायनों के उपयोग को पूर्ण रूप से बंद करना ही पड़ेगा l सोच परिवर्तन जब तक दिल से नहीं किया जाएगा जब तक रसायनों का इस्तेमाल होता रहेगा इसके लिए सरकार का सहयोग आवश्यक है और यह सरकार का प्राथमिक एजेंडा होना चाहिए l अब तक सरकार नहीं चाहेगी तब तक रसायनों का उपयोग खेती में बंद नहीं होगा l सरकार की शक्ति के कारण ही भारत  ने  करो ना जैसी बीमारी का नियंत्रण कर दिखाया l माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा करो ना नियंत्रण हेतु अपनाई गई रणनीति से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि जब हम बगैर दवाई के कोरोना का नियंत्रण कर सकते हैं तो बगैर रसायनों की खेती क्यों नहीं की जा सकती है बस जरूरत है एक प्रबल इच्छा शक्ति की , एक सही विजन और रणनीति की, टीम भावना के साथ काम करने के जज्बा की, और हर हाल में उद्देश्यों को प्राप्त करने की l
आंखों की रोशनी से कुछ हो नहीं सकता
जब तक की जमीर की लौ बुलंद ना हो  l

Tuesday, August 9, 2022

जैविक खेती ,प्राकृतिक खेती ,आई पी एम तथा जहर मुक्त खेती करते समय खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

दोस्तों मुख्य फसल जो बोई गई है उसके अलावा खेत में उगने वाले अन्य पौधों को हम खरपतवार ओ की श्रेणी में रखते हैं l  दोस्तों पहले यह विचारधारा थी कि खरपतवार हानिकारक जीव से अधिक हानिकारक होते हैं l परंतु जैविक खेती अथवा प्राकृतिक खेती के अध्ययन से यह पता चला की हर एक खरपतवार हानिकारक नहीं होते हैं बल्कि वह लाभदायक भी होते हैं जो विभिन्न प्रकार से हमें खेती करने में सहायक होते हैं l  खरपतवार ओं के नियंत्रण करने से पहले खरपतवार ओं के बारे में जानकारी अवश्य ले ली जाए तो ज्यादा अच्छा रहेगा जैसा कि मैंने बताया कि कुछ खरपतवार लाभदायक भी होते हैं वह जमीन मैं नमी तथा पानी के संरक्षण में मददगार होते हैं l कुछ खरपतवार ओं में नाइट्रोजन फिक्सेशन करने वाले बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो उनके जड़ों में   nodules के फॉर्म में होते हैं l मुख्य फसल की ऊंचाई से कम ऊंचाई वाले खरपतवार ज्यादातर प्रकाश संश्लेषण में मुख्य फसल के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करते परंतु मुख्य फसल से बड़ी ऊंचाई वाले खरपतवार मुख्य फसल के साथ प्रकाश संश्लेषण में कुछ हद तक प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं ऐसे खरपतवार ओं को जमीन में गिरा देना चाहिए तथा उनकी ऊंचाई को मुख्य फसल से छोटा कर देना चाहिए l खरपतवार ओं से हमें सीख लेनी चाहिए जो खेती करने में सहायक हो सकती l खरपतवार एक प्रकार के इंडिकेटर्स अथवा संकेतक के रूप में कार्य करते हैं जो हमें हमारी जमीन की कमी को बता देते हैं और जमीन को दुरुस्त करने में हमारी मदद करते हैं l
स्थिति के अनुसार गहरी जुताई ,बगैर जुताई, उचित फसल चक्र अपनाकर, जमीन को कवर करने वाली फसलों जैसे पुदीना को लगाकर, स्थानीय एवं अपने पास पाए जाने वाले इनपुट का उपयोग करके, ग्रीन मैन्यूरिंग या हरी खाद जैसी पद्धतियों को बढ़ावा देकर के खरपतवार ओं को बगैर रसायनिक खरपतवार नाशक ओ के नियंत्रित किया जा सकता है या उनका प्रबंधन किया जा सकता है l यह तरीके आईपीएम, प्राकृतिक खेती  ,जैविक खेती अथवा सुरक्षित खेती मैं प्रयोग किए जा सकते हैं l
बायो फेंसिंग:-

Friday, July 29, 2022

Different principles and modules of Safe and chemicalless Farming जहर मुक्त खेती के लिए कुछ सिद्धांत एवं सुझाव

