Saturday, December 23, 2023

प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम का आध्यात्म

1 मानव से पहले प्रकृति का जन्म हुआ।.प्रकृति में चल रही स्वचालित (Self Organised), स्वयं सक्रिय(Self active), स्वयं पोशी (Self nourished), स्वयं विकाशी(Self developing), स्वयं नियोजित (Self planned), सहजीवी (Symbiotic), एवं आत्मनिर्भर (Self sustained) फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन पद्धति के आधार पर प्रकृति में प्राकृतिक खेती होती है जिसमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता है। प्रकृति में चल रही इसी प्राकृतिक खेती की व्यवस्था का अध्ययन करके अब प्राकृतिक खेती को समाज के विकास एवं उत्थान हेतु बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रकृति की समग्रता तथा उसके स्वरूप को बचाते हुए अथवा उसकी रक्षा करते हुए स्वयं का ज्ञान तथा समझ को इस्तेमाल करते हुए खेती करना ही प्राकृतिक खेती है। फसलों का भोजन जीवाश्म अथवा माइक्रोऑर्गेनाइज्म आदी की डेड इकाइयां हैं।
 2.    प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधरा 
हुआ रूप है जिसमें फसलों के उत्पादन एवं फसलों की रक्षा हेतु रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति ,खेतों की जैव विविधता ,जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा तथा ह्यूमस तथा इसको जमीन में बनाने सूक्ष्मजीव और सूक्ष्म तत्व ऑन ,जमीन में भूमि जल स्तर को ऊपर लाने वाले प्रयासों तथा वर्षा जल संचयन के प्रयासों को बढ़ावा देकर तथा देसी गायों ,फसलों के देशी बीजों की प्रजातियां को संरक्षित करते हुए, गायों के मूत्र एवं गोबर के प्रयोग को शामिल करते हुए तथा देशी बीजों को प्रयोग को फसल उत्पादन में बढ़ावा देते हुए उचित तथा लाभकारी एकल फसल चक्र पद्धति के स्थान पर बहू फसली खेती की फसल चक्र को अपना कर नवीन  विधियों के साथ-साथ पारंपरिक विधियों को शामिल करते हुए कृषक परिवारों जिसमें जानवर भी शामिल है समाज ,सरकार और बाजार की जरूरत के हिसाब से फसलों का नियोजन अथवा चयन करते हुए ,स्वस्थ समाज की कामना करते हुए ,कम से कम खर्चे में अथवा शून्य लागत पर जो खेती की जाती है उसे ही प्राकृतिक खेती कहते हैं यह खेती देसी बीजों, देसी गाय, देसी केंचुआ, देसी पद्धतियों, देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर के प्रयोग पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित खेती करने का तरीका है।
3. क्षति Earth or soil, जल Water, पावक Solar Emergy, गगन Sky or Cosmic Energy or Brahamand Urja in form of 27 Nakshtra. Each Nakshtra having 4 , समीरा Air or Vayu
   पंचतत्व मिल बना शरीरा
    अर्थात जीव की उत्पत्ति उपरोक्त पांच तत्वों के द्वारा मिलकर हुई है या बनी है। उपरोक्त पांचो तत्व प्रकृति से हमें प्राप्त होते हैं जिनके लिए प्रकृति हमें कोई बिल नहीं भेजती।
उपरोक्त पांच महाभूत 108 एलिमेंट अथवा तत्वों से बने हुए होते हैं । जिनको चार श्रेणी में बांटा गया है। प्रथम श्रेणी में कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन तत्व आते हैं। दूसरी श्रेणी में नाइट्रोजन ,फास्फोरस तथा पोटाश तत्व आते  है। तीसरी श्रेणी मैं कैल्शियम मैग्नीशियम तथा सल्फर आते हैं और बाकी सारे तत्व 99 तत्वों को सूक्ष्म तत्वों के रूप में अलग श्रेणी में रखा गया है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा कच्ची शर्करा तथा ऑक्सीजन का निर्माण होता है। कच्ची शर्करा पौधों को भोजन के रूप में जड़ों के पास पाए जाने वाले सूक्ष्म रेशों के द्वारा प्राप्त होती है।ऑक्सीजन हमारे श्वसन क्रिया में सहायक होती है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पौधों के पत्तों में पाए जाने वाले हरित कड़ जिसको क्लोरोफिल कहते हैं भी सहायक होते हैं। प्रति वर्ग फुट पत्तों के द्वारा 1250 किलो कैलोरी सूर्य ऊर्जा अवशोषित होती है जिसमें से सिर्फ एक परसेंट अर्थात 12.5 किलो कैलोरी ऊर्जा ही पत्तों में संग्रहित की जा सकती है। किस प्रकार से पौधों की जीवन चक्र तो पौधों को भोजन मिलता रहता है।
6CO2+6H20  --sunlight , Chlorophyll 
------C6H12o6 +6o2 
1 दिन में एक स्क्वायर फीट पौधे का हरा पत्ता 4.5 ग्राम कच्ची शर्करा का निर्माण करता है जिसमें से कुछजड़ों के द्वारा पौधों को भोजन के रूप में प्रदान किया जाता है तथा कुछ पौधों के विकास में काम में आता है ।
4. हवा नाइट्रोजन का महासागर है। पौधे हवा से नाइट्रोजन सीधे प्राप्त नहीं करते हैं बल्कि वह नाइट्रेट के रूप में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया के द्वारा नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर पौधों को प्रदान करते हैं। यह बैक्टीरिया दो तरह के होते हैं सिंबायोटिक बैक्टीरिया और एबायोटिक बैक्टीरिया। राइजोबियम माइकोर्रहिज़ा और ब्लू ग्रीन algae सिंबायोटिक बैक्टीरिया होते हैं जबकि एजोटोबेक्टर तथा Pseudpmonas आदि बैक्टीरिया असहजीवी बैक्टीरिया होते हैं। इस प्रकार से इन बैक्टीरिया की मदद से पौधों को नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
5.Phasphate Solveliging bacteria के द्वारा फास्फोरस जमीन के अंदर पौधों को मिलता है । भूमि में फास्फेट के रूप में पाया जाता है जबकि पौधों को एक कला के रूप में चाहिए दो कन वाले फास्फेट को एक कन वाले फास्फेट में बदलने का काम फास्फेट सॉल्युबिसिंग बैक्टीरिया करते हैं।
6, पोटाश भूमि में अनेक कानों के रूप में होता है. जंगल में एक जीवाणु होता है उसका नाम कहते हैं बेसिलस सिलिक्स जो विभिन्न कनों के फास्फेट को एक कण में बदल देता है।
7. उपरोक्त पद्धतियों के आधार पर जंगल में पौधों को विभिन्न प्रकार के खाद्य तत्व माइक्रो एलिमेंट्स के रूप में प्राप्त होते हैं।
8. जीव पदार्थों के अवशेषों के विघटन से जैविक कार्बन बनता है इस क्रिया में बहुत सारे सूक्ष्म जीवाणु सहायक होते हैं।




Saturday, December 16, 2023

IPM is a sprituality आईपीएम एक खेती करने तथा नासिजीव प्रबंधन करने से जुड़ा एकअध्यात्म वाद है

What is Sprituality ?sprituality is the Philosophy related with the things which are not physically present but their presece can not be ignored because of systematic system of approach to achieve goal alreadyfound existing in the world. For example no body has seen God but his presence can not be ignored as many things are available and are working  through systematic approach or system or ecosystem created by nature or self created in form of nature and it's resources .There is a self organised ,self active,self nourished ,self sustained self developomg ,self managed,symbiotic,and self dependent system of crop production,crop protection and crop management which is being maintained by nature or by God an unseen power.This unseen and fully working system is referred as sprituality.Nature is the existing forms of God.There are five elements or panch Bhootas ie Earth, water,Agni,Sky and air  which forms life.but now all these five Bhootas or elements have now become polluted.we must keep these panch Bhootas clean and unpolutted for the  sustainability of life in the word .Plants and animals both are the two major forms of life which are also interdependent on each other.Lets implement IPM in such a way so that life may become sustainable .
Adopt IPM to sustain life on earth.




Wednesday, December 6, 2023

IPM Massages

Adopt IPM for. :-
1.Better Environment
2.To grow safe and secure Agriculture.
3.To ensure food security along with food safety .
   4.Poison free  food and disease free society.
5.To conserve Agroecosystem ,biodiversity.
 and natural resources .Be sympathetic to all living organisms found in Agroecosystem.
6.. Sustainable Agriculture
7.To promote chemicalless Farming
8.To reduce the use of chemicals in Agricultureand to promote chemical free methods of crop production and protection.
9.Avoid post harvest use of chemical prstides in agriculture
10. खेती करते समय यह ध्यान रहे की प्रकृति और उसके संसाधन, जैव विविधता ,मिट्टी की उर्वरा शक्ति बरकरार रहे।
Keep in mind that nature and it's resources, biodiversity,and fertility of soil be kept maintained while doing farming.
11. आईपीएम बीज से लेकर बाजार एवं व्यापार तक, तथा फसल उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की संपूर्ण प्रबंधन योजना है जिसका क्रियान्वन  कम से कम खर्चे में, रसायनों का कम से कम अथवा बिल्कुल ही ना प्रयोग करते हुए ,सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, समाज, कृषि विपणन एवं व्यापार, प्रकृति और उसके संसाधनों को कम से कम अथवा बिल्कुल ही बाधित ना करते हुए तथा प्रकृति के संसाधनों का दोहन ना करते हुए इस प्रकार से खेती की जाती है की किसान उनके परिवार जिनमें जानवर भी शामिल होते हैं तथा समाज और राजनीति तथा कानून से जुड़ी हुई जरूरतो को पूरा किया जा सके। इसके साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कायम रह सके । इसके लिए रसायन रहित विधियों को बढ़ावा दिया जाता है ।
      आईपीएम के क्रियान्वयन के लिए रसायन रहित विधियों को बढ़ावा देते हुए उनको समेकित रूप से प्रयोग करके फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो  की संख्या को आर्थिक हानि स्टर के नीचे सीमित रखक सुरक्षित खेती करें।
12, खेती करते समय अथवा आईपीएम का क्रियान्वयन करते समय ऐसी विधियों का इस्तेमाल करें जिससे कृषकों के परिवार जिसमें जानवर भी शामिल है तथा समाज की ज़रूरतें पूरी हो सके तथा प्रकृति और उसके संसाधनों, पर्यावरण, तथा  फसल पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव न पड़े तथा खर्चा भी कम से कम हो।








Tuesday, December 5, 2023

आईपीएम सिर्फ वनस्पति संरक्षण तक सीमित ना रहकर यह फसल उत्पादन, फसल रक्षा, फसल प्रबंधन,पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी, फसल विपणन, फसल व्यापार,फसल उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक,जीवन के सभी पांचो तत्वों,फसल पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति और उसके संसाधन तथा समाज से जुड़े हुए सभी मुद्दों,गतिविधियों एवं इकोनॉमिक्स आदि के समेकित प्रबंधन की विचारधारा बन गई है।