जैसा कि पहले मैंने बताया है की आईपीएम जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती तीनों में प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों एवं विधियों से जहर मुक्त खेती की जा सकती हैl तीनों प्रकार की खेती के मॉड्यूल Bioecological  पारिस्थितिक तरीकों पर आधारित है जिसमें फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले भूमि के ऊपर तथा भूमि के नीचे के पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी जैविक एवं अजैविक कार को का संतुलन ध्यान में रखते हुए खेती की जाती है तथा ऐसी विधियां प्रयोग की जाती है जिनसे पारिस्थितिक तंत्र संतुलित  एवं सक्रिय रहे  और इसके लिए प्रकृति, पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता हितैषी विधियां प्रयोग की जाती है l रसायन मुक्त खेती करने के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार से हैl I..Fiew Major tips and principles of chemical less farming. 
1. भूमि को बलवान बनाया जाए l खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना l खेत की मिट्टी में पाय जाने वाले माइक्रो ऑर्गेनिक जमस, माइक्रो न्यूट्रिएंट्स, ऑर्गेनिक कार्बन तथा ह्यूमस की मात्रा को ऑर्गेनिक तरीके से बढ़ाना जिसकी वजह से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है l खेत में फसल अवशेषों के आच्छादन और सड़ने से पानी एवं माइक्रो organisms  के संरक्षण से खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है l धान गन्ना जैसी फसलों में नमी रखना आवश्यक है l
2. एक फसली फसल उत्पादन प्रणाली को बंद करना l  कृषकों एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र की मांग पर आधारित फसल चक्कर अपनाना l अर्थात एक ही फसल को एक खेत में बार-बार नहीं लेना चाहिए एक फसल को लगभग 3 साल बाद उस खेत में लेना चाहिए l जमीन को खाली ना रखें l खेत में कोई ना कोई फसल आवश्यक होनी चाहिए जिससे बायोडायवर्सिटी या जैव विविधता कायम रहे l
3. अंतर फसली अथवा सहफसली खेती की प्रणाली को बढ़ावा देना चाहिए  l जैसे गाजर के साथ प्याज तथा ज्वार के साथ लोबिया गेहूं के साथ चना एवं अरहर आदि l
4. Bio-diversity को बढ़ाना और उसका संरक्षण करना l अर्थात मुख्य फसल के साथ-स अन्य पौधे जैसे करौंदे की बेल, सूरजमुखी ,गेंदा धनिया आदि लगाएं जिससे मित्र कीट वापस आ जाएंगे l यह कार्य पारिस्थितिक अभियंत्रिकी  इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग के द्वारा किया जा सकता है l मुख्य फसल के  साथ बॉर्डर और इंटर क्रॉप के रूप में कीड़ों को आकर्षित करने वाले फसल जैसे गेंदा, सरसों, सूरजमुखी, धनिया एवं कुछ पेड़ों अथवा वृक्ष व लताओं आदि को  अवश्य लगाएं l  अपनी बनाई हुई खाद का प्रयोग किया जाए जैसे गोबर की खाद, हरी खाद ,पशुओं के मल मूत्र एवं मी गनियो से बनी हुई खाद का प्रयोग किया जाए l
5. कतार से कतार एवं पौधे से पौधे के बीच उचित अंतर रखना अति आवश्यक है सूरज की रोशनी पौधों को मिलती रहे तथा उनके बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह भी मिलती रहे जिससे पौधे स्वस्थ रहेंगे l
6. खेती के साथ-साथ पशुपालन को भी बढ़ावा दिया जाए जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी तथा उनसे प्राप्त गोबर से खाद बनेगी l
7. लाभदायक जीव जैसे Earthworms, मधुमक्खी विभिन्न प्रकार की मकड़ियां एवं लाभदायक ततैया की संख्या को बढ़ाया जाए l केचुआ खेतों में संरक्षण से प्राकृतिक जल संरक्षण या प्राकृतिक वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कायम हो सके और वर्षा जल का संरक्षण हो सके l
8. प्रकृति की व्यवस्था, स्थानीय संसाधनों एवं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए पारिस्थितिक तंत्र तथा जैव विविधता को संरक्षित करते हुए, देसी बीज, देसी प्रजातियां ,देसी गाय तथा देसी methods घरों पर बनाए गए देसी गाय के गोबर तथा मूत्र से बनाए गए देसी इनपुट के द्वारा सुरक्षित खेती की जा सकती है l
9. अति आवश्यकता एवं अंतिम उपाय के रूप  मैं 1500 ppm से ऊपर वाला नीम ऑयल 5-7 एम एल प्रति लीटर पानी में शाम के समय per Acr Spray  करने से विभिन्न प्रकार के हानिकारक कारक जीवो की  रोकथाम की जा सकती है l जानवरों के गोबर से बने हुए uplon को जलाकर बनी हुई राख को dusting करने  से विभिन्न प्रकार केsucking pests  की रोकथाम की जा सकती हैl कुछ किसान भाई मट्ठा ,छाछ ,बटर्मिल्क को सड़ा कर अथवा ताजे 10 लीटर बटर्मिल्क में ढाई सौ ग्राम नीम की निमोली का रस या तेल मिलाकर छिड़कने से कई प्रकार के कीड़े खेतों से दूर भागते हैं l
10. डॉक्टर सुभाष पालेकर के प्राकृतिक खेती मॉडल में सुझाए गए जीवामृत ,घन जीवामृत, खरपतवार कीटनाशक तथा माइक्रो न्यू ट्रेंस केsolution का प्रयोग किया जा सकता है l इसके साथ साथ फसल अवशेषों का खेतों मैं ही आच्छादन करने से कि जमीन में माइक्रो ऑर्गेनिक जमस की मात्रा बढ़ती है जो ह्यूमस के निर्माण में सहायक होती है  l
11. प्राकृतिक खेती देसी गाय, देसी बीज तथा देसी पद्धतियों के ऊपर आधारित है l
12. बोने से पहले बीजों का जैविक फंगीसाइड जैसे ट्राइकोडर्मा Trichderma viridae औरTrichderma harzianim आदि के द्वारा बीज संशोधन किया जा सकता है तथा बोने के बाद विभिन्न प्रकार के मौजूद आई पीएम इनपुट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है l ध्यान रहे फेरोमोन ट्रैप्स का इस्तेमाल सिर्फ हानिकारक जीवो की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है ना कि उनकी रोकथाम के लिए l