आईपीएम फसल उत्पादन ,फसल रक्षा, फसल प्रबंधन ,फसल विपणन, फसल कटाई के उपरांत की टेक्नोलॉजी ,जीवन, प्रकृति ,समाज एवं फसलों के उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की सभी गतिविधियों एवं विचारधाराओं का संपूर्ण एवं समेकित प्रबंधन है जिसमें उपरोक्त गतिविधियों से संबंधित सभी प्रकार की विधियों का समेकित प्रयोग करके खाने के लिए सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है जिससे सुरक्षित भोजन के साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके तथा समाज और प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित हो सके ।
आईपीएम की शुरुआत भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता विभाग के अधीनस्थ वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के द्वारा गठित राष्ट्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन कार्यक्रम के रूप में सन 1991- 92 में उत्तम पर्यावरण के लिए आईपीएम नाम के स्लोगन से प्रारंभ की गई थी। जिसमें इस निदेशालय की तीन अलग-अलग स्कीम्स वनस्पति संरक्षण स्कीम, पेस्ट सर्विलेंस एंड मॉनिटरिंग स्कीम तथा बायो कंट्रोल ऑफ़ क्रॉप पेस्ट एंड वीड्स स्कीम का एकीकरण अथवा मर्जर करके स्ट्रैंथनिंग एंड मॉर्डनाइजेशनऑफ  पेस्ट मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया नाम की स्कीम बनाई गई जिसमें विभिन्न प्रदेशों में केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन नाम के विभिन्न राज्यों में 26 केंद्रों की स्थापना की गई । बाद में आईपीएम के विस्तृत स्कोप को ध्यान में रखते हुए आईपीएम के कार्य क्षेत्र अथवा मेंडेड को प्रकृति, जीवन, समाज, विपणन, आर्थिक क्षेत्र से संबंधित मुद्दों को भी शामिल कर लिया गया। आईपीएम का मुख्य उद्देश्य खेती में रसायनों के प्रयोग को कम करना अथवा ना करना तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाई जाने वाली जैव विविधता तथा खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढना तथा प्रकृति के अन्य संसाधनों का संरक्षण करते हुए समाज को स्वस्थ बनाना तथा उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

Sunday, November 26, 2023

Concept,process of learning and achieving goal

Concept is a general idea about  a thing or group of the things conceived or received in the. mind .
Concept is not a reality but it is imaginary or illusionary .
We acquire knowledge through various ways and means.We receive knowledge through academic education,or from our seniors, experience persons,Spritual gurus Sant Mhatmas or from books and religious granths, The knowledge gained through these sources conceptualize the things .These concepts are not the reality but they are khyali Dunia.To achieve the results and to achieve goal we have to practice these concepts with proper or correct methods  by practicing these concepts  we will gain experience ,realisation,confidence and faith .When this process is chenelized properly we get results or goal. This is the procedure to implement any concept.
Any concept  wheather it is IPM concept or other concept can be implemented by this way..

Friday, November 17, 2023

आईपीएम के विचार

1,कम से कम खर्चे में ,रसायनों का कम से कम अथवा शून्य प्रयोग करते हुए, खेती और उसके क्रियान्वन करने में, किसानों और समाज ,प्रकृति, पर्यावरण तथा पारिस्थितिक तंत्र और जीवन तथा जीवन के पांच महाभूतो क्षति, जल, पावक ,गगन, समीरा से जुड़ी हुई समस्याओं को दूर करते हुए खेती करना अथवा वनस्पति संरक्षण करना ही आईपीएम कहलाता है।
2, यद्यपि बगैर रसायनों के प्राकृतिक खेती के रूप में खेती की जा सकती है परंतु फिर भी आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटान हेतु रासायनिक कीटनाशकों की अंतिम विकल्प के रूप में प्रयोग करने की मान्यता अथवा संस्तुति दी गई है।
3, मिट्टी एवं फसलों का ऐसा प्रबंधन जिसमें किसानों के परिवार जिसमें जानवर भी शामिल हैं की जरूरत पूरी हो जाए तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति जैव विविधता एवं जीवन के पांच महाभूतों पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े सस्य विज्ञानकहलाता है। यही प्राकृतिक खेती का सिद्धांत है। Sasya विज्ञान कि इस परिभाषा के अनुसार जब खेती की जाती है तो उसे प्राकृतिक खेती कहते हैं।
4, जिस खेती मैं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं किया जाता और उनका संरक्षण प्रदान किया जाता है तथा उनकी प्रकृति में उपलब्धता के हिसाब से एवं किसान के परिवार जिसमें जानवर भी शामिल है की जरूरत के हिसाब से जब खेती की जाती है तब उसे प्राकृतिक खेती कहते हैं।
5, वनस्पति संरक्षण के साथ-साथ समाज,कृषि, प्रकृति, पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता और जीवन तथा जीवन से जुड़े हुए पांच महाभूतों का संरक्षण आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती के प्रमुख सिद्धांत है।
5,किसी भी विचारधारा को चाहे वह आईपीएम की  विचारधारा हो अथवा अन्य कोई विचारधारा हो को  सुचारू रूप से  क्रियान्वयन करने तथा वांछित परिणाम प्राप्त करने  के लिए यह आवश्यक है कि उस विचारधारा के बारे में,और उसके दर्शन अथवा उसकी फिलासफीके बारे में तथा उसको क्रियान्वयन करने की विधियौ और तरीकों की सही सही जानकारी हो और उसके लिए जरूरी इनपुट्स भी सही समय पर पर्याप्त मात्रा मैं उपलब्ध haun,तभी उस विचारधारा का सही तरीके से क्रियान्वयन कियाजा सकता है। इसके अलावा इसके क्रियान्वयन करने की दिली इच्छा भी होनी  अतिआवश्यक है ।
आंखों की रोशनी से कुछ हो नहीं सकता
जब तक की जमीर की लौ बुलंद न हो ।

बिना दिली इच्छाशक्ति के किसी भी विचारधारा का क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता है।












Wednesday, November 15, 2023

आई पी एम एक कविता

जहर मुक्त  भोजन और रोग मुक्त समाज प्रदान करता है आईपीएम
पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करता है आईपीएम
सुरक्षित भोजन के साथ खाद्यसुरक्षा सुनिस्चित करता है आईपीएम
इकोसिस्टम तथा जैव विविधता को सुरक्षा प्रदान करता है आईपीएम
सामुदायिक विकास एवं मानव तथा पशुओं के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखता है आईपीएम
कृषि को स्थायित्व प्रदान करता है आईपीएम
पर्यावरण के प्रदूषण को दूर करता है आईपीएम
भूमंडलीय कल्याण तथा सार्वभौमिक भाईचारे को बढ़ाता है आईपीएम
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ता है आईपीएम
खाद्य खाद्य पदार्थों को स्वच्छ बनता है आईपीएम
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है आईपीएम
किसान की आमदनी बढ़ता है और उनको संपन्न बनता है आईपीएम
उनको आत्महत्याओं से बचाता है आईपीएम
प्राकृतिक संतुलन को कायम रखता है आईपीएम
खेतों में लाभदायक जीवों का संरक्षण करता है आईपीएम
जीवन के पांच महाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि आकाश, तथा वायु को सुरक्षा प्रदान करता है आईपीएम
भूमंडलीय तापक्रम वृद्धि से बचाता है आईपीएम
फसलों में रसायनों के प्रयोग से बचाता है आईपीएम
एवं रसायनों के दुष्परिणामों से भी बचता है आईपीएम
सुरक्षित हरित क्रांति प्रदान करता है आईपीएम 
 फसलों में रसायनों के प्रयोग को घटाता है आईपीएम
पर्यावरण एवं मनुष्य की सेवा है आईपीएम
खाद्य पदार्थों मैं कीटनाशकों के  अवशेषों से बचाता है आईपीएम
शरीर को स्वस्थ बनाता है आईपीएम
प्राकृतिक खेती के लिए मार्ग प्रशस्त करता है आईपीएम
मिट्टी को बलवान और सशक्त करता है आईपीएम
खेती का विज्ञानऔर जीवन का दर्शन है आईपीएम
परंतु हमारे सही तरीके से क्रियान्वयन पर निर्भर करता है जज आईपीएम







Sunday, November 5, 2023

IPM so for in different perceptions विभिन्न धारणाओं एवं अनुभव के आधार पर आईपीएम अब तक

So for in IPM the main thrust was given mainly on plant protection by promoting biological approaches and other aspects of crop production, protection and management were not given much importance.IPM commenced from a slogan IPM for better Environment now reached up to natural farming.
   In Natural Farming the main thrust is given on nature's system of crop production and  protection based on the nature's  self planned,self organised,self active,self sustained,self developing,,self nourishing ,symbiotic, system of crop production and protection  already prevailing in nature which  also includes promotion of crop yield through  enhancement of soil fertility,restoration of  damaged agroecosystem damaged due to indiscriminate use of chemicals in agriculture,conservation of biodiversity,agroecological and climate based crop rotation etc through use of traditional and also cow wastes based Natural farming inputs.
Themes of IPM:- Agriculture in India -Development and deterioration .
1.Agriculture in 16th century.India was known as golden bird growing 39 Percent of world's agricultural production  with very strong economy.During this period the Farming was done  on the basis of potential of soil,Prevailing Agroecosystem,climatic Conditions and on the basis of the previous experiences of our forefathers as no chemical pesticides and fertilizers were available during that period.Legendry poet Ghagh has written his several experience related with farming and other allied  agriculture related sectors.
2.Farming Era of Britishers:-During the Era of Britishers the cash crops were given more importance than the food crops.Opium,Cotton,Sugarcane,Jute crops were grown here as a raw meterials.These raw materials were taken by the Britishers to their country to make their products and were again  sent back to  our  country on very high rates.Course Cereals like Joar,Bajra,Barley,Kdon ,Sawan etc  were grown as a food grains.
3.Era of Independence:-At the time of independence the total population of India was 34  crores and the total food grain production was nearly 50 million metric tonnes which  has now reached up to million  314.51metric tonnes during 2021-22.Over 500 percent  jump in food grain production since independence was achieved .

4.Era of Green Revolution:-Seeds of High Yielding crop varieties,Irrigation  facilities ,Machanisation, Chemical pesticides and fertilizers were  developed through which we have become self dependent  or self  sufficient in production of food grains as the food grain production reached up to   more than 2oo  million Metric tonnes .Though we have become self sufficient in food grain production but side by side several new pests and diseases problems have also emerged .,ground water level has gone down through tube wells and vilage ponds dried due to scarcity of water in the earth.Soil become baren and alkaline ,it's productivity has also reduced agro Ecosystem and biodiversity is also damaged due to indiscriminate use chemicals in agriculture.Now there is a need to restore the damaged Agroecosystem.IPM helps to restore the damaged Agroecosystem.
5.Era of IPM:- National Integrated Pest Mangement Programme was commenced during1990-91by merging  of plant protection,pest Surveillance and monitoring and Biological control  schemes of Dte of plant protection , quarantine and storage of Govt of India.During this era the judicious use of chemical pesticides was advocated.  At  the time  independence  the consumption of technical grade  chemical pesticides  in India rose from 160 metric  tonnes to 75,033 metric tonnes  during  1990-91. Due to implementation of  IPM programmes in different crops in the country led to gradual reduction of its consumption till 2005-06 reached to the level of 39,773 Metric tonnes except in the year 2001-02 and    2002-03 when slight increase in the consumption of tech grade chemical pesticides due to sudden out breaks of secondry pests like mealy bugs,white flies,jassids,thrips and aphids in cotton and mealy bugs in vegetables and fruits and wolly aphid in sugarcane crops.The consumption of chemical pesticides from 2006-07to 2012-13remain almost static arround 41,000  Metri tonnes. however slight increase was observed during 2010-11(55,540Metric tonnes ) due to flareup of incidence of sucking pests on cotton and yellow rust in wheatand large use of herbicides in many crops by the farmers .
Consumption of biopesticides rose from 123 metric tonnes in the year 1994-95to 6274 MTin the year 2013-14.
2.The reduction of chemical pesticides was made on the basis of the descision taken through pest surveillance, monitoring.for maintaining pest population below ,ETL,.only on emergency useof chemicals  was suggested in IPM.Agroecosytem Analysis (AESA)was considered as a new tectis of descision making Experience gained during the Management of COVID Emergency revealed when we could manage  Covid emergency during 2020  without medicines we can also manage the pest problems without chemical pesticides provided we must have full political and beaurecratic willpower and support ,dedication,willingness, ,working sprit in team ,always be in readyness position to fight with an emergency situation ,to achieve success in any way,any time  and at any cost with available and flow of resources .
3.Considerations in difinitions:-
i.Integration of methods to maintain pest population below ETL based on pest surveillance and monitoring and Agroecosystem Analysis (AESA) considering biotic and abiotic, ecological and phisiological
factors and previous experiences.
ii.Consideration of environmental,ecological, economical,natural,sociological ,political national and international issues and different aspects of life in  IPM concept and diffinition.
iii.Consideration of inputs ,practices of natural farming along with IPM inputs and practices.
iv.Crop production, protection management, marketing,crop post harvest and consumption related issues.
 v.Consideration of impact of Earth, water, solar energy, cosmic energy, and air in farming System .
vi.Consideration of health issues.
vii Consideration of Farmers ,Social , Environmental and natural problems.




Thursday, October 26, 2023

आज की किसानी एक उन्नतशील किसानी To days Farming is an innovative Farming.

आज की किसी अब वह परंपरागत किसानी  नहीं रही । अब यह खेती सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं रह गई है l और किसान सिर्फ  वह नहीं है जो फसलों को उगता है बल्कि आज का किसान खेती से जुड़े हुए अन्य व्यापारिक धंधे जैसे मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन, बकरी पालन, मछली पालन,दुग्ध उद्योग, सूअरपालन, रेशम और लाख की खेती, अगरबत्ती ,बीड़ी तथा पत्तल उद्योग आदि से जुड़े हुए विभिन्न उद्योग धंधा की तरफ रुख कर गई है या फैल गई है। कॉरोना के समय बकरी का दूध बहुत ही कीमत पर बिक गया था। अब यह उपरोक्त सारे धंधे किसानी में जुड़ गए हैं । इसके अतिरिक्त किसान फूलों की खेती तथा बीज उत्पादन मैं भी लग गए हैं। गोवंश के उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए गोवंश संरक्षण भी अपना एक महत्व रखने लगा है। गोवंश के मूत्र से लेकर गोबर तक की उपयोगिता बढ़ चुकी है। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में cow कैबिनेट भी गठित हो चुकी है । किसान और समाज दोनों स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो चुका है। खेती में अब परंपरागत प्रणाली को भी एक पूरक प्रणाली के रूप में मान्यता मिलती जा रही है और उसका महत्व बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक खेती की ओर सरकार एवं किसानों का रुझान बढ़ता जा रहा है।

Friday, October 20, 2023

इकोलॉजी और इकोनॉमी

1.प्रकृति और समाज दोनों ही मिलकर इकोलॉजी का निर्माण करते हैं।
2. हमारे चारों तरफ जो भी वस्तुएं पाई जाती है वह कुछ गतिविधियों तथा तंत्रों के द्वारा एक दूसरे पर आधारित एवं जुड़ी रहती है जिसको हम पारिस्थितिक तंत्र या इकोसिस्टम कहते हैं और इसके अध्ययन को इकोलॉजी कहते हैं।
3. इकोलॉजी से ही हमारा जीवन संचालित होता है।इकोलॉजी से इकोनामी और इकोनॉमी से सोशियोलॉजी तथा जीवन की सुगमता विकसित होती है जिससे जीवन का विकास होता है।
4. मजबूत इकोलॉजी से मजबूत इकोनामी का विकास होता है। जिससे जीवन का भी विकास होता है।
5. आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती दोनों ही खेती करने के जैव पारिस्थितिक तरीके हैं। फसल पारिस्थितिक तंत्र को क्षतिग्रस्त होने से बचकर ही प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम का क्रियान्वयन किया जा सकता है। खेती में रसायनों के उपयोग को बंद करके फसल पारिस्थितिक तंत्र को खेती करने अथवा फसल उत्पादन, फसल रक्षा तथा फसल प्रबंधन के अनुकूल बनाया जा सकता है इससे फसल पारिस्थितिक तंत्र मे जैव विविधता का संरक्षण और क्षतिग्रस्त हुए पारिस्थितिक तंत्र का पुनर्स्थापना किया जा सकता है। आता है इकोलॉजी का कृषि उत्पादन एवं फसल रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान होता है अतः इकोलॉजी ही इकोनामी तथा जीवन को संचालित करती है।

Monday, October 16, 2023

IPM की परिभाषा

आई पी एम विज्ञान के साथ दर्शन ,आध्यात्मिक ,आर्थिक, इकोलॉजी, इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग, सामाजिक ,प्राकृतिक, पर्यावरणी, विधाई, व्यापारिक एवं जीवन के विभिन्न क्षेत्रों तथा मुद्दों एवं विचारधाराओं के अनुसार खेती करने की अथवा फसल उत्पादन,फसल रक्षा, फसल प्रबंधन  एवं फसल विपणन की बीज से लेकर फसल उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की एक समेकित विचारधारा है जिसमें कम से कम खर्चे में रसायन ऑन का कम से कम अथवा शून्य उपयोग करते हुए तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता ,जीवन, प्रकृति एवं समाज को कम से कम बाधित करते हुए नाशिजीव प्रबंधन की सभी vidhiyonको समेकित रूप से प्रयोग करते हुए( जिसमें रसायनों का उपयोग सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु किया जाता है) फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले हानिकारक जीवों की संख्या को आर्थिक हानि स्टार के नीचे सीमित रखते हुए खाने के लिए सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है और सुरक्षित भोजन के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा तथा प्रकृति और समाज के बीच सामंजस्य,, फसलों मेंजैव विविधता का संरक्षण, तथा सामाजिक ,प्राकृतिक तथापर्यावरण संबंधी विकास के साथ-साथ जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास को सुनिश्चित किया जाता है।
2.To get rid of from pest problems with minimum expenditure and least disturbance to the community health, environment, ecosystem, biodiversity ,life, nature and society is called as IPM.
सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, जीवन, प्रकृति और समाज को कम से काम बाधित करते हुए कम से कम खर्चे में हानिकारक जीवों की समस्याओं से छुटकारा प्राप्त करना आईपीएम कहलाता है जिसमें हानिकारक जीवों के प्रबंधन की सभी विधियां जिसमें रासायनिक विधि को सिर्फ कालीन स्थिति के निपटान हेतु प्रयोग किया जाता है तथा अन्य विधियों को समेकित रूप से प्रयोग करके फसल पारिस्थितिक तंत्र में हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखा जाता है।
3.Integrated Pest Management (IPM)is an integrated or combined or super concept of farming including crop production, protection, management, marketing,and trade from seed to end use of agricultural commodities or produce with due care of nature and society.
4.IPM is not confined only up to plant protection but it is a  concept of complete crop management including crop production protection , marketing and trade etc.
5. आई पी एम सिर्फ फसल सुरक्षा अथवा वनस्पति संरक्षण तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह संपूर्ण फसल उत्पादन पद्धति प्रबंधन की एक विचारधारा है ।
6. आईपीएम प्रकृति और समाज का ध्यान रखते हुए बीज से लेकर फसलों के उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की फसल उत्पादन, फसल रक्षा ,फसल प्रबंधन ,फसल विपणन, व्यापार आदि गतिविधियों एवं विचारधाराओं को शामिल करते हुए खेती करने की एक समेकित ,बेहतर अथवा उच्च स्तरीय विचारधारा अथवा पद्धति है जिसमें कम से कम खर्च में तथा रसायनों का कम से कम अथवा प्रयोग ना करते हुए प्रकृति  और समाज को कम से काम बाधित करते हुए फसल उत्पादन, फसल रक्षा की सभी विधियों को आवश्यकता अनुसार समेकित रूप से प्रयोग करते हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र में हानिकारक जीवों की संख्या को आर्थिक हानि स्तर  के नीचे सीमित रखते हुए खाने के लिए सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है तथा सुरक्षित भोजन के साथ खाद्य सुरक्षा तथा समाज व प्रकृति के बीच सामंजस सुनिश्चित किया जाता है ।

Saturday, October 14, 2023

Agroecosystem Analysis(AESA) based IPM

What is  Agroecosystem Analysis (AESA):-

Regular periodical analysis of both biotic and abiotic factors and their interactions along with the effects of  in build capacity of plants on the plant health and population of pests and their natural enemies , diseases,weeds intensity at particular or regular intervals over a desired period of time or in entire crop season  to take descion about the interventions to be adopted in that particular field is called as Agroecosystem Analysis ( AESA). It is a type pest surveillance and monitoring activity to note the pattern of build up of pests ,diseases and weeds and their natural enemies for adoption of suitable  management strategies to be adopted in next week. It is a kind of descision making process.
Steps to be adopted for AESA:-
1. To note the observations on population of pests,their natural enemies,diseases ,weeds intensity and population of neutrals found in a crop field along with the data on abiotic  factors like rain fall, temperature,moisture,RH and PH etc
2. Preparation of AESA chart at regular intervals.
3.Presemtation and discussion on AESA chart among farmers.
4.. Descion making based on discussion and observations taken as described above.
5.AESA is the one of the activities of crop pest surveillance and monitoring.

Conservation of biodiversity or biocontrol agents in Agroecosystem.

Difinition of Conservation of biocontrol agents or bio-diversity:-
1.Removal of those agricultural or cultural practices which are harmful to the beneficials found in Agroecosystem.
2.Enforcement of Laws for the protection and build up of beneficial organisms found in Agroecosystem.
3. To make Agroecosystem or environment better suited or congenial for the survival and multiplication of bio control agents or beneficial organisms found in Agroecosystem or Ecosystem is called as Conservation of biocontrol agents.

Availablity of Food,and Shelter in adverse conditions re the basic need of Conservation of biocontrol agents.

Ways and means for Conservation of biodiversity or biocontrol agents in Agroecosystem.
1.Removal or avoiding of those agricultural practices which are harmful to biocontrol agents or bio-diversity of an agroecosystem such as blanket or indiscriminate spraying of chemical pesticides ,trash burning of crop residues, indiscriminate use of chemical fertilizers such as Urea,deep ploughing etc
2.Adopt Ecological Engineering through intercropping,mixed cropping and border cropping.Growing of trap crops.
3.Avoid indiscriminate use of chemical pesticides and fertilizers.
 4.Augmentation of biocontrol agents from the areas of abundance to the areas of scarcity of biocontro agents.
5. Operate a strict crop Pest Surveillance and Monitoring and Agroecosystem Analysis (AESA) programme  for descision making for the interventions to be adopted in the field.
6.Use/Instalation of  conservation cages or bird pecher.
7.Maintain Sancturies  or reserve places for biocontrol agents under net or controlled conditions .
8.Conduct special  Surveys of biocontrol agents and collect biocontrol agents for lab rearing and their mass release in the field again.
9. Wide publicity though electronic and print media.
10.Mulching of crop residue in the field for conservation of spiders.
11.Promote biopesticides inplace of chemical pesticides and inputs of Natural farming.
12..Growing crops that provide pollen to biocontrol agents.
13.Farmers education about identification of biocontrol agents.



Thursday, October 12, 2023

Different Aspects of Ecological Engineering

Ecological engineering
    To make Agroecosystem better suited for the  build up and survival of  existing beneficial fauna through manipulation of biotic and abiotic factors of ecosystem is called as ecological engineering .
To make Agroecosystem suitable for better survival of biocontrol agents / beneficial fauna. 
Growing of flowering plants or crops for providing nector from pollen grains as a food  for adults of biocontrol agents or other beneficial organisms found in Agroecosystem ,growing of alternate crops for crop pests when the main crop is not available for providing shelters for overwintering population of pests and their biocontrol agents is done for the survival of beneficial fauna found in Agroecosystem.
Ecological engineering for pest management __
A.Above ground :-Intercropping,border cropping,mixed cropping of flowering plants is undertaken.Pests atrracting crops or trap crops   are also grown  to attract different pests .
B.Below ground :-Crop rotation,with leguminous crops,mulching with crop residue ,reducing tillage, application of biofertilizers,Mycorrhiza,andplant growth promoting Rhizobium,applyTrichoderma and Pseudomonas flurescence as seed or nursery treatment and soil application. Application different types of IPM and Natural farming inputs are used.