Tuesday, July 26, 2022

जहर मुक्त खेती... सदियों की परंपरा और आज की जरूरत

जब होगा जहर मुक्त अनाज हमारा
तब होगा स्वस्थ समाज हमारा
जहर मुक्त खेती के लिए आई पी एम, जैविक खेती अथवा ऑर्गेनिक फार्मिंग और प्राकृतिक खेती अपनाएं l
To inculcate Environment,Agroecosystems,nature and society friendly habits and farming practices among the farmers and other sectors of society dealing with farming  to get chemical free food and also to lead a green lifestyle ,to protect and prevent  Environment, ecosystem biodiversity, nature and society from the adverse effects of chemicals being used in farming indiscriminatly is the to days need of the hour.
 खेती में रसायनों के उपयोग बंद करके उपरोक्त तीनों प्रकार के खेती की पद्धतियों को एक दूसरे के पर्याय बनाया जा सकता है जिसे जहर मुक्त खेती कहा जा सकता हैl 
     जहर मुक्त खेती उस खेती को कहा जा सकता है जिसमें रसायनिक कीटनाशकों तथा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग ना कया गया हो तथा ऐसी पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया हो जिससे उत्पादित फसल उत्पादों में रसायनों की मात्रा की मौजूदगी ना हो तथा तथा खेत की मिट्टी मैं भी रसायनों की उपस्थिति ना पाई जाए l हरित क्रांति से पूर्व हमारे पूर्वज रसायन मुक्त खेती ही किया करते थे जिसमें किसी प्रकार के रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता था l इसके लिए बे उचित फसल चक्र, हरी खाद का प्रयोग, मुख्य फसल के साथ-सथ विभिन्न प्रकार की अंतर फसलें ,बॉर्डर फसलें, गोबर की खाद पशुओं का मल मूत्र आदि का प्रयोग किया करते थे जिससे खाने योग्य सुरक्षित फसल उत्पाद पैदा हुआ करते थे l हरित क्रांति के शुरुआत से अब तक खेती में रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग से अनेक प्रकार के दुष्परिणाम सामने आए हैं जिनको दूर करने के लिए फिर से हमें जहर मुक्त खेती की ओर प्रस्थान करना पड़ेगा l  जहर मुक्त खेती हमारी पुरानी परंपरा एवं आज की जरूरत है l
     स्थानीय परिस्थितियों तथा समस्याओं का अध्ययन करके आज की आवश्यकता के अनुसार उपरोक्त तीनों प्रकार की कृषि पद्धतियों से समुचित methods को select करके तथा समेकित रूप से प्रयोग करके  जहर मुक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा सकता है जरूरत है तीनों तीनों प्रकार के बुद्धिजीवियों ,कृषि वैज्ञानिकों, कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ताओं तथा उन्नति उन्नति शील किसानों को एकमत होने की तथा एक दूसरे की आलोचना की जगह विकल्प तलाशने की तथा मौजूदा संभव संसाधनों को बढ़ावा देकर खेती को जहर मुक्त बनाने की l
      हरित क्रांति के दौरान खेती में अंधाधुंध प्रयोग किए गए रसायनों के फलस्वरूप खेतों की मिट्टी, पानी ,हवा ,सभी प्रदूषित हो चुके हैं जिसके फलस्वरूप खेती के लिए उपयोगी सूक्ष्म तत्व एवं सूक्ष्म जीव भी खेतों से नदारद हो चुके हैं या नष्ट हो चुके हैं l कृषि उत्पादों में विभिन्न प्रकार के रसायनों के अवशेष मिलने लगे हैं जिनकी वजह से हमारा निर्यात प्रभावित हुआ है तथा हमारे समाज के स्वास्थ पर विपरीत असर पड़ा है और जिसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की नई-नई बीमारियां पैदा होने लगी है l मिट्टी की संरचना बदल गई है तथा खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव जंतु या जैव विविधता भी नष्ट हो चुकी है l कृषि उत्पादों में विभिन्न प्रकार के रसायनों के अवशेष पाए जाते हैं जिनकी वजह से कृषि उत्पाद जहरीले हो चुके हैं l इसी कारण से रसायनों से की जाने वाली खेती को रसायनिक खेती अथवा जहरीली खेती के नाम से पुकारा जाने लगा हैl उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है की खेती को सामुदायिक स्वास्थ ,पारिस्थितिक तंत्र, पर्यावरण ,जैव विविधता ,प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज के प्रति सुरक्षित बनाया जाए जिससे सामुदायिक स्वास्थ्य ठीक रहे, पारिस्थितिक तंत्र सक्रिय एवं बरकरार रहे, पर्यावरण प्रदूषित ना हो, जैव विविधता तथा प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित बने रहे तथा प्रकृति और समाज के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके और खाने के योग्य सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन हो सके कृषि उत्पादों में जहरीले रसायनों की उपस्थिति ना हो l इसके अतिरिक्त जहरीले रसायनों के उपयोग से नष्ट हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन हो सके l 
            __________________
      आजकल के सामाजिक  ,आर्थिक ,प्राकृतिक, पर्यावरणीय ,जलवायु, व्यापारिक, परिदृश्य एवं परिपेक्ष में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति, व समाज हितेषी, लाभकारी तथा मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली कृष को एवं कृषि मजदूरों की आए बढ़ाने वाली एवं समाज व प्रकृति तथा जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए तथा आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक ,प्राकृतिक ,पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करने वाली होनी चाहिए तथा नवयुवकों का खेती के प्रति रुझान पैदा करने वाली होनी चाहिए l इसके साथ साथ आज की खेती खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ समाज को जहर मुक्त सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित करने वाली खेती में उत्पादन लागत कम करने वाली समाज प्रकृति, पारिस्थितिक तंत्र पर   ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों को निष्क्रिय करने वाली अथवा सहन करने वाली तथा जीवन और जीविका दोनों को सुरक्षा प्रदान करने वाली होनी चाहिए  l उपरोक्त समस्याओं को दूर करने के लिए हमें ऐसी खेती करनी पड़ेगी जो खाने की दृष्टि से सुरक्षित हो तथा व्यापार की दृष्टि से गुणवत्ता युक्त हो जिसके करने से जैव विविधता प्रकृति व उसके संसाधन सुरक्षित रहे तथा पारिस्थितिक तंत्र सुरक्षित एवं सक्रिय रहे l अर्थात हमें जहरीली खेती से जहर मुक्त खेती की ओर अग्रसारित होना पड़ेगा l तथा यह कार्य जन जागरण एवं किसानों के सहयोग एवं भागीदारी से ही करना पड़ेगा l आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए आत्मनिर्भर किसान एवं  आत्मनिर्भर एवं सुरक्षित खेती बनाना पड़ेगा l जहर मुक्त खेती बनाने के लिए खेती पद्धति से रसायनों के उपयोग को पूर्ण रुप से बंद करना पड़ेगा जो आईपीएम, जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती से संभव हो सकता है l आईपीएम में से यदि रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अंतिम विकल्प के रूप में अथवा किसी आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु होने वाले प्रयोग को रोक दिया जाए तो उपरोक्त तीनों प्रकार की खेती एक दूसरे के पर्याय बन सकती हैं l स्थानीय समस्याओं का निदान करते हुए एवं स्थानीय सुविधाओं तथा स्थानीय पद्धतियों के समुचित उपयोग बढ़ावा देते हुए नवीनतम अविष्कारों एवं तकनीको को सम्मिलित करते हुए हम जहर मुक्त खेती की तरफ  बढ़ सकते हैं l जरूरत है इन तीनों प्रकार की खेती की बारीकियों को समझने की तथा उनमें उचित संशोधन करने की l तथा उन विकल्पों को एवं विधियों को ढूंढने एवं प्रयोग करने की जो आसानी से कृषकों के द्वार पर अथवा खेतों पर उपलब्ध हो सके वा कृषकों के द्वारा बनाए जा सके और आसानी से उपयोग में लाया जा सके l
    आज की खेती अथवा आज के आई पी एम का अर्थ होता है कम से कम खर्चे में तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज को कम से कम बाधा पहुंचाते हुए अधिक से अधिक एवं खाने के योग्य सुरक्षित भोजन तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करना l
प्रकृति की व्यवस्था को बनाए रखते हुए खेती में रसायनों के प्रयोग को बंद करके तथा खेती की पारंपरिक विधियों एवं नवीन methods को समेकित रूप से प्रयोग करते हुए खाने के योग्य सुरक्षित भोजन तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन आज की प्रमुख आवश्यकता है जिसका आई पीएम, जैविक खेती एवं प्राकृतिक खेती के द्वारा उत्पादन किया जा सकता है l
प्रदूषण मुक्त पर्यावरण, सक्रिय पारिस्थितिक तंत्र, एवं जैव विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा हेतु जहर मुक्त खेती अपनाएं  l

Saturday, July 23, 2022

खेती के लिए अथवा आईपीएम के लिए कुछ आधुनिक विचार

1. पारंपरिक खेती को अथवा खेती की पारंपरिक पद्धतियों को पुनर्जीवित करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता हैl Back to basics. 
2 . प्राकृतिक खेती है जिसमें प्रकृति से जुड़े हुए इनपुट प्रयोग किए जाते हैं कोई भी इनपुट बाजार से ख़रीद कर नहीं प्रयोग किया जाता है l
3 . यह खेती देसी बीज, देसी गाय, देसी प्रैक्टिसेस अथवा पद्धतियों ,प्रकृति एवं जीवन पर आधारित है l
4. इस खेती में पर्यावरण, फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता एवं  प्रकृति के साधनों को सुरक्षित एवं संरक्षित रखते हुए खेती की जाती है 
 5. आज की खेती लाभकारी ,मांग पर आधारित ,सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार तथा आय को बढ़ाने वाली, प्रकृति समाज तथा जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली, कृषकों के , जीवन की राह को आसान करने वाली, जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण ,प्रकृति, समाज एवं पारिस्थितिक तंत्र के विकास को करने वाली, खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली, खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा करने वाली, खेती में उत्पादन लागत को कम करने वाली, ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन का समाज ,पर्यावरण, प्रकृति व उसके संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभावों को निष्क्रिय करने वाली एवं सहन करने वाली, क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन करने वाली, पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखने वाली, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने वाली, मिट्टी में पाए जाने वाले Humus,Micronutrents,and Micro organisms की संख्या में बढ़ोतरी करने वाली,, जैव विविधता को बढ़ाने वाली, खाने हेतु सुरक्षित एवं निर्यात में गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करने वाली, फसलों में लाभदायक जीवो का संरक्षण करने वाली, मिट्टी या जमीन में पानी का संरक्षण करने वाली होनी चाहिए l इसके साथ साथ नवयुवकों का खेती के प्रति रुझान पैदा करने वाली, खेती को लोकल से ग्लोबल बनाने वाली होनी चाहिए l तथा जहरीली खेती को सुरक्षित खेती में परिवर्तित करने वाली होनी चाहिए l
उपरोक्त उद्देश्य एवं मांगों के आधार पर आईपीएम की विचारधारा एवं विधियों मैं आवश्यक परिवर्तन इस समय की मांग होती है l आज की प्राकृतिक खेती रसायन रहित तथा जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, Humus, ,Micronutrents ,Microorganisms , को बढ़ावा देने वाली तथा समाज एवं प्रकृति को सुरक्षा प्रदान करने वाली होनी चाहिए l