Different aspects of Natural Farming

1.To promote potential of soils and enhance their fertility .
       To enhance the population of micro organisms, quantity of micro elements ,Humus content ,soil moisture and organic carbon in the soil.

2. To upgrade and maintain the ground water level in the soil.
3.To promote methods for conservation of rain water through construction of ponds in villages and near the crop fields.
4.To conserve biodiversity in the Agroecosystem.
5.To enhance forest area in the villages and plant the trees on the bunds of the fields.
6. Management and Selection  of crops as per the needs of the soil,family,country,market,trades,and climate.
7.To conserve and preserve the varieties of  traditional crops and their seeds.as well as deshi animals like cows and goats etc.
8.To ensure availability of IPM and Natural Farming inputs at the door steps of the farmers in sufficient quantity.and of good quality.
9.Mulching of crop  residue and animal wastes in the fields.
10.To adopt multi cropping system instead of monocropping  system and  to promote  profitable cropping system.

Wednesday, October 11, 2023

Theme of Integrated Pest Management (IPM)

To  get rid of from pest problems with minimum expenditure, minimum use of chemicals both fertilizers and pesticides with least disturbence to the community health , environment, ecosystem, biodiversity, nature,life and society to ensure and sustain food security along with food safety,activeness of Agroecosystem ,production of quality agricultural commodities or produce to trade and harmony with nature and society .

Ecological aspects/concept of Integrated Pest Management (IPM)

Integrated Pest Management (IPM) is an ecological manipulation of Agroecosystem through different types of cultural, machanical,biological, ecological engineering even by using chemical methods only in pest emergency situation for suppressing the pest population below ETL in an agroecosystem in compatible manner or in integrated manners withi minimum expenditure and least disturbance of community health, environment, ecosystem, biodiversity, nature,life and society.
कम से कम खर्चे में तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, जीवन, प्रकृति एवं समाज को कम से काम बाधित करते हुए वनस्पति संरक्षण एवं नाशी जीवों के प्रबंधन की कर्षण,यांत्रिक,जैविक, इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग, यहां तक की की नासि जीवों कि आपातकाल पारिस्थिति के निपटान हेतु प्रयोग किए जाने वाली रासायनिक नियंत्रण विधियों को समेकित रूप प्रयोग करते हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र में न।शीजिवों की संख्या को आर्थिक हनिस्टर के  नीचे सीमित रखने हेतु फसल पारिस्थितिक मैं आवश्यक बदलाव करने को अथवा हस्त कौशल को ही एकीकृत नासिजीव प्रबंधन कहते हैं।

                                              RAM ASRE
                        Additional plant Protection.                                          Adviser (IPM)Retd.


                                              
                             

               Ecological Engineering
1 Designig  of Agro Ecosystem for mutual benefits of humanbeing and nature .
फसल पारिस्थितिक तंत्र को प्रकृति एवं मानव के परस्पर लाभ हेतु  डिजाइन की जाने वाली प्रक्रिया को ही इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग कहते हैं।
2,Creation of a community of plants, animals,microbes ,technologies,and components so that they provide beneficial services to each other's.
3,Design, construction,and management of ecosystem that have value to both human and environment.
4,Design of sustainable ecosystem that  integrate humam society, with natural environment for the benefit of both.
                                            



Friday, October 6, 2023

प्राकृतिक खेती की विचारधारा भाग 3

प्राकृतिक खेती निम्नलिखित सिद्धांतों एवं विचारधारा पर आधारित होती है।
1. जब तक प्रकृति समृद्ध साली नहीं होगी
      तब तक किसान समृद्धि साली नहीं होगा
2,. प्रकृति के वैभव अथवा पोटेंशियल को सुधार कर ही।               किसने की आमदनी बढ़ाई जा सकती है।
 3 जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाकर, बायोडायवर्सिटी को संरक्षित करके, 


 पर पेड़ लगाकर, जमीन के वैभव अथवा पोटेंशियल को सुधार कर, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को निष्क्रिय करने वाली व्धिओं अथवा तरीकों को अपनाकर, जमीन की उर्वरा शक्ति के हिसाब से खेती कर करके अथवा फसलों को बोकर फसलों तथा पशुओं के अवशेषों को खेतों डिकंपोज करके, भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाने वाले प्रयास एवं प्रयत्न करके, गांव तथा खेतों के आसपास तलाब बनकर पानी को संरक्षित  करके, देशवा गांव में लगभग 25 प्रतिशत क्षेत्रफल को जंगलों में परिवर्तित करके, आप जिसमें पशु भी शामिल हो की जरूरत के हिसाब से फसलों का नियोजन करके फसलों को बोकर, परंपरागत, देसी बीजों , तथा हाइब्रिड बीज से कॉलेज सकते हुए  फसलों के बीजों का संरक्षण करके प्राकृतिक खेती को सुगमता एवं सरलता से किया जा सकता है।

Friday, September 29, 2023

IPM beyond plant protection

IPM is not confined only up to plant protection  or pest  management but it is also extended beyond  plant protection related with different aspects of crop production ,Protection and management, community health, environment, ecosystem, biodiversity,economy different aspects of life,nature, and society, bussiness , trade,global warming, social prosperity,Earth,water, solar energy, cosmic energy and air,food security along with food safety, harmony with nature and society etc.
   I PM is an integrated concept of crop production,crop protection,crop management, marketing and trade in which chemicals are used only to manage the crop or pest emergency purpose and pest population in Agroecosystem is maintained  below ETL and safety community health, environment, ecosystem, biodiversity,life ,nature and society is also maintained simultaneously.

Thursday, September 28, 2023

आईपीएम की आध्यात्मिक तौर पर विवेचना भाग 1

जीवन से तथा जीवन की मूल आत्मा से जुड़े हुए अध्ययन को ही आध्यात्मिक कहा जाता है। आध्यात्मिक तौर पर जीव अथवा जीवन की रचना पांच तत्वों से मिलकर बनी है जिनको परमात्मा ने स्वयं प्रकृति के रूप में बनाया है और जिसका संचालन स्वयं प्रकृति के द्वारा प्रकृति में पाए जाने वाले जैविक और अजैविक कारकों के द्वारा किया जाता है क्योंकि यह कारक एक दूसरे पर आश्रित होते हैं और जीवन का संचालन कर ते है ।
संत श्री तुलसीदास जी ने कहा है
 क्षित ,जल ,पावक, गगन, समीरा
पंचतत्व मिल बना शरीरा
अर्थात जीव की संरचना उपरोक्त पांच तत्वों से मिलकर बनी है यह तत्व इस प्रकार से हैं।
क्षति=मिट्टी,soil,Earth
जल =पानी=water
पावक=आग=कार्बन=Organic Chemistry=सौर ऊर्जा
गगन=आकाश=ब्रह्मांड ऊर्जाCosmic Energy.
समीर=वायु mixer  of Nitrogen,Oxygen,Corbon di Oxide etc.
यह पांचो तत्व प्रकृति के संसाधन हैं जिन्हें सम्मिलित रूप से भगवान भी कहा जाता है भगवान शब्द का अर्थ इस प्रकार से है।
भ= भूमि
ग =गगन अथवा आकाश<=ब्रह्मांड ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा
वा=वायु=हवा=एयर
न=नीर=पानी=वाटर
 अर्थात शरीर की रचना मिट्टी ,पानी, आग,आकाश, हवा के द्वारा हुई है परंतु विडंबना यह है कि अब यह पांचो तत्व प्रदूषित हो चुके हैं। और इनको प्रदूषित करने में मनुष्य का बहुत बड़ा योगदान है मनुष्य अपने आप को प्रकृति का सिरमौर अर्थात टॉप ऑफ द क्रिएचर कहता है या मानता है तथा अपना अस्तित्व इस प्रकृति में हर हालत में बनाए रखना चाहता है । इन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य की कभी ना खत्म होने वाली इच्छाएं हैं जो अनंत है। इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर रहा है तथा उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित कर रहा है।
   एक दिल लाखों तमन्ना और उसे पर ज्यादा हविश
   फिर ठिकाना है कहां उसको टीकाने के लिए
मनुष्य अपने इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के संसाधनों को नष्ट कर रहा है एवं प्रदूषण कर रहा है। प्रकृति में मनुष्य ही सिर्फ ऐसा एक जीव है जो आवश्यकता से अधिक प्रकृति के संसाधनों का उपयोग करता है ।
 प्रकृति में ऐसा दूसरा कोई अन्य जीव नहीं है जो अपनी आवश्यकता से अधिक प्रकृति के संसाधनों का प्रयोग करता हो।
  दिमाग की गीजा हो या gijai जिस्मानी
  यहां तो हर गीजा में मिलावट मिलती है
उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित करने में फसल उत्पादन में बढ़ते हुए रासायनिक किट नशकों एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग का महत्वपूर्ण योगदान है जिससे  , स्वास्थ्य,पर्यावरणीय तथा इकोलॉजिकल समस्याएं पैदा हो गई हैं।
इन समस्याओं के निवारण हेतु इन रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग को कम करना अति आवश्यक हो गया है जिसके लिए एकीकृत नासिजीव प्रवधन पद्धति को नासि जीव प्रबंधन हेतु बढ़ावा देना आवश्यक है ।
फसलों को पौधे के रूप में तथा जंतुओं को जीवन के रूप में प्रकृति ने बनाया है फसलों के उत्पादन हेतु मिट्टी अथवा सॉइल जैसे मध्यमअथवा मीडियम की आवश्यकता होती है अतः फसलों को उत्पादन करने के लिए मिट्टी का बलवान होना अति आवश्यक है मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव ,सूक्ष्म तत्व, ह्यूमस ,मॉइश्चर ,नमी तथा प्रकृति में पाई जाने वाली ब्रह्मांड एवं सौर ऊर्जा का फसल उत्पादन में अपना विशेष महत्व है।
       प्रकृति में चल रही स्वचालित self organised, स्वयं सक्रिय self active,स्वयं पोशी, self nourishedस्वयं vikashi, स्वयं नियोजित self planned सहजीवी  symbiotic एवं आत्मनिर्भरself sustained फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन पद्धति के आधार पर प्रकृति में प्राकृतिक खेती की जाती है या होती है जिसमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता है यह स्वयं प्रकृति के द्वारा संचालित की जाती है प्रकृति में चल रही इसी प्राकृतिक खेती की व्यवस्था का अध्ययन करके अब प्राकृतिक खेती को समाज के विकास अथवा उत्थान हेतु बढ़ावा दिया जा रहा है। प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधार।हुआ रूप है जिसमें फसलों के उत्पादन एवं फसलों की रक्षा हेतु रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति, खेतों की जैव विविधता, जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा तथा हमस Humus तथा इसको जमीन में बनाने वाले सूक्ष्म जीवों और सूक्ष्म तत्वों ,जमीन में भूमि जल स्तर को ऊपर लाने वाले प्रयासों तथा वर्षा जल संचयन के प्रयासों को बढ़ावा देकर देसी गायों ,फसलों के देसी बीजों की प्रजातियां को संरक्षित करते हुए गायों के मूत्र एवं गोबर के प्रयोग को करते हुए इन पर आधारित इनपुट तथा देश देशी बीजों की प्रजातियों के इनपुट को बढ़ावा देते हुए उचित लाभकारी फसल चक्र एकल फसल पद्धति के स्थान पर बहू फसली पद्धति का फसल चक्र अपना कर ,नवीन विधियो के साथ-साथ पारंपरिक विधियों को शामिल करते हुए, परिवार जिसमें जानवर भी शामिल हैं ,समाज ,सरकार ,व्यापार और बाजार की जरूरत के हिसाब से फसलों का नियोजन अथवा चयन करते हुए स्वस्थ समाज की कामना करते हुए कम से कम खर्चे में अथवा शून्य लागत पर जो खेती की जाती है उसे ही हम प्राकृतिक खेती कहते हैं। यह खेती देसी बीजों ,देसी गाय, देसी केंचुआ ,देसी पद्धतियों,देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर के प्रयोग पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित वीडियो पर खेती करने का एक तरीका है।
   प्राकृतिक खेती के लिए पानी की पूर्ति मानसून से प्राकृतिक तौर पर परमात्मा के द्वारा की जाती है। हवा नाइट्रोजन का महासागर है। पौधे हवा से नाइट्रोजन लेते हैं। पौधे अपने भोजन को बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड भी वातावरण से अथवा हवा से लेते हैं। सूरज की रोशनी पानी कार्बन डाइऑक्साइड तथा क्लोरोफिल जो हरे रंग का पदार्थ पौधों में पाया जाता है की सहायता से प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा पौधे अपना भोजन मानते हैं। फसलों की उर्वरा शक्ति जमीन में पाए जाने वाले ह्यूमस से बढ़ती है इसका निर्माण विभिन्न प्रकार के मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव के द्वारा पौधों खरपतवार ऑन तथा अन्य प्रकार के पौधों के भाग ऑन के विघटन के द्वारा किया जाता है। मिट्टी में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म तत्व पाए जाते हैं जो पौधों के वृद्धि में सहायक होता है। मिट्टी इन सूक्ष्म तत्व का महासागर है । कुछ फसलों की जड़ों में ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो भूमि में नाइट्रोजन फिक्सेशन पर मदद करते हैं यह बैक्टीरिया ज्यादातर दाल है नहीं फसलों में पाए जाते हैं इसके साथ-साथ यह बैक्टीरिया कुछ प्रकार के खरपतवारों की चलो आदि में भी पाए जाते हैं भी पाए जाते हैं । इस प्रकार से प्रकृति प्रकृति में फसल उत्पादन व्यवस्था प्राकृतिक रूप से चलती रहती है। इस प्रकार से प्रकृति में स्वचालित व्यवस्था चल रही है जिससे फसलों का उत्पादन होता है।