Saturday, July 9, 2022

Let's pray with IPM Goddess

1. सुरक्षित भोजन के साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली Ensures food security along with food safety
2. वैश्विक कल्याण करने वाली perceives 
global welfare.
3. सार्वभौमिक भाईचारे का प्रचार एवं प्रसार करने वाली propagates universal brotherhood.
4. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की ओर लक्ष्य रखने वाली
    Pursuses International           
cooperation
5. पर्यावरण प्रदूषण को रोकने वाली
Prevents Environmental pollution
6. पशु एवं मानव स्वास्थ्य की रक्षा करने वाली
     Protects animal and human health.
7. टिकाऊ कृषि प्रदान करने वाली
     Provides sustainable Agriculture. 
8. सामुदायिक विकास को बढ़ावा देने वाली
     Promotes community development. 
9.पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने वाली
Preserves Ecosystems.
10 प्रकृति व समाज के बीच तालमेल बैठाने वाली.Maintains harmony with nature and society.
11. जहरीली खेती को सुरक्षित खेती में परिवर्तित करने वाली
Coverts poisonous farming in to safe farming.
12. जीवन कl निर्माण एवं स्थायित्व प्रदान करने वाली Makes and sustains life.


आईपीएम देवी की प्रार्थना करें

आई पी एम क्रियान्वयन के बारे में कुछ अनुभव

दोस्तों मुझे आईपीएम के क्रियान्वयन का सन 19 सौ 78 से अभी तक का लगभग 44 साल का अनुभव है l सन 1979 से डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन, क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के विभिन्न केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों, केंद्रीय वनस्पति संरक्षण केंद्रों एवं केंद्रीय निगरानी केंद्रों मैं से कुछ निकटवर्ती केंद्रों के द्वारा 40 हेक्टर धान तथा 25 हेक्टेयर कपास में भारत के विभिन्न प्रदेशों में आईपीएम डेमोंसट्रेशन प्रारंभ किए गए थे l इसके बाद 1991 से इन्हीं तीनों तरह के केंद्रों को मिलाकर केंद्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन केंद्रों की स्थापना हुई जिसके द्वारा आईपीएम की विचारधारा का विभिन्न फसलों में आईपीएम डेमोंसट्रेशंस एवं आईपीएम ट्रेनिंग आदि के द्वारा विस्तृत रूप से विभिन्न प्रदेशों में प्रचार एवं प्रसार किया गया जिसके दौरान हमें निम्नलिखित प्रकार के अनुभव प्राप्त हुए l
1. आईपीएम के विभिन्न भागीदारों के द्वारा आईपीएम को विभिन्न तरीके से समझा गया और उनका विभिन्न तरीके से क्रियान्वयन किया गया जिससे आईपीएम को इसकी मुख्य विचारधारा से हटाकर IPM  के विभिन्न भागीदारों ने अपने अपने तरीके से समझा एवं उसका अपने अपने तरीके से ही क्रियान्वयन किया l जिसके दौरान यह देखा गया की आईपीएम को सिर्फ अधिक फसल उत्पादन के रूप में देखा गया और उसको उसके वास्तविक उद्देश्यों से दूर रखते हुए उसका क्रियान्वयन किया गया और आई पी एम के वरीयता उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मानसिकता परिवर्तन सही तरीके से नहीं किया गया अर्थात आईपीएम करते समय रसायनों का इस्तेमाल सही तरीके से न्यायोचित ढंग से नहीं किया गया तथा आईपीएम क्रियान्वयन करते समय सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र , जैव विविधता प्रकृति एवं उसके संसाधनों तथा समाज आदि की सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया l
2. अभी भी किसान फसल उत्पादन करते समय फसल की उत्पादन लागत की तरफ ध्यान में ना रखते हुए अधिक फसल उत्पादन की ओर ध्यान देते हैं l तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति व समाज हितों की तरफ आईपीएम के द्वारा होने वाले प्रभावों की तरफ सही तरीके से ध्यान नहीं देते हैं l क्योंकि वह नहीं समझते हैं की प्लांट प्रोटक्शन को जब तक समाज व प्रकृति हितेषी के रूप में क्रियान्वयन नहीं किया जाता तब तक उसको आईपी एम नहीं कहते हैं  l
3. फसल उत्पादन में अथवा फसल रक्षा हेतु अभी भी कुछ किसान रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग करते हैं जिससे सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,प्राकृतिक संसाधन तथा जीवन विभिन्न क्रियाकलापों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है l जोकि आई पीएम विचारधारा के एकदम विपरीत है l
4. आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु सुविधा प्रदान करने वाले आईपीएम इनपुट कि कृषकों के द्वार पर उपलब्धता की तरफ सरकार के द्वारा विशेष ध्यान नहीं दिया गया इसके साथ साथ  विभिन्न राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकारों की विभिन्न एजेंसियों के बीच संपर्क सहयोग एवं समन्वय की कमी से आईपीएम का प्रचार एवं प्रसार उस स्तर तक नहीं हो पाया जिस स्तर तक होना चाहिए था l