Wednesday, September 20, 2023

एकीकृत नासि जीव प्रबंधन अथवा इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (आईपीएम) के ऊपर कुछ नवीन विचार

एकीकृत नासि जीव प्रबंधन अथवा  इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट(आईपीएम) के ऊपर कुछ नवीन विचार

  हमने अपनी सरकारी सेवा वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय में 2nd February,1978 से जैविक नियंत्रण स्कीम शुरू की से शुरू की बाद में क्रॉप पेस्ट सर्विलेंस,प्लांट Quqrantine,लोकस्ट कंट्रोल एंड रिसर्च, तथा सेंट्रल  इंसेक्टिसाइड्स लेबोरेटरी एवम स्ट्रेंथनिंग एंड modernaisation ऑफ पेस्ट मैनेजमेंट एप्रोच इन इंडिया के विभिन्न केंद्रीय एकीकृत नासिक जीव प्रबंधन केदो तथा निदेशालय के मुख्यालय फरीदाबाद में स्कीम ऑफिसर के रूप मे संयुक्त निदेशक एवं अपार वनस्पति संरक्षण सलाहकार आईपीएम के पद पर काम किया जिसमें आईपीएम केप्रचार एवं प्रसार तथा क्रियान्वयन में काम किया तथा आईपीएम क्रियान्वयन का अनुभव प्राप्त किया।
       हमारे संपूर्ण सेवा काल में एक ही सवाल आया की क्या रसायन के बगैर खेती की जा सकती है अथवा आईपीएम के द्वारा खेती को रसायनों से दूर किया जा सकता है यद्यपि
 आईपीएम का मुख्य उद्देश्य खेतों में रसायनों के उपयोग को जहां तक हो सके कम करना है और इसके लिए रासायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को अंतिम विकल्प के रूप में सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु प्रयोग करने की अनुमति अथवा  सस्तुति दी गई है । प्राकृतिक खेती ऑर्गेनिक खेती तथा आई पी एम के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बिना रसायनों के खेती की जा सकती है। 2020 में आई कोरोना महामारी के अनुभव के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जब बगैर दवाई के कोरोना का प्रबंध किया जा सकता है तो बगैर दवाई के अथवा बगैर कीटनाशकों के अथवा बगैर रसायनों के खेती भी की जा सकती है बस जरूरत है सिर्फ एक प्रबल इच्छा शक्ति की, पूर्व रननीति की, आईपीएम के सभी भागीदारों को सहयोग के साथ टीम भावना से कम करने की तथा किसी भी कीमत पर वंचित परिणाम प्राप्त करने की।
      आईपीएम को उसके हर एक भागीदार अथवा स्टेके होल्डर ने अपने रोजगार के अनुसार, अपनी समझ के अनुसार लाभ और नुकसान के अनुसार वास्तविक उद्देश्य से हटकर विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार परिभाषित किया तथा क्रियान्वयन किया। कई बार कृषकों एवं आईपीएम के अन्य साझेदारों के द्वारा केमिकल पेस्टीसाइड इंडस्ट्रीज के प्रभाव में आकर आईपीएम को केमिकल पेस्टीसाइड की महत्ता देकर परिभाषित किया और आईपीएम की विचारधारा को रसायन ऑन से भरपूर करके कृष को एवं एग्रीकल्चर एक्सटेंशन ऑफिसर्स के द्वारा क्रियान्वित करवाया गया आईपीएम की  विचारधार विचारधारा से परे है।
संक्षिप्त रूप में आईपीएम को ईस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।
कम से कम खर्चे में तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति, समाज एवं जीवन को कम से काम बाधित करते हुए फसलों में हानिकारक जीवों अथवा Pests की समस्याओं से दूर करना अथवा छुटकारा प्राप्त करना ही आईपीएम कहलाता है।
  आईपीएम जीडीपी पर आधारित अथवा आर्थिकविकास के साथसाथ समाज, पर्यावरण, जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति और जीवन के विकास को भी महत्व देता है और भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है तथा मिट्टी को बलवान बनाता है।
आईपीएम सिर्फ नाशिजीव प्रबंधन की वीधियों का ही एकीकरण नहीं करता बल्कि वह संपूर्ण फसल उत्पादन ,फसल रक्षा और फसल प्रबंधन की सभी विधियों  के अलावा फसल विपणन और फसलों के उत्पादों के प्रयोग की वीदीयो का भी एकीकरण करता है।
   IPM Does not only integrate the methods and technologies of pest management but it also integrate the methods and technologies of total crop production, protection, management, marketing and consumption of agricultural commodities.
I PM is a complete crop production, protection and management system from seed to marketing and even up to the consumption of their end products with due care of community health, environment, ecosystem, biodiversity, nature and society.
I PM हानिकारक जीवों के प्रबंधन हेतु आईपीएम इनपुट्स तथा  आईपीएम विधियों को सावधानी तथा विशेषज्ञता पूर्वक इस्तेमाल करनेका तरीका है।
 IPM is not only plant protection but it is the plant protection with due care of community health, environment, ecosystem, biodiversity nature, society and  different aspects of life.
खेती से जुड़ी हुई विभिन्न विविधताओं के अनुकूल खेती और वनस्पति संरक्षण करना अथवा नासिक जीव प्रबंध करना आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का प्रमुख सिद्धांत है।





Monday, September 4, 2023

Seven Years/A decade of Excellence after retirement

 Seven years / A decade of Excellence after retirement.
                  (2016-    to     2023)

,(.                                                                     )
                                        Integrated Pest Management (IPM)---My Professional Soul
*Concept & difinition
*Philosophy
*Suitch over to  Natural Farming
*Future Vision of Integrated pest management $ Natural Farming.
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        आईपीएम से संबंधित स्वयं के कुछ अनुभव

1.कीटनाशकों के बगैर खेती की जा सकती है
परंतु कीटों के बगैर खेती नहीं की जा सकती
2. No first use of chemicals in Agriculture
3. जब दवाई के बगैर कोरोना का मैनेजमेंट किया जा सकता है तो  रासायनिक कीटनाशकों के बगैर हानिकारक जीवो का प्रबंधन भी आईपीएम के क्रियान्वयन से किया जा सकता है बस जरूरत है एक मजबूत प्रशासनिक,राजनीतिक सामाजिक और वैज्ञानिक सहयोग एवं तीव्र इच्छा शक्ति की, टीम भावना के साथ काम करने की, पूर्व सक्रियता के साथ किसी भी कीमत तथा किसी भी तरीके से मौजूद संसाधनों के द्वारा वंचित उद्देश्यों को प्राप्त करने की, रणनीति अपनाकर ।




4. जब तक काम चलता हो हो गीजा से
     तब तक बचना चाहिए दवा से
5.Feed the soil not to the plant.
6.Make the soil strong.
7. भूख ही मजहब है इस दुनिया का
    बाकी हकीकत कोई नहीं
8. रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से क्षतिग्रस्त हुए फसल पारिस्थितिक का पुनर्स्थापना करना आईपीएम प्राकृतिक खेती का एक मुख्य बिंदु है इससे फसल पर्यावरण जैव विविधता का संरक्षण होता है। फसल में मौजूद विभिन्न प्रकार के लाभदायक एवं हानिकारक जीवों की विविधता के हिसाब से खेती करना आईपीएल तथा प्राकृतिक खेती की प्रमुख आवश्यकता है।
9. समाज व पारिस्थितिकी तंत्र तथा मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के हिसाब से खेती करना भी आईपीएम का प्रमुख कार्य बिंदु है।
10. हमारे हिसाब से फसलों के पारिस्थितिक तंत्र था उसमें पाए जाने वाले सभी कारकों की सतत निगरानी , आकलन एवं विश्लेषण के द्वारा निकल गए निष्कर्ष के अनुसार फसलों में गतिविधियां करने से रसायनों का लगभग50% प्रयोग कम किया जा सकता है और सफलतापूर्वक सामान्य रूप से खेती की जा सकती है।,,
------------------------------------------------------------------------
                         आई पी एम  का फंडा
आओ सुनाएं तुम्हें आईपीएम का फंडा
यह नहीं कोई मामूली फंडा और यह भी नहीं कोई मामूली बंदा
इस फंडे मैं छुपा है जिंदगी का फलसफा
 जिंदगी के हर मुद्दे से जुड़ा है यह आईपीएम का फंडा
खेत से जुड़ा है, समाज से जुड़ा है,प्रकृति से जुड़ा है, यह आईपीएम का फंडा
जहर मुक्त खेती और रोग मुक्त समाज
यही है आईपीएम फंडे के प्रयास
क्षति, जल ,पावक, गगन समीरा
पंचतत्व मिल बना शरीरा
आईपीएम रखता इनको प्रदूषण मुक्त
इसीलिए आईपीएम फंडा 
है जीवन का सूत्र
मिट्टी को सशक्त बनाता है और उर्वरा शक्ति बढ़ाता है
खाद्य सुरक्षा देता है भोजन को स्वस्थ बनाता है 
कृषकों को आत्महत्याओं से बचाता है
और उनको संपन्न बनता है इसीलिए आईपीएम फंडा कहलाता है
विज्ञान है यह खेती का दर्शन है यह जीवन का विचारधारा है  यह सुरक्षित भोजन ऊ गाने के साथ  खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की ।
खेती में रसायन रहित विधियों को बढ़ावा देता है यह फंडा  कीट और बीमारियों की आपात स्थिति से निपटान हेतु रसायनों के अंतिम उपयोग को बताता है यह फंडा और
इसीलिए फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा मैं सफलता दिलाता है यह फंडा।
................







Different concepts of IPM

1.Integrated Pest Management (IPM) is  a Concept  related  with Science, Philosophy, Spirituality, Sociology, Economics,Ecology/ Ecological Engineering, Environment,nature,and different aspects of life based on pest surveillance , monitoring and Agroecosystem Analysis .
2.It is a skill development programme.
3.It a kind of social movement to reduce the use of chemicals ie Chemical pesticides and fertilizers in Agriculture or farming or pest management.
4.Awareness creation programme.
5.Lord Buddha's principles of IPM.
6.Food Security along with food safety.
7.To get rid of from the pest problems with minimum expenditure and least disturbance to the community health, environment, ecosystem, biodiversity, nature and society throgh  adoption of all available, affordable, feasible,and acceptable methods of farming or pest management in compatible manner to maintain the pest population below ETL.

Thursday, August 31, 2023

Future Vision of Integrated Pest Management (IPM) and Natural Farming. आईपी एम तथा प्राकृतिक खेती का भविष्य दृष्टिकोण अथवा विचारधारा। । AQ

आईपीएम के उद्देश्य:-
जहर मुक्त खेती और रोग मुक्त समाज
यही है आई पी एम एवं प्राकृतिक खेती के प्रयास
कम लागत और कम पानी से अधिक उत्पादन
प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम है इसके साधन
रोग मुक्त औषधि मुक्त तथा भूख मुक्त समाज
यही है आईपीएम के प्रयास
सुरक्षित भोजन
 के साथ भरपूर भोजन
फूड सिक्योरिटी अलांग विद फूड सेफ्टी
जहर मुक्त खाना और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण
यही है आई पी एम तथा प्राकृतिक खेती के आचरन_
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2.In View of today's,social,economical,natural,Ecological, Environmental, marketing ,legal,and Scientific requirements the concept of crop production,protection,IPM,Managemrnt and organic and natural farming,must be safe, sustainable ,profitable and ,income and bussiness oriented and harmonious with,nature, society and life. For which Suitable facilities must be developed by the the Govt.
आज की सामाजिक ,आर्थिक, प्राकृतिक, पारिस्थितिक तांत्रिक, पर्यावरणीय ,विपणन, विधाआई अथवा लीगलतथा वैज्ञानिक जरूरतो के हिसाब से फसल उत्पादन, फसल रक्षा ,आईपीएम तथा फसल मैनेजमेंट अथवा फसल प्रबंधन ,ऑर्गेनिक तथा प्राकृतिक खेती की विचारधारा सुरक्षित ,स्थाई, लाभकारी ,आय तथा व्यापार पर आधारित तथा प्रकृति ,समाज और जीवन के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए l इसके लिए सरकार की ओर से समुचित सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए।
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2.कृषि को रसायन मुक्त करना, फसल पारिस्थितिकी तंत्र को सक्रिय बनाना तथा संरक्षित जैव विविधता से भरपूर एवं उत्तम पर्यावरण के साथ प्रकृति और समाज के लिए अनुकूल फसल पर्यावरण बनाना आईपीएम तथा नेचुरल फार्मिंग अथवा प्राकृतिक खेती के विजन तथा भविष्य के दृष्टिकोण हैं।
3.Grow crops with minimum expenditure,orwith or without use of chemical pesticides and fertilizers is the besic theme of IPM and Natural Farming.
4.IPM includes the management of all the problems related with crop production, protection management, marketing and consumption of agricultural commodities besides the safety and protection of nature, Society and life.
5.To make crop production and protection systems safe and secure to produce safe and quality agricultural commodities to eat and also to trade i with minimum or no cost  is  the besic theme of IPM and Natural Farming  .
6.To reduce the use of chemicals in agriculture as extent as possible is the besic theme of IPM.
7.. सरकार के द्वारा फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु रसायन मुक्त इनपुट की उत्पादन इकाइयों अथवा उद्योगों को स्थापित करके उनकी उपलब्धता कृषकों के द्वार पर सुनिश्चित करना आईपीएम के क्रियान्वयन के लिए प्रथम आवश्यकता है । और इस और सरकार के प्रयासों की प्राथमिकता अनिवार्य है।
8. खेती में कंप्यूटर पर आधारित इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी को शामिल करना आज की परम आवश्यकता है।
9.पेस्ट सर्विलेंस एंड मॉनिटरिंग सिस्टम को मजबूत किया जाए । राष्ट्रीय स्तर पर हानिकारक जीवों की एंडेमिक, एपिडेमिक एवं पांडेमिक एरिया वाइज वेदर डाटा और पापुलेशन के ऊपर एक डाटा बैंक बनाया जाए जिससे पेस्ट फोरकास्टिंग सिस्टम विकसित किया जा सके।





10... जमीन को बलवान बनना तथा उसमें पर्याप्त मात्रा में ऑर्गेनिक कार्बन, सूक्ष्मजीव, ह्यूमस तथा जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने हेतु सभी आवश्यक तत्वों की जमीन में अनिवार्य तथा जरूरी मात्रा का स्तर बढ़ाने हेतु आवश्यक कदम बढ़ाने की आवश्यकता है इसके लिए आवश्यक कदम बढ़ाना चाहिए जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सके तथा जमीन को बलवान भी बनाया जा सके।
11.रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से क्षतिग्रस्त हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र तथा जैव विविधता का पुनर्स्थापना करने हेतु आवश्यक कदम उठाना जरूरी है।
12. प्राकृतिक खेती के विभिन्न इनपुट्स तथा विधियों को आईपीएममें समावेशित किया जाए.
आईपीएएम तथा प्राकृतिक खेती मैं की जाने वाली गतिविधियों को कृषकों के द्वारा दैनिक जीवन की गतिविधियों में शामिल किया जाए।
13.पेस्ट फोरकास्टिंग मॉडल विकसित किया जाए।
14. प्रकृति के सीमित संसाधनों से मनुष्य तथा जीवो के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु उपाय विकसित किया जाए और उनको आईपीएम में सम्मिलित किया जाए।
15. किसान को अन्नदाता के साथ-साथ ऊर्ज।दाता भी बनाना पड़ेगा इसके लिए कृषि को अन्य औद्योगिक अथवा व्यापारिक क्षेत्र में विविधीकरण करना पड़ेगा । जैसे गन्ने से इथेनॉल बनाना और इथेनॉल से गाड़ियों को चलाया जा सकता है।






Wednesday, August 23, 2023

एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन की विचारधारा भाग 2

1,आई पी एम अथवा एकीकृत नासिजीव प्रबंधन विज्ञान के साथ-साथ दर्शन, सुरक्षित खेती करने की एक विचारधारा अथवा कॉन्सेप्ट, आध्यात्म, अर्थशास्त्र, सामाजिक शास्त्र, ,पारिस्थितिक तंत्र, इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग ,पर्यावरण, विधाई या लीगल, प्रकृति और समाज के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली ,व्यापारिक एवं जीवन के विभिन्न मुद्दों से जुड़ी हुई बीज से लेकर बाजार और फसल उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की खेती करने की एक विचारधारा है जो बढ़ती हुई आबादी के अनुपात के हिसाब से मौजूद प्राकृतिक संसाधनों एवं विभिन्न प्रकार की वनस्पति संरक्षण तथा खेती करने की विधियों के समेकित रूप से प्रयोग के द्वारा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवों की संख्या को आर्थिक  हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता , प्रकृति और समाज को कम से काम बाधित करते हुए खाने के योग्य सुरक्षित भोजन एवं खाद्य सुरक्षा तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करने में सक्षम होती है।
2,Concept not method
3.Skill development programme
4..Bioecological  approach for pest Management .
5.Change of mindset of the IPM stakeholders and farmers.
6.Way farward from chemical farming to Natural farming.
7.Motivational programme.
8.Social movement to reduce the use of chemicals in agriculture.
8.Awareness creation programme amongpublic about I'll effects of chemical pesticides on public, environment and ecosystem.
9 Economical development along with ecological and environmental development.
10.Total management of crop production,protectio and crop management system  .
.....



Sunday, August 20, 2023

How to facilitate the implementation of IPM.

Let's facilitate the implementation of IPM by promoting the following activities.
1.Change the pro chemical pesticidal mindsets  of IPM stakeholders and farmers.
2.To ensure the availability of quality IPM Inputs at the door steps of the farmers in sufficient quantity at the time when they are required.Govt must establish the industries pareller with chemical pesticides for the production of IPM  inputs to ensure their availability to the farmers .The research Organisations like ICAR and SA Us must prepare project for the Industrial production of these IPM inputs.
3.Lets have sympathy to all the organisms wheather beneficial or harmful found in upper and below ground biodiversity or Agroecosystem.
4.Lets use IPM inputs in such a way so that there should not be any advese effect on nature and society.
5.Lets keep Agroecosystem active.
6.Conduct Agroecosystem Analysis (AESA)as a  descion making process at regular intervals.
7 Let's keep in mind the safety of environment, ecosystem, biodiversity,nature and society while doing IPM.
8.Priotitize the safety of nature and society instead of the priority of chemical pesticides and fertilizers.
9.
Lets have full willingness  from our mind and soul to reduce the use of chemicals while doing IPM.
10.Promoting the use of biopesticides and other nonchemical methods of pest management .
11.Use chemical pesticides as an emergency tool based on strict pest surveillance and monitoring of pest population.
13.Creating awareness among IPM stakeholders about ill effects of chemical pesticides on nature and society.
14 Conservation of beneficial fauna found in Agroecosystem adopting various methods including ecological engineering by way of adopting multiple vroping by   growing of companion crops as border or intercrops with main crops,avoiding  use  of chemicals at regular intervals.Use botanical pesticides in place of chemical pesticides need arises .
15.Include the inputs and methods of natural farming with IPM to facilitate it.
16.Lets have a common consensus among all IPM stakeholders that  we must have to reduce the use chemicals in Agriculture or IPM  for the safety of nature, environment Agroecosystem, biodiversity and society and also to ensure food security along with food safety.


Thursday, August 17, 2023

Different concepts of IPM

1IPM is is a Science, Philosophy,Spirituality,Sociology,Economics of doing farming including management of pest population below ETL in an agroecosystem with minimum expenditure , minimum or without use of chemicals and least disturbance to community health, environment, ecosystem, biodiversity nature and society through adoption of all available, affordable and feasible methods of pest management and doing safe and secure farming .It is a  way of farming without harming to the nature and society.
2.A skill development programme to make IPM stakeholders competent to grow safe crops to eat and quality agricultural commodities to trade with minimum expenditure,minium use of chemicals and least disturbance to community health, environment ecosystem biodiversity nature and society though adoption of all available, affordable and feasible methods of farming and pest management to maintain pest population below ETL.
3.Bio-control  or bioecological approach of  pest management.
4. Social movement to reduce the use of chemicals  in agriculture.
5.Change of the chemical mindsets of the IPM stakeholders for farming .
6.A way farward to the Natural farming.
7.Motivation of farmers to adopt IPM for promotion of IPM.
8.To create awareness among the farmers and all other IPM Stakeholders about the ill effects of chemicals on nature and society.
9.To make crop production and protection systems safe and secure.
1o Pest Surveillance and monitoring though .Agroecosystem Analysis(AESA)based  descision making system in implementation of IPM.
11.IPM Farmers Field Schools (FFS)  a potential tool  for promotion of IPM.
12.Promotion of Ecological Engineering for crop production and protection system and conservation of biodiversity in Agroecosystem.
13.Lets motivate,educate and facilitate the IPM stakeholders and farmers for doing safe and secure crop production , protection and management system .
14.To ensure the availability of quality IPM Inputs at the door steps of the farmers.
15.IPM is not  the method of pest management but it is the concept of doimg safe and secure farming right from seed to marketing and even up to end use of agriproduce produced through this method.
16.It is the concept of doing safe and secure farming with safety of nature and society.
17. To get rid of from pest problems minimum expenditure and with least disturbance to community health, environment, ecosystem, biodiversity,nature and society.
18.An economical development alongwith, Environmental ,ecologica,l Social,and natural development.
19.A total crop management system with systematic approach.
20.It is a way forward from to grow more food to grow safe and quality food also.