5. ऐसा भी महसूस किया गया कि आई पीएम के क्रियान्वयन करते समय कुछ आईपीएम के भागीदार परोक्ष रूप से रसायनों के उपयोग को महत्व देते हैं और उनका बढ़ावा देते हैं तथा वे  अंतर्मन से रसायनों के  उपयोग उपयोग को कम नहीं होने देना चाहते l
6. रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के उपयोग का प्रचार एवं प्रसार टीवी आदि माध्यम पर किया जा रहा है जो आईपीएम  के क्रियान्वयन में बाधक है l
7. आईपीएम के कुछ भागीदार सिर्फ उस वनस्पति संरक्षण को आईपीएम समझते हैं जिनमें सिर्फ जैविक विधियां या जैविक अथवा आईपी एम इनपुट ही इस्तेमाल किए गए हो परंतु ऐसा नहीं है l आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु उन सभी मौजूदा संभव,कम खर्चीली, समाज के द्वारा acceptable विधियों का प्रयोग किया जाता है जोकि सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र  जैव विविधता ,प्रकृति एवं समाज के लिए हितेषी हो और और उनका इनके ऊपर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़ता हो तथा फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा मैं अपना विशेष महत्व रखते हो l
8. फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा में रसायनों के उपयोग को कम करने हेतु सरकार की प्राथमिकता एवं सहयोग परम आवश्यक है जिस के बगैर फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु रसायनों का उपयोग को कम करना असंभव है l क्योंकि किसानों तथा आईपीएम के कुछ भागीदारों में यह भावना घर कर गई है कि बगैर रसायनों के फसल का उत्पादन नहीं किया जा सकता जो कि गलत है अब यह सिद्ध हो गया है की प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग की जाने वाली विधियों को आई पीएम में सम्मिलित करके बगैर रसायनों के उपयोग के भी खेती की जा सकती है l
9. बीज से लेकर फसल विपणन तक फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन में प्रयोग की जाने वाल वाली सभी विधियां एवं आईपीएम methods को आईपीएम मेथड्स की श्रेणी में गिना जाता है l
10. आंखों की रोशनी से कुछ हो नहीं सकता जब तक की जमीर की लो बुलंद ना हो
अर्थात जब तक हम मन से किसी काम को नहीं करेंगे तब तक  कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती l
11. अगर हम बगैर दवाई के करोना वायरस की रोकथाम कर सकते हैं तो बगैर IPM inputs के  आई पीएम का क्रियान्वयन क्यों नहीं कर सकते सिर्फ जरूरत है दृढ़ इच्छाश7क्ति की और समय से सही रणनीति अपनाने की l
12. कृषकों की मानसिकता में यह परिवर्तन ला ना अति आवश्यक है कि केमिकल पेस्टिसाइड्स एवं उर्वरक जो समाज वा प्रकृति के लिए हानिकारक है और इनका उपयोग खेती में न्यूनतम स्तर तक अथवा बिल्कुल नहीं करना चाहिए l तथा आईपीएम डेमोंसट्रेशंस के बाद में उन इलाकों में कृष को में हुई मानसिकता परिवर्तन का मूल्यांकन भी करना चाहिए l
13. आईपीएम अथवा अन्य किसी भी विचारधारा का सुचारू रूप से क्रियान्वयन सिर्फ जन आंदोलन के द्वारा ही  किया जा सकता है l सरकारी विभागों में अधिकांश पदों की रिक्तियां रहती हैं तथा उनको बहुत सारी गतिविधियों सौंप दी जाती है जिससे वे आईपीएम अथवा अन्य विशिष्ट विचारधारा की तरफ एकाग्र मन से काम नहीं कर पाते है और कई बार यह भी देखा गया है कि प्रशिक्षित अधिकारी अन्य विभाग में स्थानांतरित कर दिए जाते हैं l यह भी देखा गया है कि कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ता अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशानुसार ही काम करते हैं और जब तक मन से यह वरिष्ठ अधिकारी रसायनिक कीटनाशकों अथवा उर्वरकों का प्रयोग बंद नहीं करना चाहते तब तक उनका प्रयोग बंद नहीं हो सकता अतः ज नआंदोलन ही एकमात्र विकल्प बचता है रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए l
14. पहले यह मानसिकता थी कि बगैर रसायनिक रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के खेती नहीं की जा सकती परंतु श्री सुभाष पालेकर जी ने प्राकृतिक खेती द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि बगैर रसायनों के खेती की जा सकती है और वह भी सिर्फ कृषकों के सहयोगसे की जा सकती है सरकार का सहयोग इसको को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है l