Tuesday, July 25, 2023

रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से धरती मां की मिट्टी ,पर्यावरण एवं समाज की दुर्दशा

1, फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाली विभिन्न प्रकार की जैविक इकाइयों अथवा जीवों को सम्मिलित रूप से जैव विविधता कहते हैं। फसलों में रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से इन जैविक इकाइयों अथवा जीवो के नष्ट और विलुप्तिकरण होने से फसल पारिस्थितिक तंत्र का विनाश हो रहा है जिससे जैव विविधता बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। तितलियां, मधुमक्खियां, सांप, मेंढक, घोंघे, विभिन्न प्रकार के मिली पीठ केंचुआ आदि तथा जमीन के अंदर पाए जाने विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीव तथा फफुंदीय आदि नष्ट होरहे हैं । जीवन तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र के सुचारू रूप से संचालन हेतु नष्ट हुई जैव विविधता का पुनर्स्थापना करना आज की प्राथमिकता बनी हुई है जिसे हमें आस्था का विषय बनाना चाहिए। प्रकृति और पर्यावरण  तथा जैव विविधता की की रक्षा आस्था का विषय है। हमारे पास प्राकृतिक संसाधन है क्योंकि हमारी पिछली पीडिया ने इन संसाधनों की रक्षा की। हमें अपने आने वाली पीढियां के लिए भी ऐसा करना चाहिए तथा प्रकृति के संसाधनों ,फसल पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधताऔर पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए और इसके लिए खेती में रसायनों के उपयोग को न्यूनतम अथवा शून्य स्तर तक कम करना चाहिए।
आने वाली पीढियो के उज्जवल भविष्य के लिए प्रकृति ,जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण को आस्था का विषय बनाएं  और इनका संरक्षण करें इसके लिए खेती में रसायनों के उपयोग को क्रमबद्ध तरीके से कम करते हुए शून्य स्तर तक पहुंचाएं।
उत्तम पर्यावरण, सक्रिय फसल पारिस्थितिक तंत्र तथा संरक्षित जैव विविधता हेतु आईपीएम और प्राकृतिक खेती अपनाए।
2, मिट्टी की उर्वरा शक्ति घट रही है तथा मिट्टी बंजार हो रही है ।
3, फसल उत्पादन क्षमता स्थिर हो चुकी है।
4, उत्पादित फसल उत्पाद जहरीले हो रहे हैं।
5, मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन कम हो रहा है तथा इसके लिए जिम्मेदार सूक्ष्मजीव एवं कार्बनिक पदार्थ भी मिट्टी में काम हो रहे हैं।
6, मनुष्य एवं जानवरों में तरह-तरह की बीमारियां उत्पन्न हो रही है।
7, किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर बैंकों का कर्ज बढ़ रहा है।
8, पानी, हवा, वायु ,मिट्टी प्रदूषण तथा जहरीले हो रहे हैं। 
9, सब्जियां, दूध , मांस, फल, अनाज आदि में कीटनाशकों के अवशेषों की उपस्थिति बढ़ जाने से जहरीले हो रहे हैं।
10, कृषि उत्पादों की उत्पादन लागत बढ़ रही है।
11, मानव तथा जमीन की प्रतिरक्षात्मक शक्ति कम हो रही है।
12, ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित समस्याएं बढ़ती जा रही।
13, रसायनों के अवशेष खाद्य श्रृंखला के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर रहे हैं और शरीर में तरह-तरह की बीमारियां पैदा कर रहे हैं।
14, फसलों में नवीन अथवा नए-नए हानिकारक जीवो की समस्याएं बढ़ती जा रही है।
15, मिट्टी का पीएच बदलते जा रहा है
16, जमीन में पानी कास्तर गिरता जा रहा है।
जमीन के द्वारा पानी का शोषण कम होता जा रहा है।
17,


Wednesday, July 5, 2023

IPM activities performed

I served in biological control,pestsurveillance,IPM,Plant quarantine,Locust control and research and bioassay division of CIL,schemes of Dte of PPQ and S under union  Ministry of Agriculture and Farmers welfare from 2nd Feb 1978 to 31st Jan 2016.and performed the following activities in different schemes of this Dte.for popularizing IPM among the farmers , scientific communities and state Department officers.
1.Mass production  and field releases of biocontrol agents against different crop pests and weeds in different crops and weeds.,assessment of their effectiveness through recovery trials from fields and  field collected material.Collection and preservation of specimens of different crop pests and their natural enemies.
 Protection,preservation and conservation of biodiversity including biocontrol agents of different crop pests in different Agroecosystem.
2.Pest Surveillance and monitoring in different crops through fixed plot and rapid roving surveys, Agroecosystem analysis with different devices and tools.Transfer of pest staus from field to CIPMCs through I T based tecnology for compilation of data and issuence of Pest advisories to different central and state agencies for their follow up actions.
3.Conducting IPM training and demonstrations in the form of IPM Farmers Field  Schools,Season Long and short duration  traning programmes.
4 Conducting trials of Ecological Engineering in different crops.
5.IPM publicity through electronic and  print  media, through placement of hoardings and also  organising meetings ,State leve conferences on IPM to finalize IPM strategy,farmers fairs,Kisan goshthiies and electronic and print media etc.
6.Promoting Cultural,Machanical genetical,legal, social  , Ecological,methods of pest management.
7.Preparation and distribution of publicity material among different stakeholders.
8..Preparation and application of plant Extract based IPM inputs  ,different types of traps and cages in farming.Including traddional ni we l nonchemical methods of farming including pest management.
10.In IPM the Chemicals are used only as last weapon to solve any emergency situation in crops.
11.Any method of   Natural farming including pest management other than chemicals can be included in IPM.
12.Co ordination,co operation ,management,and control  of Integrated pest management scheme and system at national and international level.
13.Reading,writing,speaking and delevering lectures  ,research and  publication of papers and books related with IPM.Also gave several  TV interviews related with  IPM.
15.Implementation of plant Quarantine  order to prevent entry of exotic pests in India and also to ensure availability of quality IPM Inputs to the farmers.
16.Maintaining of A blog named  "IPM Sutra , "blong and preparation and placing of vedio on
Eutube on different aspects of IPM.

अपनी हकीकत से वाकिफ हूं मैं
मुझे किसी के नजरिए से फर्क नहीं पड़ता


चुप रहना ही बेहतर है
लोग सच सुनकर नाराज हो जाते हैं

Monday, July 3, 2023

जी हां _ खेती की प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम पद्धति अपनाकर रसायन मुक्त खेती की जा सकती है

मैंने वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय की जैविक नियंत्रण स्कीम मैं अपना योगदान 2 फरवरी 1978 से प्रारंभ किया बाद में केंद्रीय निगरानी केंद्र बारामुला जम्मू एंड कश्मीर बाद में केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र सूरत गुजरात तथा तथा केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र श्रीगंगानगर के अतिरिक्त प्रभार के साथ केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र फरीदाबाद जो बाद में केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन मैं परिवर्तित हो गया विभिन्न पदों पर कार्य किया जिसके दौरान जैविक नियंत्रण,  पेस्ट सर्विलेंस, का अनुभव प्राप्त किया, इसके बाद रीजनल प्लांट क्वॉरेंटाइन स्टेशन अमृतसर पर दो बार कार्य किया और वनस्पति संगरोध से संबंधित ज्ञान  एवं अनुभव प्राप्त किया। इस बीच कि निदेशालय की लॉकस्ट कंट्रोल  एंड रिसर्च  स्कीम का योजना प्रभारी अथवा स्कीम इंचार्ज के रूप में भी कार्य किया तथा लोकस्ट कंट्रोल का अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद नेशनल आईपीएम प्रोग्राम में आईपीएम स्कीम का संचालन एवं योजना प्रभारी के रूप में भी काम किया। जैविक नियंत्रण एवं आईपीएम स्कीम के कार्यकाल के दौरान प्राय यह प्रश्न सामने आते रहे की क्या देश में बगैर रसायन के अथवा रसायन मुक्त खेती की जा सकती है या नहीं। मैंने तब भी अपने अनुभव के आधार पर यह कहा था कि जी हां रसायन मुक्त खेती करना संभव है और रसायन मुक्त खेती की जा सकती है। जो बाद में श्री सुभाष पालेकर तथा अन्य वैज्ञानिकों के द्वारा सही सिद्ध हुई। अब प्रश्न यह उठता है कि प्राकृतिक खेती  एवं आईपीएम से गुणवत्ता युक्त खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। यहां पर फिर भी मेरा अर्थ यही है की जी हां प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम के इस्तेमाल से गुणवत्ता युक्त भोजन एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। वशर्तें आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती के इनपुट पर्याप्त मात्रा में कृषकों के द्वार पर उपलब्ध कराए जा सके इसके लिए इन इनपुट्स को पर्याप्त मात्रा में उत्पादन हेतु सरकार के द्वारा बड़े रूप में इनके उद्योग स्थापित किया जाए और उसके लिए बड़े प्रोजेक्ट बनाया जाए।
हमारे व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मैं यह कहता हूं कि कुछ विशेष जैव नियंत्रण कारकों के द्वारा कुछ चुनिंदा हानिकारक  जीवो का नियंत्रण नियंत्रण किया जा सकता है और जैविक नियंत्रण कारकों का प्रयोग अन्य विधियों के साथ समेकित या एकीकृत रूप में प्रयोग करके आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु भी प्रयोग किया जा सकता है।
प्राकृतिक खेती के प्रयोग से रसायन रहित खेती की जा सकती है क्योंकि प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधार हुआ रूप है जिसमें रसायनों का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं किया जाता हैं।
आईपीएम पद्धति से खेती करने अथवा हानिकारक जीवों के प्रबंधन हेतु रसायनों का इस्तेमाल सिर्फ अंतिम उपाय के रूप में आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु किया जाता है जबकि प्राकृतिक खेती में रसायनों का इस्तेमाल पूर्ण रूप से वर्जित है।
मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं खेतों में जैव विविधता तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता को बढ़ावा देते हुए प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित रसायन रहित विधियों का प्रयोग करके अथवा गायआधारित विधियों का प्रयोग करके खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है जिसमें फसलों के उत्पादन के साथ खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति, खेतों में पाए जाने वाली जैव विविधता तथा  फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता बरकरार रखी जाती है। इसके लिए रन नीति की पूर्व योजना बनाई जाती है तथा पूर्व सक्रियता के साथ सही विजन और उद्देश्य को लेकर तथा टीम भावना के साथ काम करने को प्राथमिकता के साथकिसी भी तरीके से वंचित परिणाम लिए जाते हैं।

Sunday, April 23, 2023

प्राकृतिक खेती की विचारधारा भाग 2

प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधरा हुआ रूप है जिसमें खेती करने के लिए किसी भी रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता तथा भूमि की उर्वरा शक्ति ,खेतों की जैव विविधता, जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा ,ह्यूमस तथा ह्यूमस और जैविक कार्बन को बनाने वाले सूक्ष्मजीवाणुओं तथा सूक्ष्म तत्व को एवं जमीन में भूमि जल स्तर को ऊपर लाने वाले प्रयासों तथा वर्षा जल संचयन के प्रयासों  को बढ़ावा देकर तथा देसी गायों एवं फसलों की देसी प्रजातियों के बीजों को संरक्षित करते हुए एवं इनके प्रयोग को फसल उत्पादन हेतु बढ़ावा देते हुए, उचित तथा लाभकारी फसल चक्र अपनाते हुए, एकल फसल प्रणाली के स्थान पर बहू फसली फसल प्रणाली को बढ़ावा देते हुए , नवीन विधियों के साथ-साथ पारंपरिक विधियों को भी बढ़ावा देते हुए, परिवार जिसमें जानवर भी शामिल हो, समाज ,सरकार, व्यापार और बाजार की जरूरत के अनुसार फसलों का नियोजन करते हुए, स्वस्थ समाज की कामना करते हुए कम से कम खर्चे में अथवा शून्य लागत पर खेती की जाती है।
2. यह खेती देसी गाय देसी बीजदेसी , देसी केचुआ एवं देसी पद्धतियों ,देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित खेती करने का तरीका है जिसमें प्रकृति में चल रही स्वचालित,self organised, स्वयं सक्रिय self active,स्वयं पोशीself nourished, स्वयं विकास ई self developing,स्वयं नियोजित ,self planned,सहजीवी symbioticएवं आत्मनिर्भर self sustained ,,फसल उत्पादन रक्षा तथा फसल प्रबंधन व्यवस्था पर आधारित तरीकों को अध्ययन करके तथा   उनसे संबंधित सभी विधियों  फसल उत्पादन हेतु प्रयोग करके या अपना कर खेती की जाती है। इसमें रसायनिक विधियों को छोड़कर आईपीएम में प्रयोग की जाने वाली सभी विधियों को शामिल किया जा सकता है या किया जाता है।
                                                        राम आसरे
                            अप्पर वनस्पति संरक्षण सलाहकार,(                                                         ( आई    पी  एम    )                                                            (रिटायर्ड )
प्रकृति की परस्पर्ता ( आपस दारी)के साथ-साथ जीना तथा प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है ।
खेती में रसायनों के विकल्प के रूप में रसायन नहीं हो सकते और ना ही होना चाहिए अपितु  इनका विकल्प कुछ वर्षों के लिए क्षेत्र के अनुसार रसायन रहित खेती अथवा प्राकृतिक खेती होना चाहिए जिससे खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति, जैविक कार्बन एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधता तथा सक्रियता का पुनर्स्थापना हो सके । 
      आज के परिदृश्य के परिपेक्ष में फसल उत्पादन फसल रक्षा फसल प्रबंधन तथा फसल विपणन , भूमि तथा फसलों का प्रबंधन ऐसा होना चाहिए जिससे हमारी सभी ज़रूरतें पूरी हो जाए तथा प्रकृति व उसके संसाधनों को कोई नुकसान ना हो एग्रोनॉमी कहते हैं । In today's context and Scinario' the Crop production, protection, management and crop marketing must be with due care of community health, environment ecosystem,nature and society.
         प्र कति ,समाज ,जैव विविधता तथा जीवन के पंच महाभूत पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,आकाश अथवा गगन ,समीर अथवा वायु तथा जमीन में पाए जाने वाले कार्बन और न्यूट्रिशन के अनुपात की  जरूरत के अनुसार अथवा हिसाब से  प्रबंधन करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है।
       धरती मां तथा जीवन के पांच महाभूतों के साथ छल करना मानवता के प्रति सबसे बड़ा अभिशाप है । धरती मां के स्वास्थ्य का ध्यान रखना प्राकृतिक खेती का प्रथम कर्तव्य अथवा प्रथम सोपान है।
आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती दोनों ही जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ साथ पर्यावरण ,सामाजिक ,
जीवन संबंधी एवं प्राकृतिक विकास को भी को भी फलीभूत करतेहै ।
मिट्टी का स्वस्थ, समाज का स्वास्थ्य ,जैव विविधता को ठीक रखने के लिए हमें प्राकृतिक खेती करनी है ना की इस खेती से हुए फसलउत्पादों से अधिक से अधिक मूल प्राप्त करने के लिए।
भूमि को बलवान रखना प्राकृतिक खेती का प्रथम लक्ष्य होता है।
जिस दिन खेत की मिट्टी स्वस्थ हो जाएगी उसे दिन हम जीरो बजट पर आधारित खेती कर सकते हैं।


 
   

Thursday, April 6, 2023

Lets convert IPM in to Natural farming. आई पी एम को प्राकृतिक खेती में कैसे परिवर्तित करें

जमीन में जीवांश कार्बन, सूक्ष्मजीवों, सूक्ष्म तत्वों, ह्यूमस को बढ़ाते हुए भूमि को बलवान बनाकर, जैव विविधता  का संरक्षण करके, जमीन की नमी तथा भूजल स्तर को ऊपर लाकर ,वर्षा जल का संचयन करके, जैविक इनपुट तथा प्राकृतिक खेती के इनपुट को बढ़ावा देकर, खेत में फसल अवशेषों का आच्छादन करके ,देसी बीज ,देसी गाय की नस्ल का संरक्षण करके, एकल फसल प्रणाली के स्थान पर बहुत फसली प्रणाली को अपनाकर, कम वर्षा या सिंचाई वाली फसलों को बढ़ावा देकर, परिवार, प्रकृति व सरकार की जरूरतों के अनुसार खेती का नियोजन करके, रसायनिक इनपुट के स्थान पर प्राकृतिक खेती के इनपुट अथवा जैविक इनपुट के प्रयोग को बढ़ावा देकर तथा उपरोक्त सभी गतिविधियों को आई पी एम में शामिल करके आई पी  एम को प्राकृतिक खेती में परिवर्तित किया जा सकता है ।

Thursday, March 23, 2023

कृषि एक दर्शन या प्रकृति का विज्ञान

कृषि एक विज्ञान का विषय नहीं है बल्कि यह एक दर्शनशास्त्र का विषय है। इसी प्रकार से प्राकृतिक खेती प्रकृति से संबंधित एक दर्शन है।
भूमंडल में पाए जाने वाले सभी जड़ और चेतन की संपूर्ण व्यवस्था ही प्रकृति कहलाती है। प्रकृति में प्रकृति की व्यवस्था एवं प्रकृति का कानून चलता है मनुष्य का कानून नहीं ।
    प्रकृति में प्राकृतिक संतुलन को कायम रखने तथा जीवन को स्थायित्व प्रदान करने हेतु एक स्वयं संचालित, स्वयं  विकास, स्वयं पोशी, स्वयं नियोजित, स्वयं सक्रिय एवं सहजीवी, आत्मनिर्भर ,फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा पद्धति पाई जाती है। इस पद्धति को अध्ययन करना तथा उसको खेती में प्रयोग करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है।
    कृषि की समग्रता को सिर्फ प्रकृत ही जानती है।  हमें प्रकृति के साथ मिलकर ही जीना है। प्रकृति के साथ परस्पर ता में जीना प्राकृतिक खेती है।
प्रकृति में पाए जाने वाले सभी सभी जड़ एवं चेतन अर्थात जीवित व जीवित कार क एक दूसरे पर आधारित है तथा उनको एक विशेष कार्य भी प्रकृति के द्वारा सौंपा गया है। प्रकृति में किसी एक अकेले जैविकअथवा अजैविक कारक का अपने आप में कोई विशेष अस्तित्व नहीं है बल्कि प्रकृति के सभी जैविक व अजैविक कारक एक दूसरे के ऊपर निर्भर रहते हुए एक पद्धति अथवा सिस्टम का संचालन करते हैं।
  कृषि अथवा प्राकृतिक खेती का अर्थ होता है संसार को पालना। प्रकृति में पाए जाने वाले जैविक और अजैविक कारकों का हमारे जीवन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए एक ऐसा रिश्ता है जिस के बगैर हमारा अस्तित्व नहीं रह सकता । प्रकृति में पाए जाने वाले इस प्रकार के पद्धति या सिस्टम तथा प्रकृति के विभव अथवा पोटेंशियल को कायम रखने के लिए हमें अपना योगदान देना होगा तथा हमें यह संकल्प करना होगा कि हम प्रकृति की किसी भी इकाई को क्षतिनहीं कहीं   पहुंच। ऊंगा। ।
  स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में खाद्यान्न की समस्या थी जिसके लिए सिंचाई के साधन, फसलों की उन्नत प्रजातियों के बीज, रसायनिक कीटनाशक एवं उर्वरक तथा ट्रैक्टर जैसे कृषि के यंत्र विकसित हुए जिनके उपयोग से फसल उत्पादन में वृद्धि हुई और हम खाद्यान्न मैंआत्मनिर्भर बने । जहां एक तरफ हम खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बने वहीं दूसरी तरफ रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से प्रकृति ,फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि से जुड़ी हुई बहुत सारी समस्याएं उभर कर आ  गई। मिट्टी की उर्वरा शक्ति मैं कमी, मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों एवं सूक्ष्म तत्व तथा ऑर्गेनिक कार्बन ,ह्यूमस, आदि की कमी, भूजल स्तर का नीचे चले जाना, मिट्टी की संरचना में परिवर्तन, फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव जैसे मेंढक ,केचआ, खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जियो जैसे मकड़िया मधुमक्खियां तितलियां भोरे आदि,खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पक्षी आदि विलुप्त हो गए। इसके साथ साथ विभिन्न प्रकार के फसलों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो की संख्या में बढ़ोतरी एवं इन जीवो से संबंधित नए हानिकारक जीवो की समस्याएं उभर कर आई।
 फसल उत्पादों के उत्पादन लागत मैं बढ़ोतरी, बढ़ती हुई जनसंख्या को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा रोगों से सुरक्षा पर्यावरण सुरक्षा जैव विविधता की सुरक्षा सुनिश्चित करना आज के तथा भविष्य की प्रमुख समस्या है। इसके साथ-साथ मिट्टी पानी हवा प्राकृतिक के  संसाधनों की सुरक्षा मिट्टी व भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना रसायनों का उचित विकल्प ढूंढना फसलों की उत्पादकता बढ़ाना कृषकों की आमदनी बढ़ाना गुणवत्ता युक्त प्रश्न उत्पादों का उत्पादन करना भूजल स्तर को ऊपर लाना कृषि उत्पादों की उत्पादन लागत को कम करना फसलों के देसी बीज एवं देसी गायों की नसों को बचाना आज की खेती की प्रमुख मांगे हैं। प्राकृतिक खेती के द्वारा इन मांगों को पूरा किया जा सकता है। किसानों की समृद्धि को बढ़ाना तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना आज की खेती के प्रमुख मांग है जिनको प्राकृतिक खेती के द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है।
2. खेती में रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग इस्तेमाल से हमारा खान-पान विषैला हो चुका है और जमीन बंजर होती जा रही है। आम नागरिक कैंसर, शुगर, हाई ब्लड प्रेशर ,हृदयरोग इत्यादि गंभीर बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं ,कृषि उपज लागत भी बढ़ती जा रही है तथा जैव विविधता भी नष्ट होती जा रही है। प्राकृतिक खेती तथा आईपीएम के प्रयोग से उपरोक्त परेशानियों से बचा जा सकता है।
Due to indiscriminate use of chemical pesticides and fertilizers:
.Our foods and drinks have become poisonous 
.Land become barren.
.Public or society is suffering from diseases like Cancer, Diabetes,high blood pressure,and with other cardiac diseases etc.
.Biodiversity, Agroecosystem,and other natural resources has been damaged,
.Cost of crop production and protection has been enhanced or increased.
 The above problems can be avoided through the use of IPM and Natural Farming.
3. प्राकृतिक खेती तथा आईपीएम के बल पर ही भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है, उसकी उर्वरा शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है जल, जमीन और जीवन के साथ-साथ किसान को भी बचाया जा सकता है ।इसी से समाज को स्वस्थ तथा किसान को समृद्ध साली बनाया जा सकता है ।
The soil fertility, safety of natural resources like land  or soil,water, biodiversity and life etc can be ensured on the strength of Natural farming and IPM .The sefety and prosperity of the of society including Farmers can also be ensured though these types of farming systems.