15. आईपीएम क्रियान्वयन हेतु जो इनपुट या विकल्प प्रयोग किए गए उनकी उपलब्धता किसानों तक सुनिश्चित नहीं हो सकी तथा उनके प्रोडक्शन के लिए कोई भी एंटर पर नूर सामने नहीं आया अतः अब यह आवश्यक हो गया है कि इन विकल्पों के साथ साथ हमें आईपीएम में कुछ ऐसे विकल्प या विधियां शामिल करनी चाहिए जो आसानी से उपलब्ध हो सके तथा उनको कृषक भाई अपने ग्रामीण स्तर पर स्वयं बना सकें l श्री सुभाष पालेकर जी के द्वारा बताई गई जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में कुछ ऐसे ही विकल्प सुझाए गए हैं को किसान अपने लेवल पर बना सकता है एवं उनका प्रयोग भी कर सकता है तथा यह विकल्प पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय बनाने में तथा फसल में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो के संरक्षण में अपना योगदान भी देते हैं और फसल उत्पादन व संरक्षण एवं फसल प्रबंधन मैं रसायनों के उपयोग को जीरो स्तर तक लाने में सक्षम है तथा फसल पर्यावरण जैव विविधता सामुदायिक स्वास्थ्य प्रकृति व उसके संसाधनों एवं समाज को भी सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है l
16. आईपीएम प्रैक्टिसेज अकेले कार्य नहीं करते हैं क्योंकि वह सभी प्रैक्टिसेस एक दूसरे के ऊपर आधारित होती है l
18. कोई भी कीटनाशक या पेस्टिसाइड्स अच्छे या बुरे और सुरक्षित नहीं होते हैं और सभी कीटनाशक समाज तथा प्रकृति के लिए हानिकारक होते हैं l
18. फसल पर्यावरण में पाए जाने वाला कोई भी organism  pest या हानिकारक जीव नहीं होतl हैं  l कोई भी जीव किसी उत्तेजना आत्मक परिस्थिति में अथवा प्रोवोकेटिव कंडीशन मैं ही हानिकारक जीव की तरह व्यवहार करने लगता है l किसी भी हानिकारक जीव को तब तक नहीं नियंत्रित करना चाहिए जब तक उससे होने वाला संभावित नुकसान आर्थिक हानि स्तर के ऊपर ना बढ़ने लगे l 
19. किसी भी महामारी के के निपटान हेतु और आई पीएम के क्रियान्वयन हेतु सतर्कता, जागरूकता और सावधानी रखना ही मूल मंत्र है जिसके लिए जन जागरण एवं जन आंदोलन से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है l
20. आईपी एम के क्रियान्वयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें की फसलों में पाए जाने वाले हानिकारक जिवो के प्रबंधन के साथ साथ प्राकृतिक संसाधन , जैव विविधता, फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीव ,मिट्टी ,पानी ,ऑर्गेनिक कार्बन तथा सूक्ष्म जीव एवं सूक्ष्म तत्व भी संरक्षित रहे तथा समाज भी स्वस्थ एवं सुरक्षित रहे l अगर ऐसा नहीं है तो वह वनस्पति संरक्षण आईपीएम नहीं है  l आई पीएम हानिकारक जीवो के प्रबंधन के साथ-साथ उपरोक्त चीजों का भी प्रबंधन होता है l नेशनल आईपी एम कार्यक्रम का गठन आईपीएम फॉर बेटर इनवारा मेंट के साथ किया गया था जिसमें बाद में सामाजिक प्राकृतिक राजनीतिक आध्यात्मिक आर्थिक व्यापारिक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे भी शामिल कर लिए गए l
21. आईपीएम बायो इकोलॉजिकल ,क्रॉप फिजियोलॉजी कल ,इकोनॉमिकल, लीगल, कल्चरल , वैराइटल, मैकेनिकल ,बायो लॉजिकल, नेचुरल, नीति एवं विपणन आदि पर आधारित ना सीजीओ प्रबंधन का तरीका है l
22. आई पी एम के क्रियान्वयन हेतु जो इनपुट जैसे जैव नियंत्रण कारक ,बायोपेस्टिसाइड्स, फेरोमोन ट्रैप्स आदि जो आईपीएम डेमोंसट्रेशंस मैं प्रयोग किए गए उनकी उपलब्धता कृषकों को उनके द्वार पर नहीं हो सकी l इस वजह से इन इनपुट का किसानों के बीच में प्रचार एवं प्रसार तथा प्रायोगिक ढंग से पर्याप्त मात्रा में प्रयोग नहीं हो पाया l इस वजह से किसानों ने उनके पास बचा एकमात्र विकल्प रासायनिक कीटनाशक एवं रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग अंधाधुंध तरीके से किया l यद्यपि अधिकांश किसान खेतों में पाए जाने वाले लाभदायक एवं हानिकारक दोनों प्रकार के जीवो के बारे में एवं उनके योगदान के बारे मैं जागरूक हो सके  l परंतु आईपीएम इनपुट की अनुपलब्धता के कारण उनके प्रयोग को महत्त्व नहीं दे सके  l इसी प्रकार से विभिन्न प्रकार के कल्चरल कंट्रोल की विधियों को भी वरीयता के रूप में प्रयोग नहीं कर सके l
23. अतः आई पीएम को बढ़ावा देने के लिए हमें डॉक्टर सुभाष पालेकर जी के द्वारा विकसित जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं सुझाए गए सभी विधियां एवं विकल्पों को वनस्पति संरक्षण की आईपी एम पद्धति में सम्मिलित करना पड़ेगा और सभी रासायनिक इनपुट जैसे रासायनिक कीटनाशक एवं रसायनिक उर्वरकों आदि के प्रयोग को बिल्कुल ही बंद करना पड़ेगा तभी आईपीएम का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त हो सकेगा l प्राकृतिक खेती की तरह आईपीएम भी प्रकृति पर आधारित नासि जीव प्रबंधन की एक पद्धति है जिसमें प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन की प्रकृति की पद्धति को आईपीएम में शामिल करना पड़ेगा l
24. आईपीएम इनपुट कि कृषकों को अनु उपलब्धता के कारण, कृषकों की रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों को उपेक्षा करने वाली कृषकों की मानसिकता, खेती में रसायनों के उपयोग को रोकने वाले मुद्दे को सरकार के द्वारा वरीयता एजेंडा Agenda priority  रूप में ना शामिल करना ही आई पीएम को बढ़ावा देने मैं बाधक सिद्ध हुए हैं l
25. प्राकृतिक खेती आई पीएम का ही अति सुधरा हुआ रूप है या तरीका है जिसमें प्रकृति के सिद्धांत के अनुसार मल्टी लेयर्ड या बहु स्तरीय बहु फसली इंटरक्रॉपिंग का विशेष महत्व दिया जाता है जिससे फसल पारिस्थितिक तंत्र में फसलों के हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु उनके प्राकृतिक शत्रु जैविक नियंत्रण कारकों के रूप में अपने आप पनपने लगते हैं और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती है तथा फसलों के हानिकारक कीटों का प्रभावी नियंत्रण कर लेती है तथा खेतों में विभिन्न प्रकार के फसलों के उत्पादन से इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग पद्धति के सिद्धांत पर फसल में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो का फसल पर्यावरण में संरक्षण प्राप्त होता है l
प्राकृतिक खेती में अपनाई जाने वाली फसलों के अवशेषों के आच्छादन से विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो का भी फसल पर्यावरण में या फसल पारिस्थितिक तंत्र में संरक्षण होता है l 
प्राकृतिक खेती में किसी भी रसायन का प्रयोग ना होने की वजह से फसल पारिस्थितिक तंत्र में हेलो में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो के प्राकृतिक शत्रु ओपन अपने का तथा उनको संरक्षण प्राप्त होने का अवसर प्राप्त होता है l प्राकृतिक खेती में विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ बोने से कृषकों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है l
26. रसायनिक कीटनाशकों का दुरुपयोग अर्थात आपातकालीन स्थिति में उपयोग की जगह इनका अंधाधुंध उपयोग किया जाना विभिन्न सामाजिक प्राकृतिक फसल पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित, पर्यावरण एवं जैव विविधता संबंधी समस्याओं का मूल कारण बना जिनकी वजह से आई पीएम के द्वारा यह सोचा गया की फसल उत्पादन फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन मैं रसायनों का उपयोग सिर्फ इमरजेंसी परिस्थिति को टालने के लिए किया जाए अथवा बिल्कुल ही ना किया जाए जिसके लिए राष्ट्रीय एकीकृत ना सजीव प्रबंधन कार्यक्रम की स्थापना की गई l जिसके फलस्वरूप रसायनों का उपयोग कम तो हुआ परंतु उस स्तर तक नहीं कम हुआ जहां तक वांछित था l इसका दूसरा कारण कृषकों की वह सोच थी कि बगैर रसायनिक कीटनाशकों या बगैर रसायनिक उर्वरकों के खेती नहीं की जा सकती और इसके लिए कई किसान इनका उपयोग प्रोफिलैक्टिक तरीके से भी करने लगे जो कि आई पीएम के सिद्धांत पर एकदम खिलाफ है l यह भी अनुभव किया गया की कैलेंडर पर आधारित रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग फसल उत्पादन के लिए आवश्यक नहीं है और ना ही इसका कोई योगदान फसल की उत्पादकता पर पड़ता है l
       प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से आई पी एम की पद्धति का अपने आप बढ़ावा हो जाएगा क्योंकि आईपीएम भी एक खेती करने का तरीका है जिसमें सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति एवं समाज को महफूज रखते हुए वनस्पति संरक्षण एवं खेती की जाती है l प्राकृतिक खेती में कोई भी इनपुट बाजार से खरीद कर प्रयोग नहीं किया जाता है कोई भी रासायनिक प्रयोग नहीं किया जाता है तथा हानिकारक जीवो का प्रबंधन भी रसायन रहित इनपुट से किया जाता है जो किसान अपने घर पर बना लेते हैं l प्राकृतिक खेती एवं आई पी एम दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं अगर आईपीएम क्रियान्वयन करते समय किसी भी रसायनों का उपयोग ना किया जाए l
27. आई पी एम क्रियान्वयन हेतु जो आईपी एम इनपुट प्रयोग किए गए या आजमाएं गए उनकी प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी बहुत ही जटिल थी या है जिसके लिए कई बार प्रयोगशाला की आवश्यकता होती है l यद्यपि कुछ आईपीएम इनपुट की प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी सिंपलीफाइड कर ली गई है इससे उनका प्रोडक्शन कृषकों के द्वार पर भी किया जा सकता है l परंतु अन्य inputs के प्रोडक्शन हेतु उद्यमी एंटरप्रेन्योर्स की आवश्यकता है l बहुत सारे आईपीएम इनपुट की self life  कम होने की वजह से कोई भी entepreuners आगे नहीं आते l परंतु प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले सभी inputs का प्रोडक्शन कृषकों के द्वार पर ही किया जा सकता है और इनको आईपी एम  मे बड़ी आसानी से शामिल किया जा सकता है